
एक सदी से ट्रेकोमा से जूझने के बाद सेनेगल ने इस बीमारी पर जीत हासिल कर ली है। इसके साथ ही सेनेगल में यह बीमारी अब इतिहास के पन्नों में दफन हो चुकी है। गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सेनेगल को अब आधिकारिक रूप से ट्रेकोमा मुक्त घोषित कर दिया है।
इसके साथ ही सेनेगल अफ्रीका क्षेत्र के उन नौ देशों में शामिल हो गया, जो इस बीमारी से उबर चुके हैं। बता दें कि कुछ दिन पहले ही डब्ल्यूएचओ ने बुरुंडी को भी ट्रेकोमा मुक्त देश घोषित कर दिया है। देखा जाए तो यह महज एक बीमारी का अंत नहीं, बल्कि एक सदी से लोगों की आंखों में बसे डर को मिटा देने वाली ऐतिहासिक जीत है।
डब्ल्यूएचओ ने पुष्टि की है कि वो सेनेगल के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करता रहेगा कि यह जीत स्थाई बनी रहे। भले ही दुनिया के कई हिस्सों में ट्रेकोमा अब भी स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट बना हुआ है, लेकिन सेनेगल की यह जीत दर्शाती है कि, जहां इरादा हो, वहां अंधकार का अंत संभव है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस एडनोम घेब्रेयसस ने सेनेगल को बधाई देते हुए प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “सेनेगल की इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर हम उन्हें बधाई देते हैं। यह उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों के खिलाफ जारी वैश्विक जंग में एक और बड़ी सफलता है।“
क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस से फैलती है यह बीमारी
गौरतलब है कि ट्रेकोमा बैक्टीरिया से फैलने वाली संक्रामक बीमारी है, जो आंखों को प्रभावित करती है। इसके लिए क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस नामक बैक्टीरिया जिम्मेवार होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह ऐसा रोग है जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने, गंदी सतहों को छूने या आंख-नाक के रिसाव से सनी मक्खियों के जरिए फैलती है।
इसमें बार-बार संक्रमण होने पर पलकें अंदर की ओर मुड़ जाती हैं, जिससे आंखों में चोट लगती है और धीरे-धीरे आंखों को रौशनी जाने का खतरा बढ़ जाता है।
दुनिया के कई कमजोर और पिछड़े इलाकों में, जहां साफ पानी और साफ-सफाई की पर्याप्त सुविधा नहीं है, यह बीमारी अब भी बेहद आम है। अफ्रीका, मध्य और दक्षिण अमेरिका, एशिया, पश्चिमी प्रशांत और मध्य पूर्व के कमजोर और ग्रामीण इलाकों में यह समस्या अभी भी बनी हुई है। आंकड़े दर्शाते हैं कि आज भी दुनिया में 15 करोड़ से ज्यादा लोग इस बीमारी से संक्रमित हैं।
दूर हुआ 100 वर्षों से फैला अंधेरा
ट्रेकोमा, जो अंधेपन का प्रमुख कारण है सेनेगल में 1900 के दशक की शुरुआत से फैला हुआ था। 1980 और 1990 के दशक में हुए सर्वेक्षणों में इसे अंधेपन का एक प्रमुख कारण माना गया।
1998 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के ग्लोबल ट्रेकोमा एलिमिनेशन कार्यक्रम से जुड़ने के बाद, सेनेगल ने 2000 में अपना पहला राष्ट्रीय सर्वेक्षण शुरू किया और 2017 तक ग्लोबल ट्रेकोमा मैपिंग प्रोजेक्ट और ट्रॉपिकल डेटा के सहयोग से पूरे देश में इस बीमारी की मैपिंग कर ली।
इसके साथ ही ट्रेकोमा नियंत्रण को राष्ट्रीय नेत्र स्वास्थ्य कार्यक्रम में लगातार शामिल किया गया।
ट्रेकोमा को खत्म करने के लिए सेनेगल ने डब्ल्यूएचओ की 'सेफ' रणनीति अपनाई, जिसमें सर्जरी, एंटीबायोटिक, चेहरे की सफाई और पर्यावरण में सुधार शामिल थे। इससे देश के 24 जिलों में 28 लाख लोगों को इलाज और जागरूकता का लाभ मिला। फाइजर की ओर से दान की गई एजिथ्रोमाइसिन दवा का व्यापक वितरण भी इसमें शामिल था।
भारत ने 2024 में हासिल की थी यह उपलब्धि
गौरतलब है कि इससे पहले, 2004 में सेनेगल को गिनी वर्म रोग से मुक्त भी घोषित किया गया था। अपनी इस उपलब्धि के साथ सेनेगल अब वह उन 25 देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है जहां ट्रेकोमा को स्वास्थ्य समस्या के रूप में समाप्त किया जा चुका है।
इन देशों में भारत के साथ-साथ चीन, नेपाल, घाना और मोरक्को भी शामिल हैं। बता दें कि भारत भी इस बीमारी से मुक्त हो चुका है। भारत ने 2024 में यह उपलब्धि हासिल की थी।
सेनेगल के स्वास्थ्य एवं सामाजिक कार्य मंत्री डॉक्टर इब्राहीमा साय का कहना है, "गिनी वर्म रोग के उन्मूलन के 21 साल बाद, आज हम ट्रेकोमा से भी जीत का जश्न मना रहे हैं। यह नया मील का पत्थर हमें याद दिलाता है कि हमारा सर्वोपरि लक्ष्य सेनेगल को उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों से मुक्त रखना है।"
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक ट्रेकोमा अभी भी दुनिया के 32 देशों में स्वास्थ्य के लिए समस्या बना हुआ है। आज भी 10 करोड़ से ज्यादा लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं जहां इस बीमारी के उपचार के लिए हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
विशेषकर अफ्रीका, मध्य और दक्षिण अमेरिका, एशिया, पश्चिमी प्रशांत और मध्य पूर्व के सबसे कमजोर और ग्रामीण इलाकों में यह समस्या कहीं ज्यादा विकट है। वहीं अफ्रीकी ट्रेकोमा से असमान रूप से प्रभावित है, इस बीमारी का 90 फीसदी बोझ अकेले अफ्रीका में है। डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि वो आगे भी सेनेगल में निगरानी और रोकथाम को समर्थन देना जारी रखेगा ताकि बीमारी की वापसी न हो।
देखा जाए तो बीते कुछ वर्षों में ट्रेकोमा के खिलाफ बड़ी प्रगति हुई है। 2014 में जहां 18.9 करोड़ लोगों को एंटीबायोटिक इलाज की जरूरत थी, वहीं 2024 में यह आंकड़ा घटकर 9.3 करोड़ रह गया है, यानी इस दौरान इसमें 51 फीसदी की गिरावट आई है।
देखा जाए तो सेनेगल की यह ऐतिहासिक जीत सिर्फ एक बीमारी के अंत की नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयास, राजनीतिक इच्छाशक्ति और मानवीय जज्बे की मिसाल है। जहां एक सदी तक अंधकार था, वहां अब उम्मीद की रौशनी है। जीत की यह कहानी उन देशों के लिए प्रेरणा है जो अभी भी ट्रेकोमा से जूझ रहे हैं।