आवरण कथा: अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स, स्वाद के पीछे छिपा स्वास्थ्य का खतरा

यूएफपी यानी अल्ट्रा प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ जानबूझकर इस तरह बनाए जाते हैं कि वे हमारे दिमाग को प्रभावित करके हमें बार-बार और जरूरत से ज्यादा खाने के लिए मजबूर करें
आवरण कथा: अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स, स्वाद के पीछे छिपा स्वास्थ्य का खतरा
इलस्ट्रेशन: योगेन्द्र आनंद / सीएसई
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सारांश
  • अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स जैसे चिप्स और कुकीज स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन रहे हैं।

  • ये खाद्य पदार्थ दिमाग के आनंद केंद्र को सक्रिय करते हैं, जिससे खाने की लत बढ़ती है।

  • इनका अधिक सेवन मधुमेह और मोटापे जैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ा सकता है।

  • नोवा फूड क्लासिफिकेशन सिस्टम इन्हें चार श्रेणियों में वर्गीकृत करता है।

समोसे के बारे में सोचिए, जो एक लोकप्रिय तला हुआ स्नैक है और मैदा से बना होता है। इसमें आलू, मटर, नमक और मसाले भरे होते हैं। किसी स्थानीय दुकान पर बना समोसा प्रोसेस्ड माना जाता है, यानी यह अपने प्राकृतिक रूप से बदल दिया गया है। प्रोसेस्ड फूड का अधिक सेवन मधुमेह जैसी बीमारियों के जोखिम को बढ़ा देता है क्योंकि इसमें नमक, चीनी और ट्रांस फैट की मात्रा अधिक होती है। हालांकि जब समोसों का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है और इसमें प्रिजर्वेटिव, फ्लेवर एन्हांसर्स, स्टेबलाइजर्स और एंटीकेकिंग एजेंट डाले जाते हैं ताकि वे सुपरमार्केट की शेल्फ पर हफ्तों या महीनों तक टिक सकें तो उन्हें अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (यूपीएफ) की श्रेणी में रखा जाता है।

खाद्य पदार्थ की श्रेणी का यह भेद नोवा फूड क्लासिफिकेशन सिस्टम से पता चलता है, जिसे 2009 में ब्राजील के साओ पाउलो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बनाया। इस टीम का नेतृत्व महामारी विज्ञानी और पोषण विशेषज्ञ कार्लोस ऑगस्टो मोंतेइरो ने किया, जिन्होंने यूपीएफ शब्द भी गढ़ा। यह प्रणाली, जो अब व्यापक रूप से मानक बन चुकी है, दरअसल खाद्य पदार्थों को उनकी प्रकृति, प्रसंस्करण की सीमा और उद्देश्य के आधार पर चार श्रेणियों में वर्गीकृत करती है। शुरुआत में कुछ खाद्य पदार्थ मूल सामग्री के साथ नमक, चीनी या वसा जोड़कर बनाए जाते थे और इन्हें केवल प्रसंस्कृत माना जाता था। मिसाल के तौर पर किसी स्थानीय रेस्टोरेंट में ताजे आटे, पनीर, मांस और सब्जियों से बना पिज्जा। लेकिन समय के साथ इन व्यंजनों की संरचना बदल गई अब आप तैयार आटा या पूरी तरह से फ्रोजन पिज्जा को किराने की दुकानों में हासिल कर सकते हैं, जिससे यह यूपीएफ श्रेणी में आ गए। यहां तक कि बर्गर, फ्रेंच फ्राइज, केक और पाई जैसी फास्ट फूड दुकानों में मिलने वाली चीजें, जो घर में बनी लगती हैं असल में यूपीएफ हैं क्योंकि उनके निर्माण में उपयोग किए गए सामग्री और प्रक्रियाएं उन्हें ताजगी से वंचित कर देती हैं। संयुक्त राष्ट्र की खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की यूपीएफ की परिभाषा 11 पैराग्राफ की है। यह संभवतः सबसे लंबी है, जो यह भी बताती है कि यूपीएफ बनाने में ऐसे खाद्य पदार्थों का उपयोग किया जाता है जिनका सामान्य रसोई में बहुत कम या कभी उपयोग नहीं होता। इसमें विभिन्न प्रकार की चीनी (फ्रक्टोज, हाई फ्रक्टोज कॉर्न सिरप, फ्रूट जूस कंसंट्रेट, माल्टोडेक्सट्रिन, डेक्सट्रोज, लैक्टोज, घुलनशील या अघुलनशील फाइबर), संशोधित तेल (हाइड्रोजनीकृत या इंटरस्टेरिफाइड तेल), हाइड्रोलाइज्ड प्रोटीन, ग्लूटेन, व्हे प्रोटीन और “मैकेनिकलली सेपरेटेड मीट” शामिल हैं। सरल शब्दों में यूपीएफ में चीनी, नमक, वसा और तेल उच्च मात्रा में और सावधानीपूर्वक संतुलित अनुपात में होते हैं जो दिमाग के आनंद की अनुभूति वाले केंद्र या ब्लिस प्वाइंट्स को सक्रिय करते हैं।

