अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस: जनता की आवाज से कार्रवाई तक

लोकतंत्र दिवस हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र जनता का है और मानवाधिकारों की वास्तविकता सुनिश्चित करने का माध्यम है।
ऐसे समय में जब लोकतंत्र पर दबाव है, इसे मजबूत करने के लिए संवाद, पारदर्शिता और वैश्विक सहयोग सबसे बड़ी जरूरत है।
ऐसे समय में जब लोकतंत्र पर दबाव है, इसे मजबूत करने के लिए संवाद, पारदर्शिता और वैश्विक सहयोग सबसे बड़ी जरूरत है।फोटो साभार: आईस्टॉक
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Summary
  • लोकतंत्र दिवस 2025 – आज 15 सितंबर को मनाया जा रहा है, स्थापना को 18 वर्ष पूरे।

  • यूएन का आयोजन – “फ्रॉम वॉइस टू एक्शन” कार्यक्रम न्यूयॉर्क मुख्यालय में।

  • वैश्विक चुनौतियां – जलवायु परिवर्तन, भ्रामक सूचना, शांति और विकास पर संकट।

  • लोकतंत्र पर दबाव – तख्तापलट, पापुलिज्म और संस्थाओं पर भरोसा घट रहा है।

  • तीन प्राथमिकताएं – संवाद की रक्षा, युवाओं और विपक्ष को बढ़ावा और विश्वास-शांति का निर्माण।

हर साल 15 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया जाता है। 2025 में यह दिन खास है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2007 में स्थापित किए गए इस दिवस को 18 साल पूरे हो रहे हैं। इस दिन का उद्देश्य है लोगों को यह याद दिलाना कि लोकतंत्र जनता की आवाज है और यह मानवाधिकारों को साकार करने का सबसे प्रभावी रास्ता है।

इस साल संयुक्त राष्ट्र के द्वारा "फ्रॉम वॉइस टू एक्शन" या "आवाज से कार्रवाई तक" नामक विशेष कार्यक्रम न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय में आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का मकसद लोकतांत्रिक भागीदारी को मजबूत करना, लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भूमिका को उजागर करना।

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ऐसे समय में जब लोकतंत्र पर दबाव है, इसे मजबूत करने के लिए संवाद, पारदर्शिता और वैश्विक सहयोग सबसे बड़ी जरूरत है।

आज जब नागरिक स्थान सिकुड़ रहा है और भ्रामक सूचनाएं बढ़ रही हैं, ऐसे समय में विश्वास, संवाद और साझा निर्णय लेना पहले से अधिक जरूरी हो गया है।

मौजूदा चुनौतियां

आज की दुनिया कई संकटों से जूझ रही है – जलवायु परिवर्तन अरबों लोगों के जीवन को खतरे में डाल रहा है। सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की प्रगति धीमी हो गई है। शीत युद्ध की समाप्ति के 35 साल बाद भी दुनिया फिर से विरोधी गुटों में बंटती नजर आ रही है। हालांकि वैश्विक सहयोग अब भी जलवायु परिवर्तन, महामारी, संघर्ष और व्यापार विवादों जैसे मुद्दों के समाधान में अहम है।

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ऐसे समय में जब लोकतंत्र पर दबाव है, इसे मजबूत करने के लिए संवाद, पारदर्शिता और वैश्विक सहयोग सबसे बड़ी जरूरत है।

लोकतंत्र पर बढ़ता दबाव

लोकतंत्र हमेशा से न्याय, शांति और समान विकास का रास्ता दिखाता रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में लोकतांत्रिक संस्थाओं पर दबाव बढ़ा है। कई क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक प्रगति ठहर गई है, जनता का भरोसा घट रहा है और तख्तापलट की घटनाएं फिर से सुर्खियों में हैं।

नई पीढ़ी को लोकतंत्र के फायदे अब पहले जितने स्पष्ट नहीं लगते। यही वजह है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करना आज का सबसे अहम कार्य है।

अंतर-संसदीय संघ (आईपीयू) और संयुक्त राष्ट्र की भूमिका

अंतर-संसदीय संघ (आईपीयू) का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र इस दिशा में अहम भूमिका निभा सकता है। यह न केवल संवाद का मंच है बल्कि तनाव और गलतफहमियां कम करने का माध्यम भी है। साथ ही यह ज्ञान और अनुभव को देशों तक पहुंचाने का भरोसेमंद जरिया है। संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ पर आईपीयू मानता है कि उसका योगदान पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

आईपीयू के अनुसार लोकतंत्र मजबूत करने के लिए तीन बातें अहम हैं

संवाद की रक्षा – लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत संवाद है। संसद इस प्रक्रिया का केंद्र है, जहां विभिन्न विचार मिलकर बेहतर समाधान देते हैं। लेकिन नफरत भरी भाषा और गलत सूचनाएं इस संवाद को नुकसान पहुंचा रही हैं।

युवा और विपक्ष को बढ़ावा – लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने के लिए युवा नेताओं, विपक्षी दलों, मीडिया और नागरिक समाज में निवेश जरूरी है।

विश्वास और शांति का निर्माण – लोकतंत्र तभी सफल होगा जब संवाद को कमजोरी नहीं बल्कि शांति और सहयोग की बुनियाद माना जाएगा।

अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस हमें यह याद दिलाता है कि लोकतंत्र सिर्फ एक शासन प्रणाली नहीं, बल्कि एक जीवंत शक्ति है। यह लोगों की भागीदारी, समानता, न्याय और शांति की गारंटी देता है। ऐसे समय में जब लोकतंत्र पर दबाव है, इसे मजबूत करने के लिए संवाद, पारदर्शिता और वैश्विक सहयोग सबसे बड़ी जरूरत है।

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