भुखमरी का सामना करने को मजबूर हर 11वां इंसान, 280 करोड़ की जेब पर भारी पड़ रहा पोषण युक्त आहार

भरपेट भोजन के साथ पोषण युक्त आहार भी एक गंभीर मुद्दा है। दुनिया की एक तिहाई आबादी ऐसी है जो पोषण युक्त आहार खरीदने में असमर्थ है
क्या सबको मिल पाएगी पोषण से भरपूर थाली; फोटो: आईस्टॉक
क्या सबको मिल पाएगी पोषण से भरपूर थाली; फोटो: आईस्टॉक
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आधुनिक दुनिया में इससे ज्यादा बड़ी विडम्बना क्या होगी कि हर 11वां इंसान अभी भी खाली पेट सोने को मजबूर है। मतलब की दुनिया में 73.3 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें भरपेट खाना नसीब नहीं हो रहा है। यदि 2019 की तुलना में देखें तो इन लोगों की संख्या में 15.2 करोड़ का इजाफा हुआ है।

अफ्रीका में स्थिति कहीं ज्यादा खराब है, जहां हर पांचवा इंसान भुखमरी का सामना करने को मजबूर है। यह जानकारी दुनिया में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति पर जारी एक नई रिपोर्ट में सामने आई है। “द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2024” नामक यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), अन्तरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएफएडी), यूनिसेफ, विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने संयुक्त रूप से प्रकाशित की है। 

रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं वो खाद्य सुरक्षा की एक गंभीर तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। इनके मुताबिक दुनिया में 233 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें नियमित तौर पर पर्याप्त भोजन हासिल करने के लिए जूझना पड़ रहा है। इनमें 86.4 करोड़ लोग वो हैं जिन्हें गम्भीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा। इसका मतलब है कि उन्हें कुछ समय बिना खाए ही गुजारा करना पड़ा है।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि वैश्विक खाद्य असुरक्षा की स्थिति अभी भी कोविड-19 से पहले के स्तर से कहीं ज्यादा है। दरअसल पिछले चार वर्षों में यह स्तर करीब-करीब स्थिर बना हुआ है या इसमें मामूली सुधार देखा गया है। वास्तविकता में देखें तो पोषण के मामले में दुनिया 15 साल पीछे चली गई है और कुपोषण का स्तर 2008-2009 के स्तर पर पहुंच चुका है।

दूर की कौड़ी है सबके लिए भरपेट भोजन

हालांकि देखा जाए तो यह स्थिति तब है जब सतत विकास के लक्ष्यों के तहत 2030 तक किसी को खाली पेट न सोने देने की बात कही गई थी। मतलब की इन छह वर्षों में दुनिया को एक लम्बा सफर तय करना है।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि मौजूदा रुझान जारी रहते हैं तो 2030 तक करीब 58.2 करोड़ लोगों को लम्बे समय तक कुपोषण से जूझना होगा। यह स्थिति अफ्रीका के लिए कहीं ज्यादा चिंताजनक है, क्योंकि इनमें से करीब आधे लोग अफ्रीकी महाद्वीप के होंगे।

इस बारे में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्य अर्थशास्त्री मैक्सिमो टोरेरो का प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहना है कि, "असल बात ये है कि हम अभी भी दुनिया को भुखमरी, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण से छुटकारा दिलाने के लक्ष्य की दिशा वांछित रफ्तार से काफी पीछे हैं।"

क्षेत्रीय रुझानों पर नजर डालें तो अफ्रीका में स्थिति लगातार बदतर हुई है। वहां की 20 फीसदी से ज्यादा आबादी खाने की कमी से जूझ रही है। वहीं एशिया में स्थिति स्थिर बनी हुई है, जहां यह आंकड़ा 8.1 फीसदी दर्ज किया गया है।

हालांकि दक्षिण अमेरिका में इस दिशा में कुछ प्रगति जरूर हुई है। वहां करीब 6.2 फीसदी लोग खाने की कमी से त्रस्त हैं। यदि 2022-23 के दरमियान देखें तो पश्चिमी एशिया, कैरीबियाई देशों और अफ्रीका के अधिकांश हिस्सों में स्थिति पहले से खराब हुई है। अफ्रीका की 58 फीसदी आबादी किसी न किसी रूप में खाद्य असुरक्षा से प्रभावित है।

दुनिया में स्वस्थ आहार तक पहुंच भी एक गंभीर मुद्दा है, जो दुनिया की एक तिहाई आबादी को प्रभावित कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में करीब 280 करोड़ से ज्यादा लोग पोषण युक्त आहार का खर्च उठा पाने में असमर्थ थे। यह समस्या कमजोर देशों में कहीं ज्यादा गंभीर है, जहां 71.5 फीसदी आबादी स्वस्थ पोषण युक्त आहार का खर्च उठा पाने में असमर्थ है।

हालांकि समृद्ध देशों में स्थिति पूरी तरह अलग है, जहां यह आंकड़ा 6.3 फीसदी दर्ज किया गया है। देखा जाए तो एशिया, उत्तरी अमेरिका और यूरोप में महामारी से पहले की तुलना में स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन अफ्रीका में स्थिति कहीं ज्यादा खराब हुई है।

लोगों की तेजी से गिरफ्त में ले रहा मोटापा

संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में पोषण से जुड़े अन्य मुद्दों पर भी प्रकाश डाला है। उदाहरण के लिए वैश्विक स्तर पर स्तनपान की दर में वृद्धि हुई है, जो बढ़कर 48 फीसदी पर पहुंच गई है। लेकिन वैश्विक स्तर पर पोषण के लक्ष्यों को हासिल करना अभी भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।

आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के 15 फीसदी बच्चे अभी भी वजन में कमी की समस्या से ग्रस्त हैं। वहीं पांच वर्ष से कम आयु के 22.3 फीसदी बच्चे अपनी आयु के हिसाब से ठिगने हैं। मतलब की इस मामले में हम अभी भी लक्ष्यों से दूर हैं। वहीं कमजोरी का शिकार बच्चों की संख्या में कोई खास सुधार नहीं हुआ है, जबकि महिलाओं में एनीमिया की समस्या पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है।

दुनिया में मोटापे की समस्या भी तेजी से पैर पसार रही है। ताजा आंकड़ों से पता चला है कि वयस्कों में मोटापे की जो दर्ज 2012 में 12.1 फीसदी थी, वो 2022 में बढ़कर 15.8 फीसदी पर पहुंच गई है। अनुमान दर्शाते हैं कि दुनिया में 2030 तक 120 करोड़ से ज्यादा वयस्क इस समस्या से जूझ रहे होंगे।

देखा जाए तो दुनिया में लोग बढ़ते वजन और मोटापे की दोहरी मार झेल रहे हैं। यह समस्या सभी आयु वर्गों में बढ़ गई है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो दशकों में दुबलेपन और कम वजन का शिकार लोगों की संख्या में कमी आई है, वहीं दूसरी तरफ मोटापे से जूझ रही आबादी तेजी से बढ़ रही है।

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