सत्ता के गलियारों से दूर महिलाएं, 113 देशों में कभी किसी महिला के हाथ नहीं आई देश की बागडोर

इसकी एक झलक भारत में हाल ही में बनी कैबिनेट में भी देखी जा सकती है, जिसमें 32 कैबिनेट मंत्रियों में केवल दो महिलाएं हैं। वहीं नवनिर्वाचित 46 राजयमंत्रियों में महज पांच महिलाओं को शामिल किया गया है
केन्या के राष्ट्रपति डॉक्टर विलियम रुटो के राष्ट्रपति भवन में औपचारिक स्वागत के दौरान राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी; फोटो: विदेश मंत्रालय/फ्लिकर
केन्या के राष्ट्रपति डॉक्टर विलियम रुटो के राष्ट्रपति भवन में औपचारिक स्वागत के दौरान राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी; फोटो: विदेश मंत्रालय/फ्लिकर

भले ही दुनिया में महिलाओं की समानता को लेकर कितनी भी बड़ी-बड़ी बाते की जाती हों लेकिन सच यही है कि अभी भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा नहीं मिला है। इसकी एक झलक सत्ता के गलियारों में भी देखी जा सकती है।  

आपको जानकर हैरानी होगी की दुनिया के 113 देशों में कभी कोई महिला राष्ट्राध्यक्ष या सरकार में प्रमुख पद पर नहीं रही। इतना ही नहीं 141 देशों के कैबिनेट मंत्रियों में महिलाओं की हिस्सेदारी एक तिहाई से भी कम है। यह जानकारी यूएन वीमेन द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों में सामने आई है।

हालांकि 2022 के आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया की कुल आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी करीब-करीब आधी (49.7) है। इसके बावजूद सत्ता के गलियारों तक उनकी सीमित पहुंच बड़े सवाल खड़े करती है। देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर निर्णय लेने में महिलाओं का सीमित प्रतिनिधित्व आज भी एक कड़वी सच्चाई है।

हालांकि इस दिशा में प्रगति हुई है, लेकिन इसके बावजूद अभी भी महिलाएं सत्ता और कूटनीति से काफी हद तक दूर हैं। यह कह सकते हैं कि निर्णय लेने वाली शीर्ष भूमिकाओं में आज भी पुरुषों का दबदबा कायम है।

लोकतंत्र के दृष्टिकोण से देखें तो 2024 एक ऐतिहासिक साल है, क्योंकि इससे पहले कभी भी किसी साल में इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने मतदान नहीं किया था। कम शब्दों में कहें तो 2024 इतिहास का सबसे बड़ा चुनावी वर्ष है, लेकिन इसके बावजूद सत्ता में महिलाओं की हिस्सेदारी अब भी कोई खास अच्छी नहीं है।

आज की तारीख में केवल 26 देशों की बागडोर एक महिला के हाथ में है। करीब एक दशक पहले यह आंकड़ा महज 18 था। वहीं एक जनवरी 2024 तक के आंकड़ों को देखें तो दुनिया में महज 23.3 फीसदी मंत्री पद महिलाओं के पास हैं। इससे ज्यादा विडम्बना क्या होगी कि सात देशों की कैबिनेट में कोई महिला प्रतिनिधि नहीं है।  

भारत इस मामले में अपने आप को भाग्यशाली मान सकता है, क्योंकि देश की राष्ट्रपति एक महिला हैं। लेकिन भारत भी इस कड़वी सच्चाई से मुहं नहीं फेर सकता। 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद से अब तक देश में 20 बार प्रधानमंत्री बदले हैं। हालांकि इसके बावजूद केवल दो बार ऐसे मौके आए हैं जब देश की कमान किसी महिला के हाथ में गई हो।

