साफ पानी, साबुन, शौचालय और टीके की कमी से लाखों पर मंडरा रहा हैजे का खतरा: डब्ल्यूएचओ

2021 के बाद से देखें तो वैश्विक स्तर पर हैजे के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। 2023 में इसके सात लाख मामले सामने आए थे, जो 2022 की तुलना में 48 फीसदी अधिक हैं
न केवल पहले के मुकाबले हैजे के कहीं ज्यादा प्रकोप देख रहे हैं, बल्कि यह प्रकोप पिछले वर्षों की तुलना में कहीं ज्यादा व्यापक और घातक भी हुए हैं; फोटो: आईस्टॉक
न केवल पहले के मुकाबले हैजे के कहीं ज्यादा प्रकोप देख रहे हैं, बल्कि यह प्रकोप पिछले वर्षों की तुलना में कहीं ज्यादा व्यापक और घातक भी हुए हैं; फोटो: आईस्टॉक
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने आगाह किया है कि साफ पानी, साबुन, शौचालय और टीके की कमी के चलते लाखों लोगों पर हैजे का खतरा मंडरा रहा है। 2021 के बाद से देखें तो वैश्विक स्तर पर हैजे (कॉलरा) के मामले बढ़ रहे हैं। गौरतलब है कि 2022 में हैजे के 473,000 मामले सामने आए थे, जो 2021 में सामने आए मामलों के दोगुने से भी अधिक हैं।

2023 के प्रारंभिक आंकड़ों में हैजे के 700,000 से अधिक मामले सामने आए हैं। 2022 की तुलना में देखें तो 2023 में हैजे के मामलों में 48 फीसदी का इजाफा हुआ है।

इसी तरह आंकड़ों के मुताबिक 2022 के दौरान 44 देशों में हैजे के मामले दर्ज किए गए, जो 2021 की तुलना में 35 फीसदी अधिक है। 2021 में 35 देशों इसके मामलों की जानकारी दी थी। यह प्रवृत्ति 2023 में भी जारी रही थी। देखा जाए तो इसके हाल में सामने आए प्रकोप कहीं ज्यादा घातक थे, जिसमें पिछले दस वर्षों में सबसे अधिक मृत्यु दर देखी गई है।

यह स्थिति काफी हैरान करने वाली है क्योंकि न केवल पहले के मुकाबले हैजे के कहीं ज्यादा प्रकोप देख रहे हैं, बल्कि यह प्रकोप पिछले वर्षों की तुलना में कहीं ज्यादा व्यापक और घातक भी हुए हैं। इससे पहले पिछले कई वर्षों में हैजे के मामलों और उससे होने वाली मौतों में कमी आ रही थी। लेकिन अब हैजे का प्रकोप दोबारा पैर पसारने लगा है।

वर्तमान में, इससे सबसे गंभीर रूप से प्रभावित देशों में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथियोपिया, हैती, सोमालिया, सूडान, सीरिया, जाम्बिया और जिम्बाब्वे शामिल हैं।

बदलती जलवायु के साथ बढ़ रहा खतरा

बता दें कि इससे पहले भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जलवायु में आते बदलावों के चलते वैश्विक स्तर पर हैजे के मामलों के बढ़ने की आशंका जताई थी। हैजा के फैलने के लिए गरीबी और संघर्ष जैसे कारक हमेशा से जिम्मेवार रहे हैं। लकिन डब्ल्यूएचओ के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और संघर्ष अब स्थिति को पहले से बदतर बना रहे हैं। बाढ़, चक्रवात और सूखे जैसी चरम मौसमी घटनाएं साफ पानी तक पहुंच को दुर्गम बना रही हैं। जो हैजे के फैलने के लिए उपयुक्त परिस्थितियां पैदा कर रही है।

हैजा, जिसे एशियाई महामारी के रूप में भी जाना जाता है। यह विब्रियो कॉलेरी नामक बैक्टीरिया से फैलने वाली बीमारी है। यह बीमारी दूषित पानी या भोजन के माध्यम से फैलती है। यह एक गंभीर बीमारी है जिसके कारण दस्त (डायरिया) की समस्या गंभीर रूप ले लेती है। इसकी वजह से पीड़ित के शरीर में पानी की कमी होने लगती है। यह एक ऐसी बीमारी है जो कुछ घंटों में ही शरीर का सारा पानी सोख लेती है।

दूषित भोजन या पानी का सेवन करने के 12 घंटे से पांच दिन के बीच इसके लक्षण दिखाई दे सकते हैं। इससे बच्चे और वयस्क दोनों ही प्रभावित हो सकते हैं, और यदि इलाज न किया जाए, तो हैजा कुछ घंटों में ही घातक साबित हो सकता है। हर साल इस बीमारी के 40 लाख तक मामले सामने आते हैं। वहीं 143,000 लोगों की मौत इस बीमारी से हो जाती है। कई लोगों में इस बैक्टीरिया के लक्षण दिखाई नहीं दिखते हैं, फिर भी इनकी वजह से इसके बैक्टीरिया दूसरे लोगों में फैल सकते हैं।

