पवन ऊर्जा की क्षमता बढ़ाने के लिए तमिलनाडु को करना होगा पॉलिसी में सुधार: सीएसई

तमिलनाडु की कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता में पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी है। हालांकि इसके बावजूद तमिलनाडु अपने पुराने विंड टर्बाइनों से जूझ रहा है
Photo: Kanchan Kumar Agrawal
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भारत में पवन ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी होने के बावजूद, तमिलनाडु को अपनी पवन ऊर्जा क्षमता को अधिकतम करने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी नई रिपोर्ट में खुलासा किया है कि इस राह में मौजूद प्रमुख बाधाओं और चुनौतियों में एक इसकी खुद की 'विंड रीपावरिंग पॉलिसी' है। ऐसे में सीएसई का सुझाव है कि तमिलनाडु को अपनी 'विंड रीपावरिंग पॉलिसी' यानी ‘पवन ऊर्जा पुनर्संचालन नीति’ में सुधार करने की आवश्यकता है।

गौरतलब है कि 'विंड रीपावरिंग पॉलिसी उन दिशा-निर्देशों और नियमों को संदर्भित करती है जो पुराने पवन टर्बाइनों को नए, अधिक कुशल मॉडल के साथ अपग्रेड करने या बदलने की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं। इनका लक्ष्य नई भूमि की आवश्यकता के बिना मौजूदा पवन फार्मों के ऊर्जा उत्पादन और दक्षता को बढ़ाना है।

सीएसई में इंडस्ट्री और रिन्यूएबल एनर्जी टीमों के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव का कहना है तमिलनाडु की कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता में पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी है। हालांकि इसके बावजूद तमिलनाडु अपने पुराने टर्बाइनों से जूझ रहा है।

इनकी वजह से राज्य के कुल बिजली उत्पादन में तमिलनाडु की हिस्सेदारी घटकर महज 15 फीसदी रह गया है। इसके साथ ही राज्य की विंड रीपावरिंग पॉलिसी में मौजूद खामियां और सीमाओं ने राज्य को अपनी वास्तविक क्षमता हासिल करने से रोक दिया है।

'एक्सीलेरेटिंग विंड रीपावरिंग पॉलिसी इन तमिलनाडु' नामक यह रिपोर्ट एक वर्कशॉप के दौरान जारी की गई है।

सीएसई में अक्षय ऊर्जा विभाग के कार्यक्रम प्रबंधक बिनीत दास ने इस बारे में समझते हुए कहा है कि, "पुनर्निर्माण का मतलब है कि तमिलनाडु के पुराने होते टर्बाइनों को अधिक उन्नत, कुशल मॉडलों से बदलना।" उनके मुताबिक इससे राज्य के क्षमता उपयोग कारक (सीयूएफ) में तीन गुणा वृद्धि हो सकती है। इससे एक तरफ जहां राज्य की ऊर्जा दक्षता में सुधार हो सकता है, वहीं साथ ही इनकी सुरक्षा से जुड़े खतरों और ब्रेकडाउन को संबोधित किया जा सकता है।

 दास का कहना है कि, “रिपोर्ट राज्य में पवन ऊर्जा में तेजी से इजाफा करने की क्षमता का विश्लेषण करती है। साथ ही यह हाल ही में लागू की गई रीपावरिंग पॉलिसी की समीक्षा भी करती है। रिपोर्ट में पवन ऊर्जा से जुड़े नीतिगत ढांचे को मजबूत करने के लिए अंतर्दृष्टि और सिफारिशें भी प्रदान की गई हैं, जिससे तमिलनाडु को अपनी पवन ऊर्जा क्षमता को अधिकतम करने में मदद मिल सकती है।"

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पवन ऊर्जा फार्मों को अपग्रेड करके 25.4 गीगावाट अतिरिक्त ऊर्जा पैदा करने की क्षमता है। इस क्षमता में से अकेले तमिलनाडु 7.3 गीगावाट ऊर्जा पैदा कर सकता है। यादव के मुताबिक पवन ऊर्जा को बेहतर बनाने के लिए इस क्षमता का उपयोग करना बहुत महत्वपूर्ण है। यह राज्य के स्वच्छ ऊर्जा की ओर कदम बढ़ाने का एक बड़ा हिस्सा है।

मौजूदा नीति में क्या कुछ हैं खामियां

बुनियादी ढांचे से जुड़ी चुनौती: रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा नीति डेवलपर्स को अपने पुराने टर्बाइनों को अपग्रेड करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करती, क्योंकि रीपावरिंग के बाद उत्पादित अतिरिक्त बिजली के प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचे में बड़ी खामियां हैं। तमिलनाडु में पवन ऊर्जा, अक्षय ऊर्जा की रीढ़ है।

जून 2024 तक इसकी कुल क्षमता 10.7 गीगावॉट दर्ज की गई थी। वहीं इन रीपावरिंग परियोजनाओं से 7.3 गीगावॉट अतिरिक्त बिजली पैदा हो सकती है। इससे बिजली उत्पादन में संभावित रूप से तीन गुणा वृद्धि हो सकती है। हालांकि क्या ग्रिड इस अतिरिक्त बिजली को संभाल सकते हैं या बाजार के पास इसके उपयोग करने की क्षमता है या नहीं, यह बड़ा सवाल है।

रिपोर्ट में इस बात को भी लेकर चिंता जताई गई है कि मौजूदा बिजली लाइनें नई पवन टर्बाइनों से मिलने वाली अतिरिक्त बिजली को संभालने के काबिल नहीं हैं। हालांकि नीति में इस समस्या से कैसे उबरा जाए इस पर प्रकाश नहीं डाला गया है। विशेष रूप से 11-केवी लाइनों को अपग्रेड करना की आवश्यकता है जो अक्सर परेशानी पैदा करती हैं। इसके लिए उन्हें कम से कम 33-केवीतक अपग्रेड करने की आवश्यकता है, ताकि वो अतिरिक्त बिजली को संभाल सकें।

डेवलपर्स पर अतिरिक्त लागत भी है बड़ी समस्या। देखा जाए तो भले ही डेवलपर्स बिजली के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए प्रति मेगावाट 30 लाख रुपए का बड़ा शुल्क देते हैं, फिर भी