बर्ड फ्लू और बुखार: क्यों पक्षियों का फ्लू इंसानों के लिए खतरे का संकेत है

पक्षियों का फ्लू: बुखार सहन करने वाला वायरस जो मानव में तेजी से फैलने और गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है
मानव और पक्षियों का फ्लू जीन बदल सकते हैं, जिससे नए और खतरनाक स्ट्रेन उत्पन्न हो सकते हैं।
मानव और पक्षियों का फ्लू जीन बदल सकते हैं, जिससे नए और खतरनाक स्ट्रेन उत्पन्न हो सकते हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • बुखार आम फ्लू से बचाव करता है, लेकिन पक्षियों का फ्लू वायरस इससे प्रभावित नहीं होता।

  • पीबी1 जीन पक्षियों के फ्लू को उच्च तापमान में भी जीवित रहने और गंभीर बीमारी पैदा करने में मदद करता है।

  • मानव और पक्षियों का फ्लू जीन बदल सकते हैं, जिससे नए और खतरनाक स्ट्रेन उत्पन्न हो सकते हैं।

  • एच5एन1 जैसी स्ट्रेन में मृत्यु दर उच्च रही है, इसलिए सतत निगरानी आवश्यक है।

  • फ्लू वायरस की बुखार-सहनशीलता पर जांच महामारी की तैयारी और संभावित खतरों की पहचान में मदद कर सकती है।

बुखार हमारे शरीर की सबसे अहम सुरक्षा प्रणाली में से एक है। जब किसी व्यक्ति को वायरल संक्रमण होता है, तो शरीर का तापमान बढ़ जाता है, जिससे वायरस का प्रसार धीमा पड़ता है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन हाल की रिसर्च में यह बात सामने आई है कि पक्षियों का फ्लू (एवियन इन्फ्लूएंजा) इंसानों में तब भी तेजी से फैल सकता है, जब शरीर का तापमान बुखार की स्थिति तक पहुंच जाता है।

कैम्ब्रिज और ग्लासगो विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने इस विषय पर अध्ययन किया। शोध में यह पाया गया कि पक्षियों का फ्लू वायरस सामान्य मानव फ्लू वायरस की तुलना में उच्च तापमान में भी तेजी से बढ़ता है। यह बात इसलिए चिंता का विषय है क्योंकि बुखार, जो आम तौर पर मानव शरीर को वायरस से बचाता है, पक्षियों के फ्लू वायरस के लिए कोई बाधा नहीं बन पाता।

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मानव फ्लू और तापमान का संबंध

मानव फ्लू वायरस हर साल लाखों लोगों को प्रभावित करता है। इन वायरसों की सबसे आम श्रेणी 'इन्फ्लुएंजा ए' है। मानव फ्लू वायरस सबसे अच्छी तरह ऊपरी श्वसन मार्ग (नाक और गले के पास) में बढ़ता है, जहां तापमान लगभग 33 डिग्री सेल्सियस होता है। शरीर के गहरे हिस्सों, जैसे फेफड़ों में, तापमान लगभग 37 डिग्री सेल्सियस होता है, जहां वायरस कम सक्रिय रहते हैं।

जब वायरस शरीर में तेजी से फैलते हैं, तो गंभीर बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे समय में बुखार शरीर की सुरक्षा के लिए एक प्राकृतिक हथियार के रूप में काम करता है। बुखार शरीर का तापमान 41 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा सकता है और वायरस की वृद्धि को धीमा या रोक सकता है।

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पक्षियों का फ्लू क्यों अधिक खतरनाक है

