क्या कोरोनावायरस के कारण ‘हंगर हॉटस्पॉट’ बन जाएगा भारत

ऑक्सफेम की नई रिपोर्ट में भारत को उभरते हुए हंगर हॉटस्पॉट के रूप में चिन्हित किया है
क्या कोरोनावायरस के कारण ‘हंगर हॉटस्पॉट’ बन जाएगा भारत
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बिहार की राजधानी पटना में रहने वाली गुड़िया देवी जोकि अपने 12 साल के बेटे के साथ रहती हैं। उन्होंने बताया कि वो एक नर्सिंग असिस्टेंट के रूप में काम करती हैं। पर कोरोनावायरस के कारण हुए लॉकडाउन ने उनसे उनका काम छीन लिया है। एक महीने तक तो मैंने किसी तरह अपने बचाए हुए पैसों से घर चलाया। जब वो चुकने लगे तो अब हम मां बेटे दिन में एक बार खाकर गुजारा कर रहे हैं। पर मुझे डर है कि यदि जल्द ही सब कुछ ठीक न हुआ तो हमारे पास खाने को कुछ नहीं बचेगा। मैं जिस किराए के मकान में रहती हूं, उसका भाड़ा भी नहीं दे पा रही। मुझे डर है कि कहीं मेरा मकान मालिक मुझे घर से निकल ही न दे।

यह स्थिति सिर्फ किसी एक गुड़िया देवी की नहीं है। देश में न जाने कितने परिवार हैं जो कोरोनावायरस के कारण हुए लॉकडाउन से पूरी तरह बर्बाद हो चले हैं। एक तरफ काम छूटने की पीड़ा ऊपर से इस बीमारी का खौफ। एक आम भारतीय परिवार दोतरफा मार का शिकार है।       

भारत में भुखमरी और कुपोषण कोई नई बात नहीं है। देश बरसों से इन दोनों का दंश झेल रहा है। आंकड़ों के अनुसार 2019 में देश के करीब 19.5 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार हैं। जोकि देश की आबादी का 14.5 फीसदी हिस्सा है। ऐसे में यह ऑक्सफेम द्वारा प्रकाशित नई रिपोर्ट और भी बुरी स्थिति की ओर इशारा कर रही है। इस रिपोर्ट ने भारत को उभरते हुए ‘हंगर हॉटस्पॉट’ के रूप में चिन्हित किया है।   

भ्रष्ट्राचार और सिस्टम की कमी के चलते नहीं पहुंच सकी जरूरतमंदों तक मदद

रिपोर्ट के अनुसार देश की एक बड़ी आबादी करीब 70 फीसदी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। देश में आज भी अमीर गरीब के बीच में एक बड़ी खाई है। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी निवेश की कमी है। इस महामारी ने एक बार फिर देश में खाद्य और सामाजिक सहायता वितरण की पोल खोल दी है। गरीबी, भ्रष्ट्राचार और सिस्टम की कमी के चलते देश में जरूरतमंदों तक जरुरी मदद नहीं पहुंच पाई थी। खाद्य असुरक्षा के पीछे की एक बहुत बड़ी वजह अनिश्चित और बदलती जलवायु भी है।

भारत में 23 मार्च 2020 को जब अचानक से लॉकडाउन की घोषणा की गई तो उसने उन लाखों लोगों को सकते में डाल दिया जो पहले से ही भुखमरी की कगार पर थे। देश में अपने घरों से दूर करीब 4 करोड़ प्रवासी मजदूर जो अपना घर-बार छोड़ शहरों-कस्बों में आए थे। उनमें से कुछ मजदूरी करते थे। जबकि कुछ घरेलु कामकाज और कुछ पटरी पर छोटा-मोटा सामान बेचकर अपना गुजर बसर कर रहे थे। यह रोज कमाने वाले लोग थे। जो दिनभर में जो कमाते थे उसी से उनका घर चलता था। इनके पास न कोई बचत थी न कोई जमापूंजी, जिसके बलपर वो लॉकडाउन में अपना गुजरा करते। रातों रात यह मजदूर बेरोज़गार हो गए थे। इस महामारी ने इन्हें भूख और बीमारी के बीच उन झुग्गी-झोपड़ियों में बंद रहने को मजबूर कर दिया था, जिन्हें वो अपना घर मानते हैं। यही वजह थी की बीमारी और लॉकडाउन के बावजूद बिना किसी साधन के एक बड़ा जनसैलाब अपने गावों को लौटने के लिए पैदल ही निकल पड़ा था। जबकि परिवहन व्यवस्था को पहले ही बंद कर दिया गया था।

