
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मेनिनजाइटिस की पहचान, इलाज और देखभाल के लिए पहले वैश्विक दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन दिशानिर्देशों का मकसद इस बीमारी की समय रहते पहचान, सही इलाज और रोगियों को बेहतर देखभाल प्रदान देना है ताकि इस घातक बीमारी से होने वाली मौतों और अपंगता को कम किया जा सके।
इस मौके पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि मेनिनजाइटिस की पहचान और प्रभावी उपचार के लिए तैयार इन नए दिशानिर्देशों की मदद से हर साल होने वाली लाखों मौतों को टाला जा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक दुनियाभर में 2019 के दौरान मेनिनजाइटिस के करीब 25 लाख मामले सामने आए थे। इनमें से 16 लाख मामले तो सिर्फ बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस से जुड़े थे। चिंता की बात है कि यह बीमारी सालाना 2.4 लाख जिंदगियों को निगल रही है।
क्या है मेनिनजाइटिस
गौरतलब है कि मेनिनजाइटिस दिमाग और रीढ़ की हड्डी (मेरुदण्ड) के आसपास मौजूद झिल्लियों में आने वाली सूजन से जुड़ी बीमारी है। यह अक्सर बैक्टीरिया और वायरल संक्रमण के कारण होती है।
यह बीमारी किसी भी आयु के लोगों को अपनी चपेट में ले सकती है। यह एक संक्रामक बीमारी है जो खांसते या छींकते समय निकलने वाली बूंदों या फिर नजदीकी सम्पर्क से फैलती है। इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित निम्न और मध्यम आय वाले देश हो रहे हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक यह बेहद घातक बीमारी है, साथ ही इससे स्वास्थ्य से जुड़ी जटिल समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं। ऐसे में इससे निपटने के लिए तत्काल चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता पड़ती है।
इसके प्रसार की बात करें तो सबसे ज्यादा मामले सब-सहारा अफ्रीका में सामने आते हैं, यही वजह है कि इस क्षेत्र को अक्सर 'मेनिनजाइटिस बेल्ट' के रूप में भी जाना जाता है। यह बेल्ट पश्चिम में सेनेगल और गाम्बिया से लेकर पूर्व में इथियोपिया तक फैली है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो इस बीमारी का सबसे घातक रूप बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस है, जो महज 24 घन्टों में ही मरीज की जान ले सकती है। यह कितनी घातक है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इससे बीमारी का शिकार हर छठे मरीज की मौत हो जाती है।
इतना ही नहीं जो बच जाते हैं उनकी जिंदगी भी कोई आसान नहीं होती। आंकड़े दर्शाते हैं कि इसके शिकार 20 फीसदी मरीजों को लंबे समय तक चलने वाली शारीरिक या मानसिक समस्याएं हो जाती हैं। इसमें बेहद कष्टदायी, जीवन प्रभावित करने वाली विकलांगताएं शामिल हैं।
इस बारे में डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉक्टर ट्रेडोस एडहॉनम गेब्रेयेसस ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस जानलेवा बीमारी है और कई लोगों को यह जीवनभर के लिए प्रभावित कर देती है। ऐसे में नई गाइडलाइन से समय पर इलाज और बेहतर देखभाल मुमकिन हो सकेगी। इससे जानें बचेंगी और स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत होंगी।"
