

भारत के प्रमुख शहरों में जमीन के धंसने का खतरा बढ़ रहा है, जिससे लाखों लोगों की जान और अरबों की संपत्ति पर संकट मंडरा रहा है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण यह समस्या उत्पन्न हो रही है।
अध्ययन में पाया गया है कि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे शहरों में हजारों इमारतें गंभीर खतरे में हैं।
इन शहरों के करीब 878 वर्ग किलोमीटर इलाके में जमीन धंस रही है। अनुमान है कि करीब 19 लाख लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं, जहां जमीन हर साल चार मिलीमीटर से ज्यादा की दर से नीचे जा रही है।
जर्नल साइंस में छपे एक अन्य शोध के मुताबिक जमीन धंसने के चलते भारत सहित दुनिया के 63.5 करोड़ लोगों पर खतरा मंडरा रहा है।
भारत के दिल्ली-मुंबई जैसे बड़े शहरों की चकाचौंध भरी सड़कों और ऊंची इमारतों के नीचे एक खामोश संकट पल रहा है। इन शहरों में बिना किसी आवाज और चेतावनी के जमीन धीरे-धीरे धंस रही है।
वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि यह खतरा हजारों इमारतों की नीवें हिला सकता है। इससे न केवल अरबों की सम्पति पर असर पड़ेगा साथ ही लोगों लोगों की जिंदगियां भी खतरे में पड़ सकती हैं।
यह जानकारी वर्जीनिया टेक से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किए नए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुए हैं। अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और बेंगलुरु जैसे शहरों की 2015 से 2023 के बीच की उपग्रह से प्राप्त तस्वीरों का विश्लेषण किया है।
इस अध्ययन में 1.3 करोड़ से अधिक इमारतों और करीब 8 करोड़ लोगों को कवर किया गया है।
‘धंसते शहरों’ की डरावनी सच्चाई
अध्ययन के मुताबिक, इन शहरों के करीब 878 वर्ग किलोमीटर इलाके में जमीन धंस रही है। अनुमान है कि करीब 19 लाख लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं, जहां जमीन हर साल चार मिलीमीटर से ज्यादा की दर से नीचे जा रही है।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि दिल्ली, मुंबई और चेन्नई में 2,400 से ज्यादा इमारतों पर पहले ही संरचनात्मक नुकसान का खतरा मंडरा रहा है। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि अगर यही रफ्तार जारी रही, तो अगले 50 सालों में दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और बेंगलुरु की 23,000 से ज्यादा इमारतें गंभीर खतरे में पड़ सकती हैं।
आईआईटी बॉम्बे, जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेज, यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज और सदर्न मेथोडिस्ट यूनिवर्सिटी यूएस के शोधकर्ताओं द्वारा किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि जिस तरह से दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में भूजल को निचोड़ा जा रहा है उसके चलते 100 किलोमीटर के दायरे में जमीन धंसने का खतरे कहीं ज्यादा बढ़ गया है।
भारतीय शहरों में क्यों धंस रही है जमीन
वैज्ञानिकों ने स्टडी रिपोर्ट में इसके कारणों पर भी प्रकाश डाला है। वैज्ञानकों के मुताबिक देश के कई शहरों में भूजल के जरुरत से ज्यादा दोहन से जमीन अस्थिर हो रही है।
इस बारे में वर्जीनिया टेक और अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता सुजाना वर्थ का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, "जब शहर प्राकृतिक पुनर्भरण से ज्यादा भूजल का दोहन करते हैं तो जमीन सचमुच नीचे धंसने लगती है। अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि भूजल के बड़ी मात्रा में हो रहे दोहन से शहरों की इमारतें और ढांचे कमजोर हो रहे हैं।”
