कौन थे हिटलर के हमदर्द, क्या जानते हैं आप?

जर्मन कार्टल आईजी फारबेन ने हिटलर को सर्वाधिक मदद पहुंचाई, लेकिन क्यों...? पढ़ें, एक रोचक तथ्य-
सौजन्य: जर्मन फेडरल आर्काइव
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जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर की क्रूरता के किस्से दुनिया जानती है लेकिन बहुत से लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि हिटलर को ताकत कहां से मिलती थी और कौन नाजियों को फंड करता था। इसका खुलासा दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 1946 में जर्मनी के न्यूरेमबर्ग में चले वॉर क्राइम ट्रॉयल से हुआ। इसमें अभियोजन पक्ष के मुख्य वादी टेलफर्ड टेलर ने एक जर्मन कार्टल (कंपनियों के समूह) पर सनसनीखेज आरोप लगाते हुए बताया, “नाजी कट्टरपंथी नहीं बल्कि ये कंपनियां ही युद्ध की असली गुनहगार हैं। अगर इन कंपनियों का अपराध दुनिया के सामने नहीं लाया गया और उन्हें दंडित नहीं किया गया तो भविष्य में शांति खतरे में पड़ सकती है।” कंपनियों के इस समूह का नाम आईजी फारबेन था। 1925 में जर्मनी की दवा और रसायन कंपनी बायर, बीएएसएफ और हॉस्ट कंपनी के विलय के बाद यह समूह अस्तित्व में आया था।

ट्रायल के दौरान पता चला कि आईजी फारबेन ने 1920 के दशक के अंतिम वर्षों में हिटलर के चुनावी अभियान को सबसे अधिक चंदा दिया था। हिटलर के सत्ता हासिल करने से एक साल पहले आईजी फारबेन ने चार लाख जर्मन रेक्समार्क्स हिटलर और उसकी नाजी पार्टी को दान में दी थी। रेक्समार्क्स 1924 से जून 1948 तक जर्मनी की करेंसी थी।

हिटलर के सत्ता में आने के बाद आईजी फारबेन के नाजियों से बेहद नजदीकी संबंध बन गए। फारबेन जर्मनी सेना के लिए रासायनिक हथियार बनाने लगी और युद्ध के दौरान जर्मनी द्वारा कब्जे में लिए गए देशों में रासायनिक उद्योगों में लूटपाट करने लगी। नाजियों की मददगार कंपनियों के इस समूह को नाजियों के औद्योगिक भेड़िये की संज्ञा दी गई। फारबेन ने विश्वयुद्ध के दौरान अपनी बहुत सी फैक्टरियों और खदानों में गुलाम मजदूरों से काम कराया। जर्मनी के आउशवित्स में स्थित यातना शिविर के पास आईजी फारबेन का रबर प्लांट था। 1944 तक इस यातना शिविर से प्लांट में काम करने के लिए 80 हजार मजदूर भेजे गए। मजदूर भेजने के लिए जर्मनी को हर साल 10 हजार रेक्समार्क्स मिलते थे।

आईजी फारबेन जाइक्लोन बी नामक जहरीले साइनाइड आधारित कीटनाशक का उत्पादन करती थी और उसकी आपूर्ति नाजियों को करती थी। जर्मनी के यातना शिविरों में 10 लाख से ज्यादा लोगों को मारने के लिए इसका इस्तेमाल हुआ। फारबेन लाशों को जलाने में इस्तेमाल होने वाले मेथानॉल की आपूर्ति भी नाजियों को करती थी। कंपनी ने यातना शिविरों में रहने वाले लोगों पर नए और अज्ञात टीकों के परीक्षण भी किए जिसमें बहुत से लोग मारे गए।

न्यूरेमबर्ग के ट्रायल में आईजी फारबेन के 24 अधिकारी मानवता के खिलाफ अपराध के दोषी पाए गए लेकिन केवल 13 को ही जेल भेजा गया। 1950 के दशक के शुरुआती सालों में गुलामी, लूट और जनसंहार के दोषी छूट गए और उन्होंने अपनी अपनी कंपनियों का संचालन भी संभाल लिया। इनमें से एक था बायर कंपनी का एक्जीक्यूटिव फ्रिट्स तेर मीर। वह आईजी में कई साल वरिष्ठ वैज्ञानिक रहा और 1937 में नाजी पार्टी में शामिल हो गया था। बाद में वह आईजी की तकनीकी कमेटी का अध्यक्ष बन गया। आउशवित्स की फैक्टी का निर्माण मीर की देखरेख में ही हुआ। वह 1952 में जेल से बाहर आ गया। 1956 में उसे बायर के सुपरवाइजरी बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया। 1964 तक वह इस पद पर रहा। आज भी बायर कंपनी जनसंहार के दोषी मीर को सम्मान की नजरों से देखती है।

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