आदिवासी, किसानों और मजदूर तबके पर पड़ा सबसे ज्यादा असर

लॉकडाउन की बंदिशों की वजह से किसान अपनी फसल नहीं काट पाए। मजदूरों की कमी ने किसानों को मजबूरन अपनी फसल को खेत में ही सड़ने के लिए छोड़ना पड़ा। जिसकी वजह से किसानों की आय और ग्रामीण खाद्य सुरक्षा बहुत ज्यादा असर पड़ा है। उदाहरण के लिए आदिवासियों और वनवासियों को ही ले लीजिये जो अपनी अधिकांश वार्षिक आय वन उत्पादों जैसे इमली और करंज के बीजों की बिक्री से कमाते हैं। पर प्रतिबंधों के चलते व्यापारी उनसे यह नहीं खरीद पाए। जिसकी वजह से उनको अपनी आय से वंचित होना पड़ा। 

लॉकडाउन के बाद 12 राज्यों के 5000 परिवारों पर किये सर्वे के अनुसार इनमें से आधे परिवारों ने भरपेट खाना छोड़ दिया था। जबकि एक-तिहाई ने माना कि उन्हें भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर होना पड़ा है। जबकि उनमें से कई परिवार कर्जदार बन चुके हैं जिसे चुकाने के लिए उन्हें अपनी संपत्ति तक बचनी पड़ी है। जबकि 22   फीसदी ने माना की उन्हें घर चलाने के लिए अपने मवेशियों को बेचना पड़ा है जबकि 16 फीसदी ने ब्याज पर पैसे उधार लिए हैं। 

हालांकि भारत सरकार ने व्यापार और परिवारों को बचाने के लिए 169,064 करोड़ रुपए (2,250 करोड़ डॉलर) के पैकेज की घोषणा की है। लेकिन भ्रष्ट्राचार और योजना की कमी के चलते कितना जरूरतमंदों तक पहुंचेगा यह सोचने का विषय है। जहां तक स्थिति की बात है अभी भी लाखों जरूरतमंदों तक मदद नहीं पहुंच पाई है। गरीब तबके के करीब 9.5 करोड़ बच्चों तक एकाएक बंद हुई आंगनवाड़ियों के कारण मिड डे मील नहीं मिल पा रहा है, जोकि उनमें से कइयों की भूख मिटाने का एकमात्र जरिया है।

बाकी दुनिया में कैसी है स्थिति

रिपोर्ट के अनुसार अनुमान है कि इस महामारी से उत्पन्न हुए संकट के कारण भुखमरी साल के अंत तक हर रोज 12,000 लोगों की जान लेगी।  रिपोर्ट 'द हंगर वायरस' के अनुसार इस महामारी के कारण जो सामाजिक-आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न हुई है उसके कारण इस साल में करीब 12.1 करोड़ लोग भुखमरी का शिकार बन जाएंगे। इसकी सबसे बड़ी वजह बेरोजगारी, खाद्य उत्पादन में गिरावट और खाद्य सहायता में आई कमी है।

रिपोर्ट के अनुसार यमन की करीब 53 फीसदी, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो की 26 फीसदी, अफ़ग़ानिस्तान 37 फीसदी, वेनेज़ुएला 32 फीसदी, बुर्किना फासो, माली, मॉरिटानिया, नाइजर, चड, सेनेगल और नाइजीरिया की 5 फीसदी, इथिओपिया 27 फीसदी, दक्षिण सूडान 61 फीसदी, सीरिया 36, सूडान 14 और हैती की करीब 35 फीसदी आबादी 2019 में भुखमरी का शिकार थी। ऐसे में इस महामारी के कारण इन देशों में भुखमरी के और बढ़ जाने के आसार हैं।

विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के अनुसार 2019 में करीब 82.1 करोड़ लोग भुखमरी से त्रस्त थे। जिनमें से 14.9 करोड़ लोग इसकी गंभीर स्थिति का सामना कर रहे थे। पर अनुमान है कि 2020 के ख़त्म होते होते यह संख्या 82 फीसदी बढ़कर 27 करोड़ पर पहुंच जाएगी। जिसके लिए सीधे तौर पर यह महामारी और उससे उत्पन्न हुआ संकट जिम्मेवार है। ऐसे में इस महामारी से उपजे सामाजिक आर्थिक संकट से निपटना और उबरना महत्वपूर्ण है। अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के कई हिस्सों में पैदावारी घट जाएगी और खाद्य कीमतों में वृद्धि हो जाएगी। आईपीसीसी का अनुमान है अगले 30 सालों में जलवायु परिवर्तन के चलते 18.3 करोड़ अतिरिक्त लोग भुखमरी का शिकार हो जाएंगे। दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन खाद्य सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है। जिसको रोकना जरुरी है।    

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