डब्ल्यूएचओ में मस्तिष्क स्वास्थ्य से जुड़ी इकाई के प्रमुख डॉक्टर तरुण दुआ ने जिनीवा में नए दिशानिर्देशों को पेश करते हुए पत्रकारों को जानकारी दी है कि इससे बचाव के लिए टीकाकरण प्रयासों पर अतिरिक्त ध्यान दिया जाना अहम है, ताकि मस्तिष्क के ठीक से काम न करने समेत अन्य गम्भीर समस्याओं से बचाव हो सके।
उनके मुताबिक इस संक्रमण से सुनने की क्षमता में कमी आ जाती है। नतीजन बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो सकती है। लेकिन, अगर इनकी पहचान जल्द से जल्द हो सके तो इसका इलाज किया जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इसके बावजूद, कई देशों में सिर्फ मेनिनजाइटिस ही नहीं, बल्कि कई अन्य बीमारियों के खिलाफ प्रतिरक्षा विकसित करने के लिए, वैक्सीन प्रदान करने के साधन नहीं हैं। साथ ही उनके पास बीमारी की पहचान करने के लिए आवश्यक उन्नत तकनीकों का भी अभाव है।
स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया में आपात हालात, संकट या संघर्ष से प्रभावित देशों की संख्या बढ़ रही है, ऐसे में लोगों को जल्द उपचार नहीं मिल पाता। नतीजतन, मेनिनजाइटिस को पनपने की जगह मिल जाती है। स्वास्थ्य संगठन ने यह भी कहा है कि यह नए दिशानिर्देश, 2030 तक मेनिनजाइटिस को खत्म करने के प्रयासों का हिस्सा हैं, जिसमें इसकी रोकथाम से जुड़े प्रयासों पर विशेष बल दिया गया है।
गाइडलाइन में किन मुद्दों पर दिया गया है जोर
डब्ल्यूएचओ की यह नई गाइडलाइन बच्चों, किशोरों और वयस्कों में मेनिन्जाइटिस के इलाज और देखभाल से जुड़ी है। इसमें बीमारी की पहचान, एंटीबायोटिक थेरेपी, सपोर्टिव केयर और बीमारी के बाद देखभाल की पूरी प्रक्रिया बताई गई है। यह गाइडलाइन खासतौर पर कमजोर और मध्यम आय वाले देशों के लिए तैयार की गई है ताकि वहां भी सही इलाज और देखभाल की सुविधा उपलब्ध हो सके।
बता दें कि 2030 तक मेनिनजाइटिस को हराने का लक्ष्य रखा गया था। इसके लिए डब्ल्यूएचओ ने 2020 में 'डिफीटिंग मेनिनजाइटिस बाय 2030' योजना शुरू की थी। इस योजना का उद्देश्य के बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस को जड़ से खत्म करना है।
इसके तहत 2030 तक मेनिनजाइटिस के जिन मामलों को वैक्सीन की मदद से रोका जा सकता है उनमें 50 फीसदी की किम लाना है। साथ ही इसकी वजह से होने वाली 70 फीसदी मौतों को रोकना है। साथ ही बीमारी की वजह से मरीजों में दिव्यांगता और अन्य समस्याओं को कम करना है।
इसके तहत, साझेदार संगठनों के साथ मिलकर देशों को बीमारी से जुड़े आंकड़े जुटाने और उसका विश्लेषण करने के लिए समर्थन दिया जाएगा। डब्ल्यूएचओ ने जल्दी पहचान और इलाज पर जोर दिया है। साथ ही रोकथाम पर ध्यान देने और वैक्सीनेशन को बढ़ावा देने को भी अहम बताया है। साथ ही इस बीमारी से निपटने के लिए जागरूकता को बढ़ावा देने के साथ सरकारों की भागीदारी पर भी जोर दिया जाएगा।
ये दिशा-निर्देश मुख्य रूप से आपातकालीन, इनपेशेंट और आउटपेशेंट सेवाओं सहित प्रथम या द्वितीय स्तर की स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों और पेशेवरों के लिए हैं। इनमें डॉक्टर, नर्सें और स्वास्थ्य कर्मी शामिल हैं।
साथ ही ये दिशा-निर्देश नीति-निर्माताओं, स्वास्थ्य योजनाकारों, मेडिकल कॉलेजों, गैर सरकारी संगठनों और स्वास्थ्य मुद्दों पर काम करने वाले अन्य संगठनों को भी क्षमता निर्माण, योजना बनाने, प्रशिक्षण और शोध में मदद करने के लिए निर्देशित किए गए हैं।