नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। गौरतलब है कि पूरा मामला देश के विभिन्न राज्यों में बड़े पैमाने पर वन क्षेत्रों पर होते अतिक्रमण से जुड़ा है।
अपने आदेश में ट्रिब्यूनल ने उन सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है, जिन्होंने अब तक वन अतिक्रमण के मुद्दे पर अपना जवाब नहीं दिया है कि वे 31 जुलाई, 2024 से चार सप्ताह के भीतर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को अपना जवाब प्रस्तुत करें। इसके साथ ही अदालत ने पर्यावरण मंत्रालय को अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले इस जानकारी को एकत्र कर कोर्ट में प्रस्तुत करने के लिए कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई 11 नवंबर, 2024 को होनी है।
19 अप्रैल, 2024 को एनजीटी ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से एक तालिका साझा की थी। इसमें उन सभी मुद्दों का जिक्र किया गया था, जिनकी जानकारी प्रस्तुत की जानी थी। इसके साथ ही अदालत ने निर्देश दिया था कि जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने जवाब दाखिल नहीं किया है वे इस तालिका में आवश्यक जानकारी पर्यावरण मंत्रालय के सामने प्रस्तुत करेंगें।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अदालत को जानकारी दी है कि 17 राज्यों से जवाब मिल चुके हैं और अन्य राज्यों से रिपोर्ट का इंतजार है। इसके बाद पूरी जानकारी को एक चार्ट के रूप में संकलित करके न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
अवर्गीकृत जंगलों की स्थिति के बारे में एनजीटी ने राज्य सरकारों से मांगी जानकारी
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 31 जुलाई, 2024 को सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से दो महीने के भीतर अपने राज्यों में अवर्गीकृत वनों की स्थिति पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।
यह मामला 28 अप्रैल, 2024 को अंग्रेजी अखबार द हिंदू में छपी एक खबर के आधार पर ट्रिब्यूनल द्वारा स्वतः संज्ञान में लिया था। यह खबर राज्य विशेषज्ञ समितियों (एसईसी) द्वारा रिपोर्ट दाखिल करने में हुई देरी के कारण भारतीय वनों के 'गायब' होने से संबंधित थी।
खबर के मुताबिक इन समितियों को देश में अवर्गीकृत जंगलों की स्थिति को लेकर अपनी रिपोर्ट दाखिल करनी थी। लेकिन इस देरी की वजह से 27 वर्षों की देरी के चलते जंगलों का एक हिस्सा गायब हो चुका है।
खबर में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 लागू होने से अवर्गीकृत वनों पर असर पड़ेगा। गौरतलब है कि 2016 में टी एन गोदावर्मन थिरुमुलपद के ऐतिहासिक मामले के बाद इन वनों को कानूनी संरक्षण प्राप्त है। लेकिन इस नए अधिनियम के बाद वो वन क्षेत्र कानूनी संरक्षण को खो देंगे। ऐसे में इन जंगलों का उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है, जिससे इनपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
खबर में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि एसईसी रिपोर्ट को आदेश को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाना था। इसमें शब्दकोश के आधार पर "वन" को परिभाषित करना था। इसका मतलब है कि सभी प्रकार के वन, चाहे वे किसी भी स्वामित्व या अधिसूचना स्थिति के हों, उन्हें वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के अंतर्गत शामिल किया जाना था।
परिणामस्वरूप, अवर्गीकृत या माने गए वनों (डीम्ड) का भी अन्य उद्देश्यों के लिए भूमि उपयोग करने से पहले केन्द्र सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होगी। मतलब की यदि किसी परियोजना के लिए इस भूमि का उपयोग जंगल को छोड़ अन्य उद्देश्यों के लिए किया जाता है तो उसके लिए कई स्तरों की समीक्षा के बाद केंद्र से मंजूरी लेना आवश्यक होगा।
खबर के मुताबिक, 23 राज्यों ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी हैं, हालांकि उनमें से महज सत्रह ने ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन किया है। खबर में यह भी कहा गया है कि लगता है कि यह रिपोर्टें जल्दबाजी में तैयार की गई हैं। इनमें अधूरी जानकारी का उपयोग किया गया है। साथ ही इनको तैयार करने के लिए आसानी से उपबल्ध रिकॉर्ड में से अधूरी और असत्यापित आंकड़ों का उपयोग हुआ है।
नजफगढ़ झील के पूरे डूब क्षेत्र को आर्द्रभूमि के रूप में घोषित किया जाना चाहिए: इंटैक
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हरियाणा सरकार की रिपोर्ट पर आपत्ति दर्ज करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक विरासत ट्रस्ट (इंटैक) को चार सप्ताह का समय दिया है। मामला हरियाणा द्वारा नजफगढ़ झील के 75 एकड़ क्षेत्र को आर्द्रभूमि के रूप में अधिसूचित करने से जुड़ा है।
इंटैक का तर्क है कि हरियाणा में नजफगढ़ झील के पूरे डूब क्षेत्र को आर्द्रभूमि के रूप में घोषित किया जाना चाहिए, इसे केवल 75 एकड़ क्षेत्र तक सीमित नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि 22 दिसंबर, 2023 को एनजीटी द्वारा दिए आदेश के मुताबिक दिल्ली ने पहले ही नजफगढ़ झील को आर्द्रभूमि घोषित करने का निर्णय ले लिया है। वहीं अदालत द्वारा 16 फरवरी, 2024 और 25 अप्रैल, 2024 को दिए निर्देशों के बाद हरियाणा सरकार ने एक स्थिति रिपोर्ट दायर की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा ने 75 एकड़ क्षेत्र को आर्द्रभूमि के रूप में अधिसूचित करने का निर्णय लिया है।