वैक्सीन को लेकर बनाए अंतर्राष्ट्रीय समन्वय समूह (आईसीजी) ने भी दुनिया भर में हैजे के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई का आग्रह किया है। इसके लिए उन्होंने साफ पानी और स्वच्छता तक पहुंच सुनिश्चित करने के साथ, प्रकोप का तुरंत पता लगाना, स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता और पहुंच में वृद्धि करने के साथ मामलों को बेहतर तरीके से रोकने के लिए हैजे के किफायती ओरल टीकों के उत्पादन में तेजी लेन पर जोर दिया है।

आईसीजी ने सरकारों, डोनर्स, वैक्सीन निर्माताओं, भागीदारों और समुदायों से भी हैजा की वृद्धि को रोकने के लिए तत्काल प्रयास करने के लिए एकजुट होने की बात कही है। डब्ल्यू एचओ के मुताबिक हैजे में होती इस वृद्धि के लिए साफ पानी और स्वच्छता तक पहुंच में लगातार अंतराल को जिम्मेवार माना है।

हालांकि कई क्षेत्रों में इस अंतराल को भरने के प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन कई क्षेत्रों में जलवायु में आते बदलावों, आर्थिक अस्थिरता, संघर्ष और जनसंख्या विस्थापन जैसे कारकों के कारण ये अंतर बढ़ रहा है।

आईसीजी के अनुसार जिस तरह इसका प्रकोप बढ़ रहा है, अब पहले से कहीं अधिक देशों को इससे निपटने के लिए प्रयास करने की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए साफ पानी और स्वच्छता जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबद्धता और निवेश की जरूरत है।

बढ़ते उत्पादन के बावजूद, आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं टीके

एशियाई महामारी के रूप में बदनाम हैजा एक ऐसी बीमारी है, जिसे रोका जा सकता है। हालांकि इसके टीकों की वैश्विक कमी अब भी बरकरार है। मौजूदा मांग की तुलना में देखें तो इसके टीकों की कमी वैश्विक वैक्सीन भंडार पर भारी दबाव डाल रही है।

2021 और 2023 के बीच, पिछले पूरे दशक की तुलना में इसके प्रकोप से निपटने के लिए पहले से कहीं ज्यादा खुराक की मांग की गई थी। अक्टूबर 2022 में टीकों की बढ़ती मांग के चलते अंतर्राष्ट्रीय समन्वय समूह को हैजा के प्रकोप से निपटने के लिए अपनी वैश्विक टीकाकरण रणनीति को दो खुराक से घटाकर एक करने का निर्णय तक लेना पड़ा था।

पिछले साल इसकी करीब 3.6 करोड़ खुराक का उत्पादन हुआ था, इसके बावजूद, 14 प्रभावित देशों ने इसकी एक खुराक की जरूरत को पूरा करने के लिए 7.2 करोड़ खुराक की मांग की थी। हालांकि देखा जाए तो वास्तविक आवश्यकता इस मांग से कहीं अधिक है।

इतना ही नहीं, हैजे की आपात स्थितियों से निपटने के लिए इसके नियमित टीकाकरण अभियानों को भी रोकना पड़ा था। जो एक दुष्चक्र में बदल गया है। हालांकि रणनीति में किए इस बदलाव ने अधिक लोगों को हैजे के प्रकोप से बचाने और उसके प्रति प्रतिक्रिया करने की अनुमति दी है। लेकिन साथ ही यह नहीं भूलना चाहिए कि इसकी दो खुराक की व्यवस्था और टीकाकरण की फिर से शुरूआत करने से इसके खिलाफ लम्बे समय तक सुरक्षा मिलेगी।

आंकड़ों की मानें तो 2024 में इसकी खुराक की वैश्विक उत्पादन क्षमता बढ़कर पांच करोड़ तक पहुंच सकती है। लेकिन हैजे से सीधे तौर पर प्रभावित लाखों लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी यह पर्याप्त नहीं होगी। देखा जाए तो केवल एक निर्माता वर्तमान में इस वैक्सीन का उत्पादन कर रहा है।

हालांकि कंपनी उत्पादन बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। लेकिन उससे कहीं अधिक खुराक की आवश्यकता है। इसी तरह 2025 तक नए निर्माताओं के बाजार में आने की उम्मीद नहीं है, लेकिन इस रफ्तार को तेज करने की आवश्यकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि हमें हैजे को भी उतनी तत्परता और नवीनता के साथ प्राथमिकता देनी चाहिए, जितनी हमने कोविड-19 के साथ की थी। साथ ही इन खुराकों को किफायती कीमतों पर उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है।

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