अध्ययन के मुताबिक यह धंसाव सिर्फ इमारतों और बुनियादी ढांचे की मजबूती ही नहीं, बल्कि बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाओं के खतरे को भी बढ़ा देता है। जमीन के असमान रूप से धंसने से नींवें कमजोर पड़ने लगती हैं, पाइपलाइनें फट जाती हैं और पूरी संरचना पर अतिरिक्त दबाव पड़ने लगता है।
अध्ययन से जुड़े मुख्य शोधकर्ता नितेश निर्मल साधासिवम का कहना है, “अगर शहरों ने अपने जल प्रबंधन और बुनियादी ढांचे को नहीं सुधारा तो आज जो मौन तनाव दिख रहा है, वही कल की आपदा बन सकता है।"
देखा जाए तो दुनिया भर में इमारतों का ढहना बार-बार होने वाली एक बड़ी आपदा बन चुका है। इससे हर साल कई लोगों की जान और संपत्ति का भारी नुकसान होता है। 1970 से 2020 के बीच दुनिया में ऐसे 180 से ज्यादा बड़े हादसे दर्ज किए गए हैं।
इन हादसों में हर साल औसतन 330 से अधिक लोगों की जान गई है। चिंता की बात है कि ये हादसे ज्यादातर भूकंप या जलवायु आपदाओं से नहीं, बल्कि इमारतों की संरचनात्मक कमजोरी के कारण हुए हैं और इनकी संख्या विकासशील देशों में सबसे ज्यादा है।
गौरतलब है कि 2013 में मुंबई में ऐसा ही एक उदाहरण सामने आया था जब एक आवासीय इमारत गिरने से 61 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 32 लोग घायल हो गए थे। उसी साल बांग्लादेश के ढाका में राणा प्लाजा हादसे में 1,134 लोगों की मौत और 2,500 से अधिक लोग घायल हुए। यह इतिहास में इमारतों के ढहने की सबसे भीषण घटनाओं में से एक है।
इसी तरह 2014 में नाइजीरिया के लागोस में एक चर्च की इमारत गिरने से 115 लोगों की मौत हो गई। 2019 में कर्नाटक के धारवाड़ में एक इमारत ढहने से 19 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा जबकि 82 लोग घायल हो गए।
2021 में फिर लागोस (नाइजीरिया) में एक ऊंची इमारत के ढहने से 42 लोगों की मौत हो गई। यह सभी घटनाएं दर्शाती हैं कि इमारतों की कमजोर पड़ती नींव और ढांचागत नुकसान कितने घातक साबित हो सकते हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि उपग्रह आधारित तकनीकें इस ‘छिपे खतरे’ को समय रहते उजागर करने में मदद कर सकती हैं। उनके मुताबिक यह निगरानी तकनीकें उन जोखिमों को भी उजागर कर सकती हैं, जो आम तौर पर तब तक छिपे रहते हैं जब तक कोई ढांचा ढह न जाए।
ऐसे में अगर शहर अब से ही भूजल जल के बेहतर प्रबंधन, मजबूत निर्माण और नियमित निगरानी पर निवेश करें, तो भविष्य में होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है।
अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि यह खतरा सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है।
जर्नल साइंस में छपे एक अन्य शोध के मुताबिक जमीन धंसने के चलते भारत सहित दुनिया के 63.5 करोड़ लोगों पर खतरा मंडरा रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक भूजल के अनियंत्रित दोहन के चलते जिस तरह से जमीन धंस रही है उसका खामियाजा दुनिया की 19 फीसदी आबादी को झेलना होगा। इसमें भारत, चीन, ईरान और इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं।
शोध के अनुसार दुनिया के 34 देशों में 200 से ज्यादा जगह पर भूजल के अनियंत्रित दोहन के कारण जमीन धंसने के सबूत मिले हैं।
हाल ही में जर्नल नेचर में छपे एक अन्य शोध से पता चला है कि ईरान में जिस तरह से भूजल का दोहन हो रहा है उसके चलते वहां तेहरान में कई जगह जमीन 25 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की दर से धंस रही है। इसी तरह पिछले 10 वर्षों में इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता 2.5 मीटर तक डूब चुकी है। कुछ जगहों पर यह 25 सेंटीमीटर की दर से धंस रही है।
नए अध्ययन में भी चेताया है कि दुनिया भर के तेजी से बढ़ते शहर, जो भूजल पर निर्भर हैं, भविष्य में इसी तरह की स्थिति का सामना कर सकते हैं। इन शहरों में भी जमीन धीरे-धीरे धंस रही है और भविष्य की आपदाएं आकार ले रही हैं।