लत के लिए डिजाइन

इस यूपीएफ के तंत्र के बारे में विस्तार से बताते हुए अमेरिका के ओरेगन रिसर्च इंस्टीट्यूट की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एरिका एम लाफाटा कहती हैं कि यह खाद्य पदार्थ दिमाग के आनंद केंद्र को सटीक रूप से प्रभावित करने के लिए इंजीनियर किए गए हैं, खासकर जब इनमें परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट और वसा होती हैं। यह नरम होते हैं और छोटे कणों में होते हैं, जिससे लोग कम चबाते हैं और तेजी से खाते हैं। खाद्य लत पर सक्रिय रूप से शोध करने वाली लफाटा कहती हैं, “यह तेज डिलीवरी दिमाग के न्युक्लियस अक्यूम्बेंस जैसे क्षेत्रों में डोपामाइन रिलीज को ट्रिगर करती है। यही वह रिवॉर्ड सिस्टम है जिसे नशीले पदार्थ भी सक्रिय करते हैं।

यूपीएफ में मुंह और सिर से आने वाले तृप्ति संकेत कमजोर होते हैं क्योंकि यह जल्दी टूट जाते हैं। यूपीएफ रक्त शर्करा में तेज उछाल भी पैदा करते हैं। समय के साथ, तेज और शक्तिशाली डोपामाइन गहरी आदतें और भावनात्मक संबंध बनाता है, दिमाग को यूपीएफ के संकेतों के प्रति अधिक संवेदनशील और प्राकृतिक खाद्य या गैर-खाद्य संकेतों के प्रति कम संवेदनशील बना देता है।

मिसाल के लिए, कल्पना कीजिए कि कोई व्यक्ति अपने पसंदीदा डोनट की दुकान के पास से गुजर रहा है। भले ही वह भूखा न हो, उसका दिमाग मीठी खुशबू पर प्रतिक्रिया करता है और डोनट का “इनाम” मिलने की उम्मीद करता है। यह खाने की तलब को बढ़ाता है। समय के साथ, यह तलब इतनी बढ़ सकती है कि व्यक्ति अन्य भोजन को अस्वीकार कर दे या डोनट न मिलने पर क्रोधित और उदास महसूस करे।

यूपीएफ वसा और कार्बोहाइड्रेट दोनों संवेदक संकेतों को एक साथ सक्रिय करते हैं, जबकि अधिकांश प्राकृतिक खाद्य केवल एक को सक्रिय करते हैं। मॉन्ट्रियल में मैकगिल यूनिवर्सिटी हेल्थ सेंटर की वरिष्ठ वैज्ञानिक डाना स्मॉल कहती हैं, “अगर आपके पास 100 कैलोरी हैं, जिसमें 50 वसा से और 50 कार्बोहाइड्रेट से है तो आपको डोपामाइन प्रतिक्रिया अधिक मिलेगी जबकि यदि वह पूरी तरह 100 कैलोरी वसा या फिर 100 कैलोरी कार्ब हो तो डोपामाइन प्रतिक्रिया कम मिलेगी।”