पहले जनवरी 1966 और फिर जनवरी 1980 दो बार महिला प्रधानमंत्री चुनी गई, हालांकि दोनों ही बार यह श्रेय एक ही महिला यानी स्वर्गीय इंदिरा गांधी को मिला है। इसी तरह आजादी के बाद भारत में 15 बार राष्ट्रपति चुने गए, लेकिन उसमें केवल दो बार महिलाओं को यह गौरव मिल सका है।

भारत की नई सरकार के 32 कैबिनेट मंत्रियों में केवल दो महिलाएं

बता दें कि जुलाई 2007 में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्रपति चुनी गई। इसके बाद जुलाई 2022 में श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को पद मिला है। मतलब की इस दौरान 35 बार देश में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री चुने गए हैं, उनमें से केवल तीन बार इन शीर्ष पदों पर कोई महिला बैठी थी। हालांकि यह तब है कि देश की आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी 48.4 फीसदी है।

इसकी एक झलक भारत में हाल ही में बनी कैबिनेट में भी देखी जा सकती है, जिसमें 32 कैबिनेट मंत्रियों में से केवल दो महिलाएं हैं। वहीं नवनिर्वाचित 46 राजयमंत्रियों में महज पांच महिलाओं को शामिल किया गया है। कहीं न कहीं यह आंकड़े देश में निर्णय लेने वाली शीर्ष भूमिकाओं में आज भी पुरुषों के वर्चस्व को उजागर करते हैं।

यदि हाल ही में हुए चुनावों को देखें तो 2019 के मुकाबले 2024 में महिला सांसदों की संख्या घटी है, जहां 2019 में 78 महिलाओं ने लोकसभा चुनाव जीता था, वहीं इस साल यह आंकड़ा घटकर 74 रह गया है। मतलब की अब भी भारत की संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी महज 14 फीसदी के करीब है।

ऐसी ही कुछ स्थिति दुनिया भर में देखी गई है। हाल ही में अन्तर संसदीय संघ द्वारा जारी रिपोर्ट "वीमेन इन पार्लियामेंट" में जारी आंकड़ों को देखें तो संसदों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के प्रयासों की दिशा में 2023 में सुस्त और मिलीजुली प्रगति हुई। 2022 की तुलना में देखें तो इनमें केवल 0.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। देशों की संसद में महिलाओं के वैश्विक अनुपात को देखें तो पिछले साल हुए चुनावों के बाद 26.9 फीसदी पर पहुंच गया।

कूटनीति और विदेशी मामलों में पुरुषों का यह दबदबा संयुक्त राष्ट्र के स्थाई मिशनों तक भी फैला हुआ है, जिसमें महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है। मई 2024 तक, न्यूयॉर्क में 25 फीसदी, जिनेवा में 35 फीसदी और वियना में 33.5 फीसदी स्थाई प्रतिनिधि पद महिलाओं के पास हैं।

यह आंकड़े स्पष्ट तौर पर दर्शाते हैं कि आज भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सभी स्तरों पर महिलाओं का हिस्सेदारी सीमित है और राजनीति में लैंगिक समानता अभी भी कोसों दूर है। इतना ही नहीं आज भी आर्थिक, रक्षा, न्याय और गृह मामलों जैसे नीतिगत क्षेत्रों में पुरुषों का वर्चस्व बना हुआ है।

यूएन वीमेन के मुताबिक नेतृत्व की भूमिका में महिलाओं का चुनाव निष्पक्षता और लैंगिक समानता के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति का संकेत है। यह वैश्विक समस्याओं के समाधान के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

यूएन वीमेन की कार्यकारी निदेशक सिमा बहौस का इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहना है कि जब महिलाएं नेतृत्व करती हैं, तो दुनिया सभी के लिए बेहतर बनाती है। इस साल कई देशों में मतदान हो रहे हैं, ऐसे में हमें शीर्ष पदों पर महिलाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए।" उनके मुताबिक नेतृत्व में महिलाओं की समान भागीदारी सभी के बेहतर जीवन के लिए महत्वपूर्ण है।

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