उत्तर प्रदेश: सोलर प्लांट के लिए जमीन देने वाले किसान क्यों हैं नाराज?

उत्तर प्रदेश में जब सौर ऊर्जा प्लांटों के लिए जमीनें अधिग्रहित की गई तो स्थानीय लोगों और किसानों में नई-नई उम्मीदें थीं, लेकिन हकीकत में क्या हुआ
उत्तर प्रदेश: सोलर प्लांट के लिए जमीन देने वाले किसान क्यों हैं नाराज?
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उत्तर प्रदेश में सौर ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने को लेकर शुरू की गई इस सीरीज की पहली कड़ी में आपने पढ़ा, सौर ऊर्जा लक्ष्य हासिल करने में क्यों पिछड़ रहा है उत्तर प्रदेश? । पढ़ें, इससे आगे की रिपोर्ट -  

आमदनी बढ़ने की उम्मीद में सहारनपुर के किसानों ने गांव में लग रहे 100 मेगावाट के सोलर प्लांट का स्वागत किया। प्लांट के लिए अपनी उपजाऊ जमीनें दी। लेकिन नौकरी न मिलने और सही मुआवजा न मिलने जैसी शिकायतों को लेकर कई किसान नाराज हैं। स्थानीय प्रशासन उन्हें अदालत जाने की सलाह दे रहा है। 

आम के बगीचे, गन्ने और धान के हरे-भरे खेतों के किनारे लगे पॉपुलर और यूकेलिप्टस वृक्षों के बीच से गुजरती संकरी सड़क पर करीब 10 किलोमीटर भीतर की ओर आगे बढ़ने पर, नागदेई नदी के ठीक किनारे, 50 मेगावाट का सौर ऊर्जा प्लांट सहारनपुर के बेहट तहसील के 6 गांवों के किसानों की उम्मीदों से जुड़ा था। 50 मेगावाट का इसका दूसरा हिस्सा करीब 7 किलोमीटर दूर हिंडन नदी के किनारे स्थापित है।

हैदराबाद की कंपनी फोर्थ पार्टनर एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड की सहायक कंपनी लालगंज पावर प्राइवेट लिमिटेड ने रेज पावर इन्फ्रा कंपनी की मदद से वर्ष 2019 में 100 मेगावाट का ये प्लांट विकसित किया। इसके लिए मुसैल, बेहडा कलां, मांगला, माडुवाला, जीवाला और अल्लीवाला गांव के किसानों से 400 एकड़ जमीन जुटाई गई।  

किसान क्रेडिट कार्ड से लिए गए कर्ज में डूबे किसानों ने जमीन लीज पर देने से होने वाली अतिरिक्त आमदनी और सौर प्लांट में नौकरी मिलने की उम्मीद में खुशी-खुशी अपनी जमीन इस बड़ी परियोजना के लिए दी।

सौर परियोजना के लिए जमीन लीज पर देने वाले किसानों के बीच लीज की रकम व अन्य भुगतान को लेकर विवाद है।

कैप्टिव मोड में आए इस सोलर प्रोजेक्ट का करार अल्ट्राटेक सीमेंट जैसी कंपनियों के साथ सरकारी मूल्य से ज्यादा दर पर हुआ। लेकिन किसानों को लीज न देने, खेतों में खड़े पेड़ों को काटने का मुआवजा न देने, खेतों में लगाए गए ट्रांसमिशन पोल का किराया न देने समेत लीज के कई बिंदुओं को लेकर मनमुटाव शुरू हुआ। 

लीज के तकनीकी पेंच

कंपनी को किसानों से जमीन दिलाने वाले व्यवसायी धीरज सिंह राणा बताते हैं “लीज की रकम कम करने के लिए कंपनी ने तरकीबें आजमाईं। उन्हें पता था कि इस क्षेत्र के ज्यादातर किसानों ने किसानों क्रेडिट कार्ड से लोन लिया है और बैंक उन पर कर्ज चुकाने का दबाव बना रहे हैं। कंपनी ने वादा किया कि वे बैंक को उनका कर्ज चुका देंगे और जमीन की लीज से मिलने वाले किराए से कटौती करेंगे”। 

कर्ज चुकने के लालच में किसानों ने खुशी-खुशी अपनी जमीनें दीं। प्रति बीघा (5.92 एकड) 9 हजार रुपए यानी तकरीबन 54 हजार प्रति एकड़ के हिसाब से 27 साल की लीज तय की गई। हर 3 साल पर इसमें 10% बढ़ोतरी होनी थी। रेज पावर इन्फ्रा ने सोलर प्लांट विकसित कर लालगंज पावर कंपनी को सुपुर्द कर दिया। 

35-40 पन्नों के लीज दस्तावेज की तकनीकी जानकारी किसानों को नहीं थी। अपनी 20 बीघा जमीन सौर प्रोजेक्ट के लिए देने वाले किसान अजय पुंडीर कहते हैं “कंपनी ने नेट प्रेजेंट वैल्यू (एनपीवी) के आधार पर किसानों का कर्ज चुकता करने की बात कही। हमें तब नहीं पता था कि एनपीवी क्या है। मैंने 8 लाख रुपए का कर्ज लिया था। लीज के किराये से जो कर्ज 15 साल में पूरा होता, एनपीवी से वो 21-22 साल में पूरा होगा। किसानों का लोन जमा करने पर लीज में हर तीन साल पर 10% की बढ़ोतरी भी काट दी”। 

ये जानकारी मिलने पर किसान खुद को ठगा महसूस करने लगे।

इस जगह किसान अजय पुंडीर का आम का बगीचा हुआ करता था।

खेत गए, पेड़ गए

स्थानीय प्रशासन को पत्र लिखकर अजय ने बताया कि सोलर प्लांट के लिए 27 वर्ष की लीज पर अपनी जमीन लालगंज कंपनी को दी थी। जमीन पर लगा आम का बगीचा भी काटना पडा। लेकिन जमीन प्लांट के लिए इस्तेमाल नहीं हुई। अब न किराया मिल रहा है, न ही आम के बगीचे का मुआवजा।

तहसील दिवस पर हुई जनसुनवाई में इस मामले को अदालत ले जाने का सुझाव दिया गया। लीज में जयपुर को न्यायिक क्षेत्र बनाया गया है। 

अजय समेत अन्य किसानों का कहना है कि वे अपनी खेती छोड जयपुर जाकर केस कैसे लडेंगे। “इस प्लांट के लिए जमीन लीज पर देकर कई किसान पछता रहे हैं। प्लांट में 70% स्थानीय लोगों को नौकरी देने की बात कही गई। लेकिन हमें नौकरी नहीं मिली। कंपनी ने हमारी जमीन बंधक रखकर लोन लेने का अधिकार भी हासिल कर लिया। जबकि हम इस पर सहमत नहीं हुए थे। कंपनी के इस धोखे को देखते हुए सहारनपुर जिले में हम किसान अब कोई प्रोजेक्ट नहीं लगने देंगे”। 

किसानों ने प्रशासनिक अधिकारियों को लिखे पत्रों की प्रति दिखाई।

किसानों का आरोप है कि ट्रांसमिशन लाइन के लिए खेत से कई पेड़ काटने पडे़ लेकिन कंपनी पोल का किराया और पेड़ों का मुआवजा नहीं दे रही। 

इस पूरे मामले में अस्पष्टता की एक वजह यह भी बनी कि प्लांट विकसित करने वाली कंपनी रेज पावर इन्फ्रा ने किसानों से जमीन ली और लीज की शर्तें तय की थी। प्लांट तैयार होने के बाद लालगंज पावर प्रा. लि. को प्लांट सुपुर्द कर दिया। किसानों का आरोप है कि लालगंज पावर कंपनी ने उन शर्तों में फेरबदल किया। 

करीब 7-8 किलोमीटर दूर 50-50 मेगावाट प्लांट के लिए लाई जा रही ट्रांसमिशन लाइन की जद में बडी संख्या में खेतों के किनारे लगे पेड़ आए। 

इस मुद्दे पर धरना प्रदर्शन कर चुके भारतीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष ठाकुर पूरण सिंह बताते हैं “खेतों में पोल लगाने पर किसान को 27 हजार रुपए देने का वादा था। पोल के चलते कटने वाले यूकेलिप्टस, पॉपुलर और अन्य पेड़ों की कीमत चुकाने की बात कही गई थी। ये पेड़ किसान की आमदनी का जरिया हैं। लेकिन कंपनी पेड़ों का मुआवजा देने से मुकर गई। किसानों ने विरोध किया तो रात में चुपचाप पेड़ काट दिए गए”।   

बिना सूचना खेत से यूकेलिप्टिस के पेड़ काटने के मामले में किसान आसिफ राणा ने फतेहपुर थाने में अपनी शिकायत दर्ज कराई है।

लालगंज पावर कंपनी से नाराज किसान आसिफ राणा, सोमपाल सिंह और दलित किसान संजय 

दलित किसान से लीज भी नहीं

हरिद्वार निवासी दलित जाति के किसान संजय की 4.20 बीघा जमीन इस प्लांट में शामिल है। संजय ने सहारनपुर के जिलाधिकारी को पत्र लिखा कि जिंदगी भर की पूंजी जमा कर बेहडा कलां गांव में जमीन खरीदी थी। अप्रैल-2023 में जब वो अपनी जमीन देखने पहुंचे तो पाया कि वहां सौर प्लांट खडा है। ये पत्र दिखाते हुए संजय के भाई राजू कहते हैं “शिकायत करने पर कंपनी के अधिकारी उलटा हमें धमकी देते हैं। हमारे साथ कोई करार नहीं हुआ। हमारी जमीन बिना मंजूरी के ली गई”।

कंपनी लालगंज पावर प्रा.लि. ने 50-50 मेगावाट के दो सोलर प्लांट लगाए हैं। 

निवेशक को नाराज नहीं कर सकते

लालगंज पावर कंपनी के निदेशक ब्रजेश सिन्हा किसानों के आरोपों को खारिज करते हैं, “हमारे पास किसान या प्रशासन से जो भी शिकायतें आती हैं हम उसे दूर करते हैं। लेकिन कोई निराधार आरोप लगाता है तो हम उसकी जिम्मेदारी नहीं लेते। हमारी कंपनी पर किसी किसान का कोई पैसा बकाया नहीं है”। 

एनपीवी तरीके पर ब्रजेश कहते हैं “किसानों को शुरू से पता था कि हम नेट प्रेजेंट वैल्यू के आधार पर लोन चुकाएंगे। ये समझौते के तहत किया गया”।

राज्य में निवेश बढ़ाने के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के चलते स्थानीय प्रशासन निवेशकों को नाराज नहीं करना चाहता। सहारनपुर के मुख्य विकास अधिकारी विजय कुमार कहते हैं “सोलर प्लांट निजी कंपनी और किसानों के बीच आपसी सहमति से बना है। इसमें प्रशासन की कोई भूमिका नहीं है। हम किसानों की समस्या हल करेंगे लेकिन निवेशकों का भी पूरा ख्याल रखा जाएगा”।

वहीं बेहट तहसील के उपजिलाधिकारी दीपक कुमार किसानों को अदालत जाने की सलाह देते हैं, “जहां कोई बडी परियोजना आती है और जमीनें ली जाती हैं तो किसान ज्यादा पैसे की उम्मीद करते हैं और विवाद पैदा करते हैं। आपसी सहमति से मामला नहीं सुलझ रहा है तो वे अदालत जा सकते हैं”।

निवेशकों को नहीं मिली जमीन

ग्रामीण क्षेत्र में सौर परियोजनाओं का विकास भूमि और संसाधनों पर नई प्रतिस्पर्धा को जन्म दे रहा है। इस विवाद से सहारनपुर के अन्य किसान भी सहम गए हैं। किसानों की जमीन जुटाने में मदद करने वाले व्यवसायी धीरज राणा भी अपना मेहनताना न दिए जाने की शिकायत की है। वह बताते हैं “इसी क्षेत्र में 160 मेगावाट का सोलर प्लांट लगाने के इच्छुक निवेशकों को किसानों ने जमीनें नहीं दी और उन्हें वापस लौटना पड़ा”। 

सहारनपुर का ये सौर प्लांट उदाहरण है कि किसानों को साथ लिए बिना अक्षय ऊर्जा लक्ष्य हासिल करना  कठिन है।

(This story was produced with support from Internews’s Earth Journalism Network)

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