

खनन क्षेत्रों में वायु प्रदूषण बढ़ने से लोगों में सांस व त्वचा रोग बढ़े, सरकार एनएचएम के तहत स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत कर रही है।
भारत ने सिकल सेल एनीमिया के लिए अपनी पहली सीआरआईएसपीआर-आधारित थेरेपी बिरसा-101 विकसित की, लक्ष्य-2047 तक सिकल सेल मुक्त भारत।
रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी व जल प्रदूषण बढ़ रहा है, मृदा स्वास्थ्य कार्ड और जैविक विकल्पों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग नीति उपभोक्ताओं को चीनी, नमक और वसा की चेतावनी दिखाने के लिए तैयार, यूपीएफ पर भी सख्ती की दिशा में कदम।
ग्रीन स्टील टैक्सोनॉमी, हाइड्रोजन-आधारित पायलट प्रोजेक्ट्स और फसल क्षति राहत तंत्र के माध्यम से भारत टिकाऊ उद्योग और सुरक्षित कृषि की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
संसद का शीतकालीन सत्र जारी है, आज, 12 दिसंबर, 2025 को लोकसभा और राज्यसभा में उठाए गए मुद्दों पर सरकार के विभिन्न मंत्रालयों ने अपने-अपने क्षेत्रों से जुड़ी समस्याओं, सरकारी योजनाओं और भावी प्रयासों की जानकारी दी।
वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव
भारत के कई खनन क्षेत्रों, विशेषकर छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले, में वायु प्रदूषण एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। यहां पीएम2.5 जैसे महीन कण सुरक्षित सीमा से अधिक पाए जाते हैं, जिससे लोगों में सांस की बीमारियां, त्वचा संबंधी समस्याएं और खान मजदूरों में फेफड़ों के रोग बढ़ते दिखाई दे रहे हैं।
इसी को लेकर सदन में उठाए गए एक सवाल के जवाब में आज, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने लोकसभा में बताया कि केंद्र सरकार वायु प्रदूषण की स्थिति पर लगातार निगरानी रखती है और राज्यों को स्वास्थ्य ढांचा मजबूत करने में सहायता देती है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि सरकार का मानना है कि स्वास्थ्य सिर्फ प्रदूषण पर नहीं बल्कि जीवनशैली, प्रतिरक्षा क्षमता और स्थानीय पर्यावरण पर भी निर्भर करता है। इसलिए जन-जागरूकता, स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार और प्रदूषण नियंत्रण-तीनों पर एक साथ काम किया जा रहा है।
सिकल सेल एनीमिया : भारत का बड़ा स्वास्थ्य अभियान
सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने लोकसभा में बताया कि सिकल सेल एनीमिया एक वंशानुगत रक्त विकार है, जो विशेष रूप से आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है। उन्होंने कहा सरकार ने इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
सबसे बड़ा कदम है भारत द्वारा विकसित सीआरआईएसपीआर आधारित जीन-थेरेपी-बिरसा-101, जो सिकल सेल एनीमिया के उपचार में एक बड़ा वैज्ञानिक नवाचार है। इसके अलावा राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन के तहत देशभर में स्क्रीनिंग की जा रही है ताकि मरीजों की पहचान समय पर हो सके।
मरीजों को हाइड्रोक्सी यूरिया दवा, पोषण सप्लीमेंट, योग-सत्र और परामर्श जैसी सुविधाएं निःशुल्क प्रदान की जा रही हैं। सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2047 तक “सिकल सेल मुक्त भारत” का सपना पूरा हो।
रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग : मिट्टी और पर्यावरण के लिए खतरा
भारत में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए लंबे समय से रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जाता रहा है। लेकिन इनके असंतुलित उपयोग से मिट्टी की उर्वरता घट रही है, पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ रहा है और भूजल प्रदूषित हो रहा है। इसी समस्या को लेकर सदन में उठे एक सवाल के जवाब में आज, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय में राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने लोकसभा में बताया कि सरकार किसानों को संतुलित पोषण प्रबंधन की ओर प्रोत्साहित कर रही है। इसके तहत:
इंटीग्रेटेड न्यूट्रिएंट मैनेजमेंट
जैविक खाद, हरी खाद और बायो-फर्टिलाइजर
मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड योजना
हजारों मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं
किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम
चलाए जा रहे हैं। इससे किसान अपनी जमीन की जरूरत के अनुसार सही उर्वरक का चयन कर सकें और पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सके। साथ ही, सरकार घरेलू उर्वरक उत्पादन बढ़ा रही है ताकि आयात पर निर्भरता कम हो।
फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (एफओपीएल) : स्वस्थ खाने की दिशा में बड़ा कदम
सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने लोकसभा में कहा कि आजकल बाजार में कई तरह के पैकेज्ड फूड उपलब्ध हैं। इनमें चीनी, नमक और वसा की मात्रा अधिक होती है, जिससे मोटापा, मधुमेह और हृदय रोगों का खतरा बढ़ता है। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (एफओपीएल) नीति तैयार की है।
स्वास्थ्य मंत्रालय और एफएसएसएआई मिलकर इस नीति को अंतिम रूप देने पर काम कर रहे हैं। 2022 में इसका मसौदा जनता के सुझाव हेतु जारी किया गया था। इसके बाद विशेषज्ञ समिति ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी है और मामला विचाराधीन है। इस नीति के लागू होने पर पैकेट के सामने ही चीनी, नमक और वसा की स्पष्ट चेतावनी दिखाई देगी ताकि उपभोक्ता आसानी से स्वस्थ विकल्प चुन सकें।
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड (यूपीएफ) : बढ़ता खतरा
भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड (जैसे चिप्स, शीतल पेय, पैक्ड नूडल्स, बिस्किट आदि) की खपत तेजी से बढ़ रही है। इनमें अक्सर अधिक चीनी, नमक, परिष्कृत तेल और रसायन पाए जाते हैं। परिणामस्वरूप मोटापा, डायबिटीज और हृदय रोग बढ़ रहे हैं।
इसी को लेकर सदन में उठाए गए एक अन्य सवाल के जवाब में आज, राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने लोकसभा में कहा कि वर्तमान खाद्य लेबलिंग नियमों में पोषण संबंधी जानकारी तो होती है, लेकिन उपभोक्ताओं को स्पष्ट चेतावनी देने वाले नियम अभी और मजबूत किए जाने की आवश्यकता है। फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (एफओपीएल) नीति इस दिशा में बड़ा सुधार लाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार लगातार जागरूकता अभियान चला रही है और लोगों को प्राकृतिक व ताज़े भोजन को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित कर रही है।
ग्रीन स्टील : स्वच्छ औद्योगिक विकास की ओर
ग्रीन स्टील को लेकर पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, स्टील मंत्रालय में राज्य मंत्री भूपतिराजू श्रीनिवास वर्मा ने राज्यसभा में इस विषय पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भारत 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना चाहता है और स्टील उद्योग इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
वर्मा ने कहा कि ग्रीन स्टील टैक्सोनॉमी लागू की गई है। अब तक 43 निजी स्टील इकाइयों को ग्रीन स्टील प्रमाणपत्र मिल चुके हैं। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत स्टील उत्पादन में हाइड्रोजन के उपयोग के लिए चार पायलट परियोजनाओं को मंजूरी मिली है। “ग्रीनिंग द स्टील सेक्टर इन इंडिया” नाम से विस्तृत रोडमैप जारी किया गया है। इससे भारत की औद्योगिक नीति अधिक स्वच्छ और टिकाऊ बन रही है।
साल 2025 में असमय बारिश व बाढ़ से फसलों को नुकसान
सदन में उठे एक प्रश्न के उत्तर में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने आज, राज्यसभा में बताया कि 2025 में कई राज्यों में असमय बारिश और बाढ़ के कारण फसलों को नुकसान पहुंचा। आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक लगभग 1.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ। गुजरात और झारखंड में नुकसान बहुत कम रहा।
राज्यों को राहत देने की जिम्मेदारी राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) के माध्यम से दी जाती है। गंभीर आपदाओं के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (एनडीआरएफ) से मदद दी जा सकती है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के अंतर्गत किसानों को नुकसान की भरपाई हेतु बीमा दावे और भुगतान किए गए।
संसद में उठाए गए ये मुद्दे बताते हैं कि भारत स्वास्थ्य, पर्यावरण, उद्योग और कृषि सभी क्षेत्रों में बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। वायु प्रदूषण से लेकर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड तक, सिकल सेल एनीमिया से लेकर ग्रीन स्टील और फसल सुरक्षा तक हर क्षेत्र में सरकार का कहना है कि वह नीतियों और वैज्ञानिक समाधान लेकर आगे बढ़ रही है।
इन पहलों का उद्देश्य सुरक्षित वातावरण, स्वस्थ नागरिक, सशक्त किसान और टिकाऊ औद्योगिक विकास है। सरकार के द्वारा कहा गया है कि आने वाले सालों में इन नीतियों के प्रभाव और भी स्पष्ट दिखाई देंगे।