डोपामाइन रिलीज दो बार होती है। पहली बार तब जब भोजन का स्वाद लिया जाता है और दूसरी बार कुछ मिनट बाद, जब शरीर उस भोजन में मौजूद ऊर्जा का पता लगाता है। स्मॉल बताती हैं, “पहली बार वसा और कार्बोहाइड्रेट में उच्च चीजों के साथ डोपामाइन रिलीज होती है, लेकिन दूसरी बार यह और भी मजबूत होती है। जितनी अधिक ऊर्जा आप लेते हैं, प्रतिक्रिया उतनी ही तेज होती है।” इसका मतलब है कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खाने की आदत को स्वचालित और बार-बार बढ़ावा देने की अधिक संभावना रखते हैं, क्योंकि यह दिमाग को संकेत देता है कि इसे शक्तिशाली ऊर्जा इनाम मिल रहा है।

2023 में स्मॉल और 11 अन्य शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन प्रकाशित किया जिसमें प्रतिभागियों को उनके नियमित आहार के साथ आठ हफ्तों तक दिन में दो बार उच्च वसा/उच्च शर्करा दही या कम वसा/कम शर्करा दही दिया गया। सेल मेटाबॉलिज्म में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, उच्च वसा और उच्च शर्करा स्नैक खाने वाले लोगों में समय के साथ कम वसा वाले भोजन की पसंद और सेवन कम हो गया, चाहे उनमें वजन या अन्य मेटाबोलिक संकेतकों में कोई बदलाव न हुआ हो लेकिन कम वसा और कम शर्करा आहार लेने वाले लोगों में यह नहीं देखा गया।

स्मॉल बताती हैं, “शरीर में एक संवेदक तब सक्रिय होता है जब शर्करा अवशोषित होती है। यह पता लगाता है कि शर्करा ईंधन के रूप में उपयोग हो रही है और दिमाग के उन क्षेत्रों को संकेत भेजता है जहां डोपामाइन पाया जाता है। डोपामाइन सीखने वाले सर्किट को सक्रिय करता है जिससे उस विशेष भोजन का मूल्य बढ़ जाता है यदि उसमें बहुत शर्करा हो।” एक अलग संवेदक वसा के प्रति भी यही प्रतिक्रिया करता है।

यह दिमागी सर्किट हमारी जागरुकता के बाहर काम करते हैं और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इन्हें भोजन की “स्वादिष्टता” सक्रिय नहीं करती। स्मॉल कहती हैं, “यूपीएफ का यह अचेतन सर्किट सक्रिय करना आदत सीखने को बढ़ावा देता है।” हालांकि, वह नहीं मानती कि यूपीएफ को नशे वाला कहा जा सकता है। शोधकर्ताओं ने यह भी देखा कि प्रतिभागियों ने मिल्कशेक के “संकेत” (जैसे देखना या सुनना) मिलने पर कैसे प्रतिक्रिया दी और फिर वास्तव में इसे पीया। उन्होंने पाया कि जिन लोगों का आहार उच्च वसा और उच्च शर्करा वाला था, उनके दिमाग के वे क्षेत्र जो इनाम सीखने, ध्यान, योजना और संकेतों को समझने में काम करते हैं, मिल्कशेक के संकेत देखने पर अधिक सक्रिय हो गए। सेवन के दौरान, इंसुला नामक क्षेत्र में भी अधिक गतिविधि देखी गई, जो स्वाद, तृप्ति और भावनाओं को मैप और जोड़ता है। इसका मतलब है कि प्रतिभागी मिल्कशेक मिलने की संभावना और सेवन के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए।

बड़ी चिंता

स्मॉल कहती हैं कि यूपीएफ हमारे शरीर को भी भ्रमित कर देते हैं। सामान्य तौर पर जब दिमाग किसी भोजन के स्वाद, गंध या बनावट जैसे संकेतों से उस भोजन की कल्पना करता है तो वह शरीर को आने वाले पोषक तत्वों को कुशलता से पचाने के लिए तैयार करता है। लेकिन यूपीएफ इस पूर्वानुमान संबंध को तोड़ देते हैं। वे मीठे स्वाद वाले हो सकते हैं लेकिन उनमें चीनी नहीं होती या वे चिकने और वसायुक्त महसूस हो सकते हैं लेकिन उनमें केवल आर्टिफिशियल एडिटिव्स होते हैं, जिससे शरीर को प्राप्त पोषक तत्वों के बारे में भ्रम होता है।

स्मॉल डोरीटो चिप का उदाहरण देती हैं। वह कॉर्बोहाइड्रेट, ट्रांस फैट और रसायनों से बनी हुई एक त्रिकोणीय आकार की स्वादयुक्त टॉर्टिला चिप होती है लेकिन स्वाद में यह कहीं अधिक पौष्टिक टैको जैसी लग सकती है। टॉर्टिला चिप त्रिकोण आकार में एक प्रकार की कुरकुरी और तली हुई चिप है, जो मकई के आटे (कॉर्न फ्लोर) से बनाई जाती है। यह गड़बड़ी शरीर की पोषक तत्वों को अवशोषित और संसाधित करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है, जिससे तनाव, इंसुलिन प्रतिक्रिया में रुकावट, वसा चयापचय में बाधा और आखिरी में अधिक खाने और वजन बढ़ने की संभावना बढ़ सकती है।

2022 में ओबेसिटी रीविव्स नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि यूपीएफ का अधिक सेवन पेट की चर्बी और कमर की माप बढ़ने के जोखिम से जुड़ा है। अध्ययन कहता है कि यूपीएफ की पोषक और ऊर्जा सामग्री, उनका स्वस्थ खाद्य समूहों को विस्थापित करना और शरीर के वजन नियंत्रण तंत्रों का असंतुलन इन जोखिमों के प्रमुख कारण हो सकते हैं।

वैश्विक प्रसार

अध्ययन यह समझने में मदद करते हैं कि यूपीएफ कैसे-कैसे लालसा उत्पन्न करते हैं, वहीं लत का निदान येल फूड एडिक्शन स्केल (वाईएफएएस) के माध्यम से किया जा सकता है, जिसे अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय की मनोवैज्ञानिक एशले गेयरहार्ट ने विकसित किया था।

वर्ष 2009 में येल विश्वविद्यालय में रहते हुए गेयरहार्ट और उनके सहकर्मियों विलियम आर कॉर्बिन और केली डी ब्राउनल ने वाईएफएएस विकसित किया, जो “नशे जैसे खाने के व्यवहार” का आकलन करने वाला पहला प्रमाणित प्रश्नावली उपकरण माना जाता है।

यह स्केल 2016 में अपडेट किया गया और अब इसमें 35 मानदंड हैं जो 11 लक्षणों को दर्शाते हैं, जिनके आधार पर किसी व्यक्ति में भोजन की लत का निदान किया जा सकता है। इन लक्षणों में शामिल है योजना बनाकर अधिक भोजन करना, कम करने या रोकने में असमर्थता, भोजन पर अत्यधिक समय खर्च करना, महत्वपूर्ण गतिविधियों को त्यागना, शारीरिक या भावनात्मक परिणामों के बावजूद उपयोग, सहनशीलता, वापसी लक्षण, लालसा, जिम्मेदारियों में असफलता, सामाजिक परिणामों के बावजूद उपयोग और खतरनाक परिस्थितियों में भी इसका सेवन शामिल है। यदि किसी व्यक्ति में इनमें से दो या अधिक लक्षण दिखाई देते हैं और यह लक्षण उसके सामाजिक, पेशेवर या दैनिक कामकाज को प्रभावित करते हैं तो उसे भोजन की लत माना जा सकता है।

2022 में यूरोपियन ईटिंग डिसऑर्डर रिव्यू पत्रिका में एक मेटा-विश्लेषण प्रकाशित किया गया, इसमें 272 वैश्विक अध्ययनों और 2.69 लाख प्रतिभागियों की समीक्षा की गई। यह वाईएफएएस 2.0 का उपयोग करता है। इसमें पाया गया कि भोजन की लत का प्रसार वयस्कों में 14 से 20 प्रतिशत और बच्चों व किशोरों में 12 से 15 प्रतिशत है। यदि भोजन के लत की तुलना शराब के उपयोग से करनी हो तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, विश्व जनसंख्या में तंबाकू उपयोग का प्रसार 19.2 प्रतिशत और शराब उपयोग का 18.2 प्रतिशत है।

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