उत्तराखंड में इन चार गांवों में ही क्यों आ रहे हैं भूकंप, क्या हैं संकेत?

उत्तराखंड में लगभग हर 15 दिन में एक भूकंप आता है, जिसकी चर्चा पिछले दिनों सिंगापुर में हुये एशिया ओशियन जियोसाइंस सोसायटी 2019 में हो चुकी है
उत्तराखंड के चार गांवों में अकसर भूकंप आता रहता है। फोटो: विकास चौधरी
उत्तराखंड के चार गांवों में अकसर भूकंप आता रहता है। फोटो: विकास चौधरी
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उत्तराखंड के सीमांत जिला उत्तरकाशी के दक्षिण छोर में बसा खूबसूरत गांव है, कोटला। देहरादून से इसकी दूरी लगभग 170 किलोमीटर है। कोटला गांव की सबसे बुजुर्ग महिला स्यूणी देवी अपने घर के निचले तल में बने मिट्टी और लकड़ी के कमरों में भैंसों को बांधते वक्त एहतियात बरतती है कि ऊपरी तल में ज्यादा भार न रखा गया हो। ताकि भूकंप भी आये तो ज्यादा नुकसान न हो। हालांकि गांव में स्यूणी देवी अब भूकंप के झटकों से ज्यादा नहीं डरती। स्यूणी देवी ही नहीं, कोटला गांव का हर बच्चा और जवान के लिये भूकंप के झटके अब कोई नई बात नहीं है।

आसपास के गांव वासी मजाक में कई बार कोटला गांव की तुलना सबसे ज्यादा भूकंप के झटके झेलने वाला जापान से कर देते हैं। लेकिन उत्तराखंड में केवल कोटला गांव में ही लगातार भूकंप के झटके नहीं आ रहे हैं, बल्कि पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी जिलों में भी एक ही केंद्र बिंदू में ही लगातार भूकंप के झटके आ रहे हैं। इन चारों जगहों में लगातार आने वाले भूकंप के झटकों पर विशेष चर्चा अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी होने लगी है।

असल में, उत्तराखंड में पिछले चार सालों में 85 बार भूकंप के झटके आये हैं। आश्चर्य की बात ये है कि इन सभी भूकंप का केंद्र बिंदू उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग और चमोली जिलों में स्थित एक ही गाव के नीचे आये हैं। भूकंप वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार, बड़े पैमाने पर आ रहे रिक्टर चार तक के ये भूकंप हिमालय क्षेत्र के भूगभ में एक बड़ी भूकंपीय ऊर्जा के इकठ्ठा होने से आ रहे हैं। वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान ने इस संबंध में शासन को भी आगाह किया है, जबकि सिंगापुर में हाल ही में आयोजित हुई एशिया ओशियन जियोसाइंस सोसायटी  2019 (एओजीएस) में भी इस पर गहरी चिंता जताई गई।

उत्तराखंड में अपै्रल 2015 के बाद अधिकांश भूकंप उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़ में आये हैं। उत्तरकाशी में इन भूकंप का केंद्र उत्तरकाशी जिले के कोटला गांव के नीचे हैं। जिसका अंक्षास और देशांतर 30.9 N 78.3E है। यहां पर पिछले तीन सालों में 23 भूकंप एक ही गांव के नीचे आये हैं। इसी तरह रुद्रप्रयाग में 30.6 N 79.3E केंद्र में ही 97 फीसद भूकंप आया है। ये इलाका तुंगनाथ और रुद्रनाथ के बीच स्थित है।  यहां पर पिछले तीन सालों में 21 बार भूकंप आ चुका है। छह दिसंबर 2017 को यहीं पर पांच रिएक्टर तक बड़ा भूकंप आ चुका है।

पिथौरागढ़ में 29.7N 80.4श्E (नेपाल सीमा के पास अस्कोट और बुलवाकोट के समीप) में भी एक ही जगह पर 13 बार भूकंप आ रहा है और इसी तरह चमोली जिले में भी 30.5N 79.0श्E  में ही पिछले तीन सालों से 25 बार भूकंप आ चुका है। ये इलाका भी रुद्रप्रयाग जिले में तुंगनाथ के पास ही स्थित है। यानी जमीन के नीचे से भूकंपीय ऊजा किसी न किसी रास्ते बाहर निकल रही है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है जो ऊर्जा बाहर निकल रही है, ये बहुत कम है।

वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ भूकंप वैज्ञानिक डा सुशील कुमार बताते हैं, इन इलाकों में ही ज्यादातर भूकंप आ रहा है। अध्ययन में पता चला कि यह पूरा भूभाग 18 मिलीमीटर की दर से सिकुड़ रहा है। जबकि पूर्वी क्षेत्र में यह दर महज 14 मिलीमीटर प्रति वर्ष पाई गई। इस सिकुडऩ से धरती के भीतर ऊर्जा का भंडार बन रहा है, जो कभी भी इस पूरे क्षेत्र में सात-आठ रिक्टर स्केल के भूकंप के रूप में सामने आ सकती है। क्योंकि इस पूरे क्षेत्र में सैकड़ों सालों में कोई शक्तिशाली भूकंप नहीं आया है। एक समय ऐसा आएगा जब धरती की सिकुड़न अंतिम स्तर पर होगी और कहीं पर भी भूकंप के रूप में ऊजा बाहर निकल आएगी।

कोटला गांव के प्रधान उपेंद्र सिंह बताते हैं, यहां भूकंप के झटके आना सामान्य बात है। 1991 में जबरदस्त भूकंप आया था। जिसमें काफी नुकसान हुआ था, लेकिन उसके बाद केवल छोटे भूकंप ही आते है। पहले हम डरते थे, लेकिन अब हमने इन भूकंप के झटकों के साथ जीना सीख लिया है। अब न बच्चों को और न ही जवानों को इन झटकों से कुछ ज्यादा फर्क पड़ता है।

नेपाल मिलती जुलती है स्थिति
कुछ साल पूव नेपाल में भी विनाशकारी भूकंप आ चुका है। शोध में सामने आया कि नेपाल में धरती के सिकुड़ने की दर इससे कुछ अधिक 21 मिलीमीटर प्रति वर्ष पाई गई। यही वजह है कि वष 19३५ में बेहद शक्तिशाली आठ रिक्टर स्केल का नेपाल-बिहार भूकंप आने के बाद वष 2015 में भी 7.8 रिक्टर स्केल का बड़ा भूकंप आ चुका है। जबकि कुमाऊं क्षेत्र में बड़ा भूकंप रामनगर में 1334  व 1505 में आ चुका है। तब से लेकर अब तक कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है, जबकि भूगभ में तनाव की स्थिति लगातार बनी है। ऐसे में कहा जा सकता है कि यहां कभी भी बड़ा भूकंप आ सकता है।

सिंगापुर में हुये अंतराष्ट्रीय सम्मेलन में हुई चर्चा
सिंगापुर में हाल ही में आयोजित हुये एशिया ओशियन जियोसाइंस सोसायटी 2019 (एओजीएस) में भी इस पर गहरी चिंता जताई गई। इस सम्मेलन में दुनिया के पांच हजार वैज्ञानिकों ने शिरकत की। भारत से इसमें वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के भौतिकी समूह के अध्यक्ष सुशील कुमार ने शिरकत की। उन्होंने उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग जिले में आये भूकंप पर अपना शोध रखा।

खाद्य स्टोर बनाने का प्रस्ताव
वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान ने इस संबंध में उत्तराखंड शासन को भी अवगत कराया है। भौतिकी विज्ञान समूह के अध्यक्ष डॉ सुशील कुमार ने बताया इस संबंध में शासन को एक प्रस्ताव भी दिया गया है। जिसमें पहाड़ी क्षेत्रों में प्रति एक हजार लोगों के लिये खाद्य स्टोर के निर्माण के साथ ही दवाइयों का भी समुजित भंडारण करना था। वरिष्ठ वैज्ञानिक डा सुशील कुमार ने बताया बड़े भूकंप आने पर सडक़ माग ध्वस्त हो सकते हैं। लिहाजा, जब तक बचाव दल लोगों तक पहुंचे, तब तक वो सुरक्षित रह सके। इसके लिये ये कार्य करने जरूरी हैं।

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