सड़ते दांत, सूजे मसूड़े और मुंह का कैंसर यह कुछ मुंह की ऐसी बीमारियां है जिनसे भारत सहित दुनिया की 45 फीसदी से ज्यादा आबादी पीड़ित है। देखा जाए तो दुनिया भर में करीब 350 करोड़ लोग इन बीमारियों से ग्रस्त हैं। देखा जाए तो दुनिया की सबसे कमजोर आबादी इससे सबसे ज्यादा पीड़ित है।
अनुमान है कि इनमें से करीब 75 फीसदी प्रभावित आबादी निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रह रही है। यह जानकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा आज 18 नवंबर 2022 को जारी 'ग्लोबल ओरल हेल्थ स्टेटस' रिपोर्ट में सामने आई है।
पता चला है कि 194 देशों के आंकड़ों पर आधारित यह रिपोर्ट वैश्विक स्तर पर मुंह के रोगों की पहली व्यापक तस्वीर प्रस्तुत करती है। रिपोर्ट में सामने आया है कि पिछले 30 वर्षों के दौरान मुंह से सम्बंधित रोगों के वैश्विक मामलों में 100 करोड़ की वृद्धि हुई है। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि आज भी बहुत से लोगों के पास इन रोगों की रोकथाम और उपचार तक पहुंच नहीं है।
इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस का कहना है कि, "वैश्विक स्तर पर लंबे समय से मौखिक स्वास्थ्य की उपेक्षा की गई है, लेकिन इस रिपोर्ट में बताए लागत प्रभावी उपायों के साथ कई मौखिक रोगों को रोका और उनका इलाज किया जा सकता है।"
रिपोर्ट के मुताबिक सबसे आम मुंह का रोग दांतों की सड़न, मसूढ़ों की गंभीर बीमारी, दांतों को हुआ नुकसान और मुंह के कैंसर हैं। देखा जाए तो दांतो की सड़न एक ऐसी बीमारी है जिससे दुनिया भर में करीब 250 करोड़ लोग पीड़ित हैं। वहीं मसूढ़ों की गंभीर बीमारियां इसके बाद दूसरे स्थान पर हैं, जिससे करीब 100 करोड़ लोग दुनिया भर में ग्रस्त हैं।
भारत में दर्ज की जाती हैं मुंह के कैंसर से होने वाली 42 फीसदी मौतें
इतना ही नहीं रिपोर्ट से पता चला है कि दुनिया भर में मुंह के कैंसर के हर साल करीब 3.8 लाख नए मामले सामने आते हैं। यदि अपने देश की बात करें तो 2020 में अकेले भारत मुंह के कैंसर के 1.36 लाख नए मामले सामने आए थे, जबकि इनकी वजह से 75,000 लोगों की मौत हुई थी।
यदि वैश्विक मामलों से इसकी तुलना की जाए तो दुनिया में मुंह के कैंसर के सामने आने वाले कुल मामलों में भारत की हिस्सेदारी करीब 36 फीसदी है। वहीं दुनिया भर में इससे होने वाली करीब 42 फीसदी मौतें भारत में दर्ज की जाती हैं। वहीं यदि ग्लोबल कैंसर ऑब्जर्वेटरी के आंकड़ों पर गौर करें तो देश में सामने आने वाले कैंसर के कुल मामलों में मुंह के कैंसर की हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी है।
भारत में नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम द्वारा जारी आंकड़ों में सामने आया है कि 2021 के दौरान भारत में हर चार में से एक वयस्क पान खातें हैं जिनमें से 10 फीसदी इसके साथ तम्बाकू का भी सेवन करते हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में लोग पान और तम्बाकू का सेवन करने के कारण कैंसर से ग्रस्त होते हैं।
रिपोर्ट में मौखिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में मौजूद असमानताओं को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है। इसका स्पष्ट उदाहरण है कि इन बीमारियों से पीड़ित हर चार में से तीन लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं। देखा जाए तो यह बीमारियां सबसे कमजोर और वंचित लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रह है। कम आय वाले, विकलांग, वृद्ध और गांवो में रहने वाले लोग इसके सबसे ज्यादा बोझ तले दबे हैं।
देखा जाए तो असमानता का यह पैटर्न अन्य गैर-संचारी रोगों जैसे कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह और मानसिक विकारों के समान ही है। इसके लिए चीनी का सेवन, सभी तरह की तम्बाकू का उपयोग, शराब का सेवन आदि जिम्मेवार हैं।
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि इसकी भारी लागत पहले ही वित्तीय बोझ तले लोगों की समस्याओं को और बढ़ा सकती हैं। ऊपर से सुविधाओं का आभाव भी लोगों के इलाज को और मुश्किल बना रहा है। अपर्याप्त जानकारी और निगरानी के चलते बीमारी कहीं ज्यादा बढ़ जाती है।
ऐसे में इससे निपटने के लिए डब्लूएचओ ने इससे निपटने के लिए अनेक उपाय सुझाए हैं, जिनमें देशों को अपनी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में मौखिक स्वास्थ्य सेवाओं को शामिल करना शामिल है।