दुनिया में तेजी से पैर पसार रही दिमाग की यह बीमारी, 2050 तक ढाई करोड़ होंगे बीमार

रिसर्च से पता चला है कि 2050 तक भारत सहित दक्षिण एशिया में करीब 68 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं
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वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि अगले 25 वर्षों में पार्किंसंस के मामलों में नाटकीय रूप से बढ़ोतरी हो सकती है। अनुमान है कि 2050 तक दुनिया भर में ढाई करोड़ से ज्यादा लोग दिमाग से जुड़ी इस बीमारी से जूझ रहे होंगे। 

मतलब की यदि 2021 से तुलना करें तो इससे पीड़ित लोगों की संख्या बढ़कर दोगुनी से भी अधिक हो जाएगी। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में प्रकाशित नए अध्ययन में 2050 तक पार्किंसंस के मामलों में 112 फीसदी की वृद्धि की आशंका जताई है।

अध्ययन में इस बात का भी खुलासा किया है कि पार्किंसंस के इन बढ़ते मामलों के पीछे की बड़ी वजह बुजुर्ग होती आबादी है। साथ ही आबादी में होता इजाफा भी पार्किंसंस के बढ़ते मामलों की वजह बन रहा है।

शोध में इस बात की भी आशंका जताई है कि 2050 तक प्रति लाख लोगों पर करीब 267 लोग इस बीमारी से प्रभावित होंगे। 2021 की तुलना में देखें तो इस आंकड़े में 76 फीसदी की वृद्धि हो सकती है।

हालांकि वृद्धि का पैटर्न राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पर अलग होगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक खास तौर पर पूर्वी और दक्षिण एशिया में इसके सबसे अधिक मामले सामने आंएगे।

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शोध के मुताबिक पार्किंसंस सबसे तेजी से बढ़ने वाला तंत्रिका संबंधी विकार है। हालांकि इसके बावजूद कई क्षेत्रों में इसके प्रसार के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।

इसे समझने के लिए अपने शोध में ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2021 के आंकड़ों का उपयोग किया है। इनके आधार पर उन्होंने यह समझने का प्रयास किया है कि 2022 से 2050 के बीच पार्किंसंस के मामलों में क्या बदलाव आएगा। साथ ही अपने अध्ययन में उन्होंने इसके बढ़ने के कारणों को भी उजागर किया है।

बता दें कि तंत्रिका तंत्र हमारे शरीर का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, यह शरीर के अन्य अंदरूनी अंगों से अलग होता है। यह तंत्र हमारे शरीर में बहुत से कामों को अंजाम देता है।

सरल शब्दों में यह हमारे शरीर की चलने-फिरने, बोलने, हंसने और यहां तक की सांस लेने में भी मदद करता है। यह शरीर पर तनाव को ध्यान में रखते हुए इन प्रक्रियाओं को तेज या धीमा करने में मदद करता है। तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारियां हैं, जिनमें से कुछ न्यूरोडीजेनरेटिव बीमारियां होती हैं। पार्किंसन भी उन्हीं बीमारियों में से एक है।

 यह बीमारी आमतौर पर 50 की उम्र के बाद लोगों को अपना शिकार बनाती है। लेकिन कुछ लोगों में यह विकार 30 की उम्र के आसपास भी हो सकता है।

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पश्चिमी उप-सहारा अफ्रीका में 292 फीसदी की वृद्धि का अंदेशा

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक 2050 तक दुनिया भर में 2.25 करोड़ लोग पार्किंसंस से पीड़ित होंगे। रोग से पीड़ित होंगे। शोध में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि 2050 तक, दुनिया भर में, विशेष रूप से विकासशील देशों में पार्किंसंस के मामले बढ़ जाएंगे।

अध्ययन में इस बात की भी आशंका जताई है कि पार्किंसंस के सबसे अधिक मामले पूर्वी एशिया में सामने आ सकते हैं, जहां 1.09 करोड़ लोगों के इससे पीड़ित होने का अंदेशा है। इसके बाद दक्षिण एशिया में करीब 68 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। दूसरी तरफ ओशिनिया और आस्ट्रेलिया में सबसे कम मामले सामने आएंगे।

अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि 2050 तक, पार्किंसंस के मामलों में पश्चिमी उप-सहारा अफ्रीका में सबसे अधिक वृद्धि होगी, जहां इनमें 292 फीसदी की वृद्धि का अंदेशा है। वहीं इसके उलट संबसे कम करीब 28 फीसदी वृद्धि मध्य और पूर्वी यूरोप में सामने आ सकती है। इसका कारण जनसंख्या वृद्धि में गिरावट और स्वास्थ्य पर दिया जा रहा ध्यान है।

शोध में यह भी सामने आया है कि 2050 तक, 80 से अधिक आयु के लोगों में पार्किंसंस के सबसे ज्यादा मामले सामने आएंगे। यह प्रति लाख पर 2,087 के आसपास रह सकते हैं।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि समय के साथ इस बीमारी से पीड़ित पुरुषों और महिलाओं के बीच का अंतर भी बढ़ेगा, जो 2021 में 1.46 से बढ़कर 2050 में 1.64 हो जाएगा।

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शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि शारीरिक गतिविधियों में इजाफे से भविष्य में पार्किंसंस के मामले घट सकते हैं। शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि शारीरिक गतिविधियों में इजाफे से भविष्य में पार्किंसंस के मामले घट सकते हैं। मतलब की स्वस्थ जीवनशैली को अपनाने से बीमारियों को दूर किया जा सकता है।

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