पक्षियों के फ्लू वायरस मानव फ्लू से अलग तरीके से व्यवहार करते हैं। ये वायरस अक्सर निचले श्वसन मार्ग या पक्षियों के पाचन तंत्र में बढ़ते हैं, जहां तापमान 40-42 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि ये वायरस मानव बुखार जैसी गर्मी को आसानी से सहन कर सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने चूहे के मॉडल का इस्तेमाल करते हुए यह परीक्षण किया कि विभिन्न फ्लू वायरस बुखार जैसी परिस्थितियों में कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। उन्होंने मानव मूल के फ्लू वायरस पीआर8 का उपयोग किया, जो इंसानों के लिए खतरा नहीं है। माउस आमतौर पर फ्लू पर बुखार नहीं बनाते, इसलिए शोधकर्ताओं ने माउस के रहने वाले वातावरण का तापमान बढ़ाकर बुखार जैसी स्थिति बनाई।

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मानव फ्लू बनाम पक्षियों का फ्लू

इस प्रयोग में यह पाया गया कि जब माउस का तापमान बुखार स्तर तक बढ़ाया गया, तो मानव फ्लू वायरस की वृद्धि रुक गई और संक्रमण हल्का हो गया। लेकिन वही तापमान पक्षियों के फ्लू वायरस को नहीं रोक पाया। इससे यह स्पष्ट हुआ कि पक्षियों का फ्लू वायरस बुखार जैसी गर्मी में भी तेजी से फैल सकता है और गंभीर बीमारी पैदा कर सकता है।

पीबी1 जीन: पक्षियों के फ्लू का मुख्य कारण

साइंस पत्रिका में प्रकाशित शोध में यह भी सामने आया कि पीबी1 नामक जीन वायरस के गुणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह जीन वायरस के जीन्स की प्रतिकृति में मदद करता है। यदि वायरस में पक्षियों जैसा पीबी1 जीन होता है, तो यह बुखार जैसी उच्च तापमान स्थितियों में भी जीवित रह सकता है और गंभीर बीमारी पैदा कर सकता है।

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यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मानव और पक्षियों के फ्लू वायरस कभी-कभी एक ही मेजबान में एक साथ संक्रमण कर सकते हैं। ऐसे समय में वे जीन का आदान-प्रदान कर सकते हैं। इतिहास में 1957 और 1968 के फ्लू महामारी में मानव फ्लू वायरस ने पक्षियों का पीबी1 जीन अपनाया, जिससे बीमारी अधिक गंभीर और तेजी से फैलने वाली बनी।

सावधानी और निगरानी

डॉ. मैट टर्नबुल ने कहा कि वायरसों की यह जीन अदला-बदली नई और खतरनाक फ्लू स्ट्रेन पैदा कर सकती है। इसलिए पक्षियों के फ्लू वायरस पर सतत निगरानी रखना बेहद जरूरी है। नए वायरसों की जांच यह समझने के लिए की जानी चाहिए कि वे बुखार जैसी परिस्थितियों में कितने जीवित रह सकते हैं। इससे संभावित खतरनाक स्ट्रेन की पहचान और महामारी की तैयारी संभव हो सकती है।

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उच्च मृत्यु दर और खतरा

पक्षियों का फ्लू इंसानों में दुर्लभ रूप से ही फैलता है, लेकिन फैलने पर यह गंभीर और जानलेवा हो सकता है। इतिहास में एच5एन1 जैसी एवियन फ्लू संक्रमणों में मृत्यु दर 40 फीसदी से अधिक रही है। इसलिए, यह समझना जरूरी है कि किन कारणों से पक्षियों का फ्लू इंसानों में गंभीर बीमारी पैदा करता है।

पक्षियों का फ्लू वायरस और मानव फ्लू में सबसे बड़ा अंतर यह है कि पक्षियों का फ्लू उच्च तापमान में भी तेजी से बढ़ सकता है। पीबी1 जीन इस क्षमता के पीछे मुख्य कारण है। भविष्य की महामारी से निपटने के लिए यह जरूरी है कि हम पक्षियों के फ्लू वायरस की निगरानी करें और उनकी बुखार-सहनशीलता पर ध्यान दें। इस तरह हम संभावित खतरनाक स्ट्रेन की पहचान कर समय पर तैयारी कर सकते हैं।

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