भारतीय वैज्ञानिक डॉ. योगिता के. अदलखा ने दिमाग संबंधी विकारों (ऑटिज्म) का अध्ययन करने के लिए मानव-आधारित मॉडल विकसित किए हैं। ये मॉडल दिमागी विकारों के उपचार करने की रणनीतियों को डिजाइन करने में मदद कर सकते हैं।
दशकों से मस्तिष्क संबंधी विकारों को समझने के लिए पशु मॉडल का उपयोग किया जा रहा है। पशु मॉडल में काम करने वाली दवाएं नैदानिक परीक्षणों में अक्सर विफल हो जाया करती हैं। मानव मॉडल की कमी के चलते ऐसे विकारों के बारे में पैथॉफिजियोलॉजी जानकारी की कमी हो जाती है। जो इस तरह की बीमारी वाले लोगों की उपचार रणनीतियों को डिजाइन करने के लिए बहुत आवश्यक है।
डॉ. योगिता के. अदलखा ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा स्थापित इंस्पायर फैकल्टी फेलोशिप प्राप्त की है। उन्होंने हरियाणा के मानेसर में स्थित राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र में मस्तिष्क के विकास और शिथिलता को समझने के लिए मानव-आधारित स्टेम सेल मॉडल तैयार करके इस कमी को पूरा कर दिया है। वर्तमान में डॉ. अदलखा ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट, एनसीआर बायो क्लस्टर, फरीदाबाद में एक वैज्ञानिक के रूप में काम करती हैं।
अपने शोध टीम के साथ, उन्होंने मानव रक्त से प्रेरित प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल (आईपीएससी) का निर्माण और उत्पादन करके पहली बार भारत में एक तरीका विकसित किया है। उन्होंने मस्तिष्क की विशेष स्टेम कोशिकाओं, यानी, तंत्रिका स्टेम कोशिकाओं (एनएससी) में आईपीएससी के अलग-अलग कोशिकाओं के काम करने के तरीकों में सुधार किया है।
उनकी टीम ने तंत्रिका स्टेम सेल में माइक्रो आरएनए की भूमिका को समझने में अहम योगदान दिया है, जिससे पता चला है कि माइक्रो आरएनए नामक कुछ छोटे गैर-कोडिंग आरएनए, जो प्रोटीन नहीं बनाते हैं लेकिन अन्य जीनों की कार्य प्रणाली को नियमित करते हैं, तंत्रिका स्टेम कोशिकाओं के अंतर को तंत्रिका कोशिका में बढ़ा सकते हैं।
उनके शोध ने तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन) के विकास की जानकारी और मस्तिष्क से संबंधित विशेष स्टेम सेल में छोटे बिना कोडिंग के एमआईआरएनए की भूमिका का विस्तार करने में योगदान दिया है, जिससे तंत्रिका विज्ञान और स्टेम सेल का स्वरूप बदल गया है।
डॉ. योगिता ने इस कमी को पूरा करके एक मानव-आधारित मॉडल विकसित किया है। जो यह अध्ययन करने में मदद कर सकता है कि मस्तिष्क कैसे विकसित होता है। विशेष रूप से तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन) और मस्तिष्क के विकास के दौरान क्या गड़बड़ी हो जाती है जिससे संज्ञानात्मक गिरावट, बोलने में परेशानी और सामाजिक संपर्क करना कठिन हो जाता है।
अपनी शोध टीम के साथ, उन्होंने मानव पेरिफरल रक्त से प्रेरित प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल (आईपीएससी) प्राप्त किए और उन्हें तंत्रिका स्टेम सेल (एनएससीएस) में अंतर को उजागर किया। चूंकि एएसडी और आईडी जैसे न्यूरो डेवलपमेंट विकारों में माइक्रोआरएनए-137 का स्तर कम है, इसलिए उनका अध्ययन आणविक तंत्र के विस्तार के साथ मानव एनएससी निर्धारण के दौरान इस एमआईआरएनए की महत्वपूर्ण भूमिकाओं को प्रदर्शित करता है। यह अध्ययन "एसटीईएम सेल" नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
उनका अध्ययन पहला ऐसा सबूत प्रदान करता है जो एक मस्तिष्क को संपन्न बनाने में एमआईआरएनए-137 न्यूरोनल की कमी की भूमिका को उजागर करता है। आईपीएससी से प्राप्त मानव तंत्रिका स्टेम कोशिकाओं का उपयोग करके यह प्रसार को रोकता है।
अध्ययन के दौरान देखा गया कि एमआईआरएनए-137 न केवल माइटोकॉन्ड्रिया (पावर हाउस) बायोजेनेसिस को तेज करता है, बल्कि ऑक्सीडेटिव फास्फारिलीकरण को भी प्रेरित करता है, जिससे कोशिका के एटीपी या ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसके परिणामस्वरूप माइटोकॉन्ड्रियल सामग्री में वृद्धि होती है, जो वास्तव में नवजात तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन्स) के लिए आवश्यक है।
उम्र के साथ एनएससी की प्रजनन क्षमता में कमी से मस्तिष्क की पुनर्योजी क्षमता में कमी हो जाती है। एमआईआरएनए-137 से प्रेरित एनएससी की कमी का खुलासा करके अध्ययन के निष्कर्ष उम्र बढ़ने से जुड़े दिमागी (न्यूरोडीजेनेरेटिव) रोगों और एएसडी और आईडी के उपचार के डिजाइन की सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
उम्र के साथ मस्तिष्क से संबंधित विशेष स्टेम कोशिकाओं के प्रसार में कमी से मस्तिष्क की पुनर्योजी क्षमता कम हो जाती है। अपने वर्तमान काम में, वह प्रस्ताव करती है कि एक छोटे बिना-कोडिंग एमआईआरएनए द्वारा प्रेरित मस्तिष्क से संबंधित विशेष स्टेम कोशिकाओं में अंतर उम्र बढ़ने से जुड़े दिमागी (न्यूरोडीजेनेरेटिव) रोगों और ऑटिज्म के उपचार के डिजाइन को बढ़ावा दिया जा सकता है।