
हर साल 18 जून को ऑटिस्टिक लोग गर्व और इसकी स्वीकृति का दिन मनाने के लिए एक साथ आते हैं। इस दिन को ऑटिस्टिक प्राइड डे के नाम से जाना जाता है और यह साल 2005 से मनाया जा रहा है।
इस तिथि को प्रसिद्ध ऑटिज्म अधिकार कार्यकर्ता डॉ. जिम सिंक्लेयर के जन्मदिन के अवसर पर चुना गया था। डॉ. सिंक्लेयर को 1993 में प्रकाशित अपने प्रसिद्ध निबंध "डोंट मोरन फॉर अस" में "ऑटिस्टिक प्राइड" शब्द गढ़ने का श्रेय दिया जाता है।
ऑटिज्म होता क्या है?
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) एक विकासात्मक स्थिति है जो संचार, सामाजिक संपर्क और व्यक्ति द्वारा सूचना को समझने के तरीके को प्रभावित करती है। लेकिन ऑटिज्म को केवल चुनौतियों के संदर्भ में परिभाषित करना एक सीमित और अधूरा नजरिया है। कई ऑटिस्टिक लोगों में गणित, संगीत, स्मृति, डिजाइन और पैटर्न पहचान जैसे क्षेत्रों में अनोखी क्षमताएं होती हैं।
शब्द "स्पेक्ट्रम" रोजमर्रा के जीवन में पर्याप्त सहायता की जरूरत वाले लोगों से लेकर स्वतंत्र रूप से रहने वाले, अपने व्यवसाय और रिश्तों में सफल होने वाले लोगों तक के अनुभवों की विस्तृत श्रृंखला को दर्शाता है।
ऑटिज्म पर गर्व क्यों करें?
कुछ लोगों के लिए, जांच से जुड़े होने पर "गर्व" शब्द असामान्य लग सकता है। लेकिन आज मनाया जाने वाला गर्व न्यूरोडाइवर्सिटी के विचार में समाहित है। यह समझ कि मस्तिष्क के कार्य में भिन्नताएं मनुष्य में विविधता का एक स्वाभाविक और अहम हिस्सा हैं। जिस तरह हम संस्कृति, भाषा और पृष्ठभूमि में अंतर को स्वीकार करते हैं, उसी तरह हमें न्यूरोलॉजिकल अंतर को भी स्वीकार करना चाहिए।
बहुत लंबे समय से, कई ऑटिस्टिक लोगों ने संदेश सुने हैं कि वे "टूटे हुए" हैं या उन्हें "ठीक" करने की जरूरत है। ऑटिस्टिक प्राइड डे उस कथन को चुनौती देता है।
ऑटिस्टिक प्राइड डे के इतिहास की बात करें तो पहली बार इसे 2005 में एस्पीज फॉर फ़्रीडम द्वारा मनाया गया था, जो अब बंद हो चुका एक ऑटिज्म संगठन था। इस दिन का उद्देश्य ऑटिज्म के बारे में जागरूकता बढ़ाना और न्यूरोडायवर्सिटी की स्वीकृति और समझ को बढ़ावा देना था। इसने ऑटिज्म से जुड़ी बुरे रूढ़ियों और प्रथाओं का मुकाबला करने का भी प्रयास किया।
तब से, ऑटिस्टिक प्राइड डे को दुनिया भर के लोगों, संगठनों और समुदायों से मान्यता और समर्थन मिला है। यह ऑटिस्टिक लोगों के लिए एक मंच बन गया है जहां वे एक साथ आते हैं और अपनी अनूठी पहचान, ताकत और समाज में योगदान का जश्न मनाते हैं।
हाल के दशकों में ऑटिज्म के बारे में जागरूकता बढ़ी है, लेकिन इसे स्वीकृति, वकालत और समानता की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। लक्ष्य ऑटिस्टिक लोगों को "ठीक" करना नहीं है, बल्कि उन प्रणालियों को बदलना है जो उन्हें बाहर करती हैं।
यह यात्रा घर पर बातचीत से शुरू होती है, समावेशी सार्वजनिक नीतियों के माध्यम से जारी रहती है और एक ऐसे समाज की ओर ले जाती है जहां ऑटिज्म को मानव स्पेक्ट्रम के एक हिस्से के रूप में सम्मान दिया जाता है न कि उससे भेदभाव के रूप में।
ऑटिस्टिक प्राइड डे हमें याद दिलाता है कि हर दिमाग मायने रखता है। एक ऐसी दुनिया में जो अक्सर समानता को तरजीह देती है, न्यूरोडाइवर्स व्यक्ति प्रामाणिकता, रचनात्मकता और गहराई लाते हैं। चाहे वे कलाकार हों, वैज्ञानिक हों, विचारक हों या बस अपने तरीके से जीवन जीने वाले व्यक्ति हों, वे देखे जाने, सम्मान पाने और मनाए जाने के हकदार हैं।