हर सेकंड बंजर हो रही है चार फुटबॉल मैदान जितनी जमीन

17 जून को पूरी दुनिया मरुस्थलीकरण व सूखे से निदान पर बात करती है
भारत की कुल भूमि का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण से प्रभावित है।
भारत की कुल भूमि का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण से प्रभावित है।फोटो साभार: आईस्टॉक
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विश्व मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने का दिवस हर साल 17 जून को मनाया जाता है। दुनिया भर में यह दिवस मरुस्थलीकरण और सूखे जैसी गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने और उनसे निपटने के उपायों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मनाया जाता है। साल 2025 की थीम "भूमि को पुनःस्थापित करें। अवसरों को खोलना" है।

विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा निवारण दिवस संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1994 में घोषित किया गया था। यह मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे के समाधान के बारे में जागरूकता बढ़ाता है और उन्हें बढ़ावा देता है।

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भारत की कुल भूमि का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण से प्रभावित है।

इस साल का मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस दुनिया भर में सबसे अहम चुनौतियों में से एक पर आधारित है: 1.5 अरब हेक्टेयर बंजर भूमि को बहाल करना और 2030 तक एक ट्रिलियन डॉलर की भूमि पुनरुद्धार अर्थव्यवस्था को गति देना है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का आधे से अधिक हिस्सा स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर करता है। फिर भी हर साल, मिस्र के आकार का एक क्षेत्र क्षरित होता है, जिससे जैव विविधता का नुकसान होता है, सूखे का खतरा बढ़ता है और लोग विस्थापित होते हैं। इसका असर वैश्विक स्तर पर होता है जिसमें खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों से लेकर अस्थिरता और पलायन तक शामिल है।

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लेकिन भूमि को बहाल करने से स्थिति बदल जाती है। बहाली में निवेश किया गया हर डॉलर सात से 30 डॉलर का प्रतिफल या रिटर्न देता है। भूमि को पुनर्जीवित करने से उत्पादकता बहाल होती है, जल चक्र मजबूत होता है और लाखों ग्रामीण आजीविकाओं को सहारा मिलता है।

जैसे-जैसे हम पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक (2021-2030) के मध्य बिंदु पर पहुंच रहे हैं, कार्रवाई पहले से कहीं ज्यादा जरूरी हो गई है। वैश्विक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, 2030 तक 1.5 अरब हेक्टेयर भूमि को बहाल किया जाना चाहिए। अब तक, जी20 ग्लोबल लैंड रिस्टोरेशन इनिशिएटिव और ग्रेट ग्रीन वॉल इनिशिएटिव जैसी पहलों के जरिए एक अरब हेक्टेयर भूमि को बहाल करने का संकल्प लिया गया है।

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मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा हमारे समय की सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों में से हैं तथा दुनिया भर में 40 फीसदी भूमि क्षेत्र पहले से ही क्षरित माना जाता है।

हर सेकंड, चार फुटबॉल के मैदानों के बराबर स्वस्थ भूमि क्षरित, यानी भूमि की गुणवत्ता में गिरावट हो जाती है। मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे से प्रभावित कई देशों में, कृषि आर्थिक राजस्व का एक बड़ा हिस्सा है। सूखे के दौरान संरक्षण कृषि से फसल की पानी की जरूरतों में 30 फीसदी तक की कमी आ सकती है।

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भारत में मरुस्थलीकरण की स्थिति

भारत की कुल भूमि का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण से प्रभावित है।

भारत ने साल 2019 में यूएनसीसीडी कॉप -14 सम्मेलन की मेजबानी की, जिसमें भूमि बहाली के संबंध में कई महत्वपूर्ण वैश्विक निर्णय लिए गए।

भारत ने साल 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर भूमि को बहाल करने का लक्ष्य रखा है।

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