

केंद्र सरकार के रजिस्ट्रार ऑफ इंडिया ने एक सर्कुलर जारी कर बताया है कि आगामी 1 अप्रैल 2026 से देश की आठवीं जनगणना का कार्य शुरू होगा। 16 साल के लंबे अंतराल के बाद देश में जनगणना का कार्य शुरू होगा। लेकिन अबूझमाड़ के कई आदिवासी गांव इस बात से चिंतित हैं कि कहीं इस बार उनके गांव को ही जनगणनाकार यानी जनगणना करने वाले कर्मी गायब न कर दें। इस तरह की कई घटनाएं 2011 की जनगणना के दौरान हुई हैं।
डाउन टू अर्थ की टीम ने इस प्रकार के गायब हो चुके अनेक गावों में से एक अबूझमाड़ के आमाटोला गांव को चिन्हित किया है, जिसे 2011 की जनगणना में गायब कर दिया गया। गांव में कुल 17 घर हैं और इनकी जनसंख्या लगभग सौ के आसपास है।
यदि और गांवों की छानबीन की जाएगी तो पता नहीं कितने और ऐसे गांव मिल सकते हैं जो अब सरकारी जनगणना के कागजात से गायब हो चुके हैं। इस संबंध में अबूझमाड़ आदिवासी छात्र संगठन के अध्यक्ष लक्ष्मण मंडावी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि पिछली जनगणना के कर्मचारी कब आए, हमें पता ही नहीं चला। आसपास के गांव वालों ने बताया कि जनगणना कर्मचारी तो आए थे लेकिन वे हमारे गांव नहीं आए, हमारे गांव में ही आपके गांव के घरों के बारे में जानकारी जुटाकर चले गए।
लक्ष्मण ने बताया कि इस संबंध में जब मैंने अधिक छानबीन की तो पता चला कि जनगणना कर्मियों ने हमारे गांव को आसपास के दो गांव क्रमश: कंदाड़ी और ब्रीहेवडा गांवों में समाहित कर दिया। इसका नतीजा है कि अब हमारे इस गांव का ग्राम कोड ही नहीं है। दूसरी ओर, हमारा गांव आधार कार्ड, राशन कार्ड आदि में बकायदा आमाटोला गांव के रूप में ही चिन्हित है।
लक्ष्मण ने बताया कि इस संबंध में मैंने जिला कलक्टर और संबंधित अधिकारियों से पिछले एक दशक के दौरान दर्जनों बार शिकायत की, लेकिन अब तक हमारी समस्या जस की तस बनी हुई है। वे कहते हैं, जैसा कि सरकारी कर्मचारियों की आदत है कि आप उनके पास जाएं तो वे किसी दूसरे के पास भेज कर अपने कर्तव्य को पूरा मान लेते हैं, आप बस एक से दूसरे और तीसरे के बीच घूमते रह जाते हैं।
ध्यान रहे कि यह सिलसिला पिछले 16 सालों से चल रहा है। लक्ष्मण भारी निराशा भरे स्वर में कहते हैं कि ऐसे में जब अगले साल जनगणना शुरू होगी तो एक बार फिर से हमारा गांव अपनी पहचान से दूर हो जाएगा, जिस तरह से हमारे गांव को विलुप्त कर दिया गया, उसी तरह से हमारे यहां रहने की आजादी भी आने वाले समय में खत्म हो जाएगी।
संगठन के एक अन्य सदस्य सोमा ने बताया कि सरकार कहती है कि अबूझमाड़ में 237 गांव हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि जिस प्रकार से आमाटोला गांव को गायब कर दिया, उसी प्रकार आजादी के बाद से यहां भी कितने ही गांव दूसरे गांव में मिला दिए गए होंगे। वह कहते हैं कि इसलिए मुझे सरकार का यह आंकड़ा सही नहीं लगता।
सोमा का कहना है कि इस बार हमारे इलाके में जनगणना का विशेष महत्त्व है। कारण कि शायद पहली बार अबूझमाड़ के ज्यादातर गांवों में जनगणना संभव हो सकेगी। ध्यान रहे कि सरकार के माओवाद उन्मूलन कार्यक्रम के कारण अबूझमाड़ के कोने-कोने में पुलिस बल की पहुंच संभव हुई है। इससे हमारे इलाके के अंदरूनी इलाकों में में भी सरकारी तंत्र की पहुंच बनी है।
ध्यान रहे कि यह तो जनगणना कर्मी के कारण अबूझमाड़ के एक गांव के गायब होने की बात सामने आई। हकीकत यह है कि केवल जगनणनाकर्मी ही गैरजिम्मेदार नहीं हैं बल्कि केंद्र सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की सूची से छत्तीसगढ़ के कुल 708 गांवों के नाम गायब हैं।
इसका कारण बताया गया कि इन गायब गांवों को नगर निगम, नगर पालिका या नगर पंचायत की सीमा में शामिल तो कर लिया गया, लेकिन इसकी नोटिफिकेशन सांख्यिकी विभाग को भेजना ही भूल गए। इस संदर्भ में देखा जाए तो अकेले अबूझमाड़ का इलाका जो कि नारा णपुर और कांकेर जिलों के अंतगर्त आता है, दोनों जगहों से क्रमश: 13-13 गांव गायब पाए गए हैं।