इंसानों के बनाए बांधों से एक मीटर तक हिली पृथ्वी की धुरी! क्या बड़े खतरे का है आगाज

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि अमेरिका से लेकर एशिया तक पिछले दो सौ वर्षों से जारी बांधों की होड़ ने पृथ्वी के ध्रुव को अपनी धुरी से एक मीटर तक खिसका दिया है
इंसानों द्वारा बनाए विशाल बांध; फोटो: आईस्टॉक
इंसानों द्वारा बनाए विशाल बांध; फोटो: आईस्टॉक
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इंसानी महत्वाकांक्षा किस हद तक पृथ्वी के संतुलन को बिगाड़ सकती है, इसका अंदाजा शायद हमें खुद भी नहीं है। वैज्ञानिक समय-समय पर इसकी चेतावनी देते रहे हैं, लेकिन अक्सर उनकी आवाज अनसुनी कर दी जाती है।

इंसानों द्वारा किए जा रहे बदलावों का ऐसा ही एक चौंकाने वाला सच हाल ही में सामने आया है। जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नामक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन का दावा है कि, पिछले 200 वर्षों में इंसानों ने इतने अधिक बांध बना लिए हैं कि इससे पृथ्वी का ध्रुव अपनी धुरी से करीब एक मीटर तक खिसक गया है।

यह सच है कि धरती कभी स्थिर नहीं रहती वो हमेशा घूमती रहती है। हालांकि हम उत्तर और दक्षिण ध्रुवों को अटल मानते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि वे भी धीरे-धीरे अपनी जगह से खिसकते रहते हैं। हालांकि पृथ्वी के ध्रुवों में होने वाली इस हलचल को पहले बर्फ के पिघलने, टेक्टोनिक प्लेटों के खिसकने और समुद्र के बढ़ने जैसे प्राकृतिक कारणों से जोड़ा जाता था, लेकिन इस नए वैज्ञानिक अध्ययन ने एक बार फिर इस बारे में सोचने को मजबूर कर दिया है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक पृथ्वी की सबसे ऊपरी ठोस परत, अंदर की पिघली हुई चट्टानों (मैग्मा) पर तैरती है। यही वजह है कि यह नीचे मौजूद द्रव्य की वजह से हिल सकती है। जब पृथ्वी की सतह पर किसी क्षेत्र में भारी मात्रा में द्रव्यमान इकट्ठा होता है जैसे बर्फ की चादरें या बांधों में पानी के जमा होने से तो यह संतुलन बिगड़ने लगता है।

बिगड़ रहा संतुलन

इसकी वजह से पृथ्वी की यह ठोस परत हिलने लगती है, इससे ध्रुवों की स्थिति धीरे-धीरे बदल जाती है। इसे वैज्ञानिक भाषा में 'ट्रू पोलर वॉन्डर' कहा जाता है यानि पृथ्वी के घूर्णन ध्रुव का अपनी जगह से हटना।

इसे ऐसे समझ सकते हैं, जैसे कोई बास्केटबॉल घूम रही हो और आप उसके एक तरफ मिट्टी चिपका दें। ऐसे में गेंद का वह हिस्सा थोड़ा सा अपनी धुरी से हटकर इक्वेटर की ओर झुक जाएगा, ताकि संतुलन बना रहे।

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इंसानों द्वारा बनाए विशाल बांध; फोटो: आईस्टॉक
पृथ्वी की आंतरिक संरचना; फोटो: आईस्टॉक
पृथ्वी की आंतरिक संरचना; फोटो: आईस्टॉक

अध्ययन से पता चला है कि 1835 से 2011 के बीच दुनिया में करीब 6,862 बड़े बांधों का निर्माण किया गया, जिनकी वजह से पृथ्वी के ध्रुव करीब एक मीटर (3.7 फीट) तक खिसक गए। इतना ही नहीं, इन बांधों में जो पानी जमा हुआ है, उसने वैश्विक समुद्र स्तर को करीब 21 मिलीमीटर तक गिरा दिया है।

इस बारे में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता नताशा वलेनसिक का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, "जब हम पानी को बांधों में रोकते हैं, तो वह न सिर्फ समुद्रों से निकल जाता है। इसका असर पृथ्वी पर द्रव्यमान का संतुलन बिगड़ जाता है। नतीजन न केवल समुद्र का स्तर गिरता है बल्कि पृथ्वी के ध्रुव भी अपनी जगह से खिसक जाते हैं।"

वैज्ञानिकों के मुताबिक यह बदलाव अचानक से नहीं हुए। 1835 से 1954 के बीच ज्यादातर बांधों का निर्माण अमेरिका और यूरोप में किया गया। इससे उत्तरी ध्रुव रूस और एशिया की ओर करीब 8 इंच (20.5 सेंटीमीटर) तक खिसक गया।

वहीं 1954 के बाद से ज्यादातर बांधों का निर्माण एशिया और पूर्वी अफ्रीका में किया गया है। इससे ध्रुव  22.5 इंच (57 सेंटीमीटर) तक पश्चिमी अमेरिका और दक्षिणी प्रशांत की ओर खिसक गए। इन दोनों चरणों में ध्रुव करीब 113 सेंटीमीटर (1.13 मीटर) तक खिसक चुका है।

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इंसानों द्वारा बनाए विशाल बांध; फोटो: आईस्टॉक

समुद्र के स्तर पर भी पड़ा असर

वैज्ञानिकों के मुताबिक समुद्र का स्तर हर जगह समान रूप से नहीं बढ़ता। 20वीं सदी में समुद्र का स्तर औसतन हर साल 1.2 मिलीमीटर की दर से बढ़ा है। लेकिन उसका चौथाई हिस्सा इंसानों ने बांधों में रोक लिया। नताशा का कहना है, “जहां हम बांध बनाते हैं, वहां से लेकर दुनिया के दूसरे हिस्सों तक के समुद्र स्तर पर अलग-अलग असर होता है।”

अध्ययन से पता चला है कि इन बांधों की वजह से 1900 से 2011 के बीच समुद्र का स्तर करीब 0.86 इंच गिरा है। यह गिरावट भले ही बर्फ के पिघलने से समुद्र के बढ़ते स्तर के मुकाबले कम हो, लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार यह अब भी महत्वपूर्ण है, खासकर जब हम भविष्य के समुद्र स्तर और जलवायु परिवर्तन की गणनाएं करते हैं।

वैज्ञानिकों ने देखा है कि ज्यादातर असर 6,000 सबसे बड़े बांधों से हुआ। छोटे बांधों का कुल प्रभाव न्यूनतम था। इससे स्पष्ट होता है कि विशाल जलाशयों ने पृथ्वी की दिशा को प्रभावित किया है।

यह अध्ययन इस बात का एक और ज्वलंत उदाहरण है कि कैसे हम इंसान सिर्फ पर्यावरण ही नहीं, बल्कि खुद पृथ्वी की बनावट और संतुलन को भी बिगाड़ रहे हैं, भले ही यह बदलाव छोटे लगें, लेकिन आने वाले समय में इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं।

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