भारत में यदि एक सप्ताह तक भीषण गर्मी पड़े तो उसकी वजह से और 80.7 लाख लोग दाने-दाने के लिए मोहताज हो सकते हैं। भोजन की उपलब्धता पर बढ़ते तापमान के प्रभावों को आम तौर पर फसलों की पैदावार में कमी से जोड़कर देखा जाता है, जिसके प्रभाव वर्षों या महीनों में महसूस किए जाते हैं।
लेकिन अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर ह्यूमन बिहेवियर में प्रकाशित नए अध्ययन से पता चला है कि जब बढ़ता तापमान और गर्मी सीधे तौर पर आय को प्रभावित करते हैं, तो इसके तत्काल प्रभाव सामने आ सकते हैं।
आंकड़ों की मानें तो भारत में पहले ही 16.6 फीसदी आबादी कुपोषण से जूझ रही है, जबकि 21 फीसदी आबादी 1.9 डॉलर से कम पर गुजारा करने को मजबूर है, वहीं देश की बड़ी आबादी कृषि कार्यों से जुड़ी है, जो उत्पादन के लिए शारीरिक श्रम पर निर्भर है। ऐसे में बढ़ता तापमान और उससे आय पर पड़ने वाला प्रभाव उनके लिए बड़ी समस्या बन सकता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक बढ़ता तापमान और गर्मी श्रमिकों में शारीरिक तनाव की वजह बन सकती है, जिससे उनकी उत्पादकता और काम करने का समय घट जाता है। इसका सीधा असर उनकी आय पर पड़ता है, जिसकी वजह से वो अपने खाने पीने पर होने वाले खर्च में कोताही करने को मजबूर हो जाते हैं।
अध्ययन में इस बारे में पश्चिम बंगाल में महिला श्रमिकों का जिक्र करते हुए जानकारी दी है कि महिला श्रमिकों को उनके द्वारा हर दिन ढोई जाने वाली ईंटों की संख्या के आधार पर मजदूरी दी जाती है। जब बढ़ती गर्मी उनकी ईंट ढोने की रफ्तार को धीमा कर देती है तो इसका असर उनकी आय पर पड़ता है, जिसके चलते उनकी आय 50 फीसदी तक कम हो जाती है।
भारत में हालिया साक्ष्य दर्शाते हैं कि जब श्रमिक काम नहीं कर पाते तो वे अपने खाने-पीने की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी जद्दोजहद करने को मजबूर हो जाते हैं। यह वो मजदूर हैं, जिन्हें पेट भरने के लिए हर रोज काम करना पड़ता है।
रिसर्च के मुताबिक बढ़ती गर्मी का यह असर न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा बनता जा रहा है। वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2022 में वैश्विक आबादी का करीब 30 फीसदी हिस्सा पहले ही खाद्य असुरक्षा के मध्यम से गंभीर स्तर का सामना करने को मजबूर था। ऐसे में बढ़ता तापमान उनकी मुश्किलों को ओर बढ़ा सकता है।
भीषण गर्मी के चलते बर्बाद हो गए थे काम के करीब 47,000 करोड़ घंटे
वैश्विक स्तर पर, 2021 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो भीषण गर्मी के चलते काम के करीब 47,000 करोड़ घंटे बर्बाद हो गए थे। जो धरती पर हर व्यक्ति के करीब 1.5 सप्ताह तक किए जाने वाले काम करने के बराबर है। इसके गंभीर आर्थिक परिणाम सामने आए हैं जो खाद्य सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकते हैं।
150 देशों में, विशेष रूप से उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, बढ़ती गर्मी और लू करोड़ों लोगों को भुखमरी की तरफ धकेल रही है। निष्कर्षों से पता चला है कि यह जोखिम तब भी बना रहता है जब कुल खाद्य उपलब्धता में बढ़ोतरी होती है। बता दें कि दुनिया में पहले ही करीब 200 करोड़ लोग खाने की कमी से जूझ रहे हैं।
इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता कैरोलिन क्रॉगर का मानना है कि यह प्रभाव कम आय, कृषि आधारित देशों में कहीं ज्यादा स्पष्ट हो सकते हैं। क्रॉगर ने पाया कि जिन लोगों ने एक सप्ताह तक भीषण गर्मी का सामना किया, उनमें स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही उन्हें अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने और जीवन यापन में परेशानी होने की आशंका अधिक रहती है। इससे उनकी आय में भी गिरावट आ सकती है।
यह निष्कर्ष ऐसे समय में सामने आए हैं जब दुनिया लगातार मुद्रास्फीति के चलते खाने पीने की चीजों की बढ़ती कीमतें से त्रस्त है। लेकिन देखा जाए तो खाद्य आपूर्ति और कीमतें ही एकमात्र समस्या नहीं हैं। शोध से यह भी पता चला है कि बढ़ते तापमान के कारण कई प्रमुख खाद्य फसलें और फलियां अपने पोषक तत्वों को खो रहीं हैं। जो पोषण से जुड़ी चिंताओं को और बढ़ा सकता है।
गौरतलब है कि वैश्विक स्तर तापमान तेजी से बढ़ रहा है जो अपने आप में एक बड़ी समस्या है। यदि अगस्त 2023 को देखें तो वो अब तक का सबसे गर्म अगस्त था। इसी तरह जून और जुलाई 2023 ने नए कीर्तिमान स्थापित किए थे।
हाल ही में जारी क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स (सीएसआई) के नवीनतम आंकड़ों से पता चला है कि दुनिया की 98 फीसदी आबादी बढ़ते उत्सर्जन के चलते जून से अगस्त 2023 के बीच सामान्य से कम से कम दो गुणा अधिक तापमान का सामना करने को मजबूर थी।
इतना ही नहीं इंडेक्स के मुताबिक इन तीन महीनों के दौरान करीब 620 करोड़ लोगों ने एक न एक दिन ऐसी भीषण गर्मी का सामना किया, जब तापमान सामान्य से पांच गुणा अधिक था। ऐसे में जब स्थिति तेजी से बदतर हो रही है, शोधकर्ताओं के मुताबिक इंश्योरेंस और श्रम कानूनों में सुधार स्थिति को कुछ हद तक बेहतर बना सकता है।