किसी देश का भविष्य कैसा होगा, यह उसके बच्चों के भविष्य पर निर्भर होता है। लेकिन जब विकास का आधार ही कुपोषित हो तो सोचिये वह देश के भविष्य में कितना योगदान देगा। क्या होगा, जब देश के लगभग 58 फीसदी नौनिहालों (6 से 23 माह के बच्चों) को पूरा आहार ही न मिलता हो और जब 79 फीसदी के भोजन में विविधता की कमी हो। कैसे पूरे होंगे, उनके सपने जब लगभग 94 फीसदी के भोजन में विकास के लिए जरुरी पोषक तत्व ही न हो। यह दुखद और चिंताजनक आंकड़ें भारत सरकार द्वारा किये गए राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (2016 - 18) में सामने आये थे।
वहीं पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रेशन की ओर से 18 सितंबर 2019 को कुपोषण पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में देश में कम वजन वाले बच्चों के जन्म की दर 21.4 फीसदी थी। जबकि जिन बच्चों का विकास नहीं हो रहा है, उनकी संख्या 39.3 फीसदी, जल्दी थक जाने वाले बच्चों की संख्या 15.7 फीसदी, कम वजनी बच्चों की संख्या 32.7 फीसदी, अनीमिया पीड़ित बच्चों की संख्या 59.7 फीसदी, 15 से 49 साल की अनीमिया पीड़ित महिलाओं की संख्या 59.7 फीसदी और अधिक वजनी बच्चों की संख्या 11.5 फीसदी पाई गई थी।
हालांकि पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के कुल मामलों में 1990 के मुकाबले 2017 में कमी आई है। 1990 में यह दर 2336 प्रति एक लाख थी, जो 2017 में 801 पर पहुंच गई है, लेकिन कुपोषण से होने वाली मौतों के मामले में मामूली सा अंतर आया है। 1990 में यह दर 70.4 फीसदी थी जोकि 2017 में 2.2 फीसदी घटकर, 68.2 पर ही पहुंच पाई है। यह चिंता का एक बड़ा विषय है, क्योंकि इससे पता चलता है कि पिछले सालों में किए जा रहे अनगिनत प्रयासों के बावजूद देश में कुपोषण का खतरा कम नहीं हुआ है।
इससे निपटने के लिए समय-समय पर अनगिनत सरकारी योजनाएं चलाई गई हैं। जिससे इस बीमारी को समाज से दूर किया जा सके। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) ऐसी ही एक पहल थी, जिसका लक्ष्य देश के गरीब तबके को सस्ती दर पर भोजन मुहैया कराना था। देश में पीडीएस सबसे बड़ी कल्याणकारी योजना है, जो गरीब परिवारों को रियायती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराती है।
जर्नल बीएमसी में छपे इस शोध में यह जानने का प्रयास किया गया है सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) गरीब तबके के बच्चों में स्टंटिंग और कुपोषण की समस्या को हल करने में कितनी कामयाब हुई है। शोध से पता चला है कि देश में जो गरीब तबका पीडीएस से बाहर है उस वर्ग के बच्चों में कुपोषण की दर सबसे ज्यादा है। यह शोध राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण -4 (एनएफएचएस -4) के आंकड़ों पर आधारित है।
जिसमें गरीबी, कुपोषण और पीडीएस के बीच के सम्बन्ध को समझने के लिए सभी परिवारों को चार वर्गों में बांटा गया है। पहला वह वर्ग है जिसे वास्तविक गरीब कहा गया है जो आर्थिक रूप से गरीब है और जिनके पास बीपीएल कार्ड है। दूसरा वह वर्ग है जो गरीब तो है पर उसके पास बीपीएल कार्ड नहीं है। तीसरा वह वर्ग है जो आर्थिक रूप से समृद्ध है इसके बावजूद उसके पास बीपीएल कार्ड है। चौथा वह वर्ग है जो न तो गरीब है न ही उसके पास योजनाओं का लाभ उठाने के लिए बीपीएल कार्ड है।
शोध से प्राप्त नतीजों के अनुसार वह वर्ग जो वास्तविकता में गरीब है और जिसके पास बीपीएल कार्ड भी है उसके और दूसरा वर्ग जो गरीब है पर उसके पास बीपीएल कार्ड नहीं है उस वर्ग के करीब आधे बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। वहीं दूसरी ओर जो वर्ग आर्थिक रूप से समृद्ध है और जिसके पास बीपीएल कार्ड है उसके करीब 40 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं। जबकि आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग जिसके पास कार्ड नहीं है उसके करीब एक तिहाई से कम बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।
यही वजह है कि इस शोध में जो वर्ग आज भी पीडीएस योजना का लाभ नहीं उठा पा रहा है उसे भी इसमें शामिल किए जाने की सिफारिश की गई है। साथ ही भारत में कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिए पीडीएस में शामिल खाद्यान्नों की गुणवत्ता में सुधार करने की भी बात कही गई है। वहीं मिलने वाले राशन की मात्रा को भी बढ़ाने की मांग की गई है। जिससे जितना जल्द हो सके इस देश को कुपोषण मुक्त किया जा सके।