2017 में देश भर में हुए 42143 पर्यावरणीय अपराध, तमिलनाडु शीर्ष पर

एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2016 के मुकाबले 2017 में नौ गुणा ज्यादा पर्यावरणीय आपराधिक मामले दर्ज किए गए
Photo: Kumar Sambhav Shrivastav
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पर्यावरण को लेकर लोग कितने जागरूक हैं, इसकी एक बानगी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े दे रहे हैं। एनसीआरबी से मिले आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2017 में देशभर में पर्यावरणीय अपराध के कुल 42143 मामले दर्ज किए गए, जो 2016 (4710 मामले) के मुकाबले करीब नौ गुना ज्यादा है। पर्यावरणीय अपराध के सबसे ज्यादा मामले तमिलनाडु में दर्ज हुए हैं। तमिलनाडु में कुल 20914 मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं, 10122 मामलों के साथ राजस्थान दूसरे पायदान पर है जबकि केरल कुल 6780 मामले दर्ज किए गए हैं।

हालांकि, पर्यावरणीय अपराधों के मामले में ये इजाफा इसलिए हुआ है, क्योंकि इस बार गृह मंत्रालय ने द सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट, 2003 और नॉयज पॉल्यूशन एक्ट के तहत होने वाले अपराधों को भी पर्यावरणीय अपराध में शामिल किया है। पहले फॉरेस्ट एंड फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट 1927, वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972, एनवायरमेंट (प्रोटेक्शन) एक्ट 1986, एयर (1981) एंड वाटर (प्रीवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ पॉल्यूशन) एक्ट 1974 के तहत दर्ज होनेवाले अपराधों को ही पर्यावरणीय अपराध की श्रेणी में रखा जाता था।

पर्यावरणविदों के अनुसार, खैनी (टोबैको) में कई ऐसे तत्व होते हैं, जो जलाने पर पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिए सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट, 2003 के तहत दर्ज मामलों को बहुत पहले ही पर्यावरणीय अपराधों में शामिल किया जाना चाहिए था। खैनी में कार्बन डायऑक्साइड, मिथेन जैसे रसायन होते हैं, जो जलने पर वायुमंडल को प्रदूषित कर देते हैं। इससे पर्यावरण को काफी नुकसान होता है। एक अनुमान के मुताबिक, स्मोकिंग से दुनियाभर में हर साल 2.6 बिलियन किलो कार्बन डाई-आक्साइड और 5.2 बिलियन मिथेन निकलता है, जो आबोहवा में फैल जाता है।

एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2017 में फॉरेस्ट एंड फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट 1927 के तहत 3005 मामले दर्ज किए गए। इनमें से सबसे ज्यादा 1576 मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए, वहीं राजस्थान में 656 मामले दर्ज किए गए। इसी तरह वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के अंतर्गत कुल 818 मामले दर्ज किए गए जिनमें यूपी अव्वल रहा। यूपी में कुल 264 मामले दर्ज किए गए। एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के तहत पर्यावरणीय अपराध के मामले में महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा हुए। देशभर में कुल 170 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से अकेले महाराष्ट्र में 127 मामले दर्ज हुए।

वहीं, सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट, 2003 के तहत कुल 29579 मामले दर्ज किए, जबकि ध्वनि प्रदूषण अधिनियम के अंतर्गत 8421 मामले दर्ज हुए।

यहां ये भी बता दें कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो वर्ष 2014 से पहले तक पर्यावरण से जुड़े अपराधों को अलग श्रेणी में नहीं रखता था। वर्ष 2014 से ही वन्यजीव व पर्यावरण संरक्षण से जुड़े अधिनियमों के तहत दर्ज होनेवाले मामलों को पर्यावरणीय अपराध की श्रेणी में रखा जाने लगा और अब सिगरेट एंड अदर टोबैके प्रोडक्ट्स एक्ट और ध्वनि प्रदूषण एक्ट के तहत दर्ज होनेवाले मामलों को भी पर्यावरणीय अपराध में शामिल किया गया है।

एनसीआरबी के ये आंकड़े बताते हैं कि पर्यावरण को लेकर देश के लोगों में जागरूकता की घोर कमी है। यही वजह भी है कि यहां वन्य जीव अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं और प्रदूषण इस स्तर पर पहुंच गया है कि लोगों की जान पर बन आया है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की ओर से पिछले साल जारी किये गये स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट (एसओई) के मुताबिक, वर्ष 2016 में ग्लोबल एवायरमेंट परफॉर्मेंस इंडेक्ट के मामले में भारत 180 देशों में 141वें स्थान पर था, जो वर्ष 2018 में खिसक कर 177वें स्थान पर आ गया।

पर्यावरणविदों का कहना है कि पर्यावरणीय अपराधों को लेकर न तो आम लोगों में जागरूकता है और न ही पुलिस प्रशासन में, इसलिए इस तरह के अपराधों को वे गंभीरता से नहीं लेते हैं। कोलकाता के एक बड़े तालाब के संरक्षण के लिए काम कर रहे पर्यावरणविद सौमेंद्र मोहन घोष अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, “रवींद्र सरोवर तालाब में जब लोग गंदगी फेंकते हैं, तो मैं वहां मौजूद पुलिस को अलर्ट करता हूं। लेकिन पुलिस कार्रवाई करने की जगह उल्टे कहती है कि ये उनका काम नहीं है। इसका मतलब है कि पुलिस पर्यावरणीय अपराधों के बारे में पता ही नहीं है।”

40720, गिरफ्तार, 36442 केसों में चार्जशीट दाखिल

एनसीआरबी की रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल 36442 मामलों में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है। इनमें ध्वनि प्रदूषण के 8314, वन अधिनियम के 2268, वन्यजीव अधिनियम के 578 और सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट, 2003 के 25168 मामले शामिल हैं। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2017 में दर्ज हुए कुल पर्यावरणीय अपराधों के मामलों में से 21968 मामलों में दोषियों को सजा हो चुकी है जबकि 1059 मामलों में आरोपितों को निर्दोष करार दिया गया।

आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2017 में दर्ज कुल 42143 मामलों में कुल 40720 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें से सबसे ज्यादा 25783 लोगों की गिरफ्तारी द सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट, 2003 के अंतर्गत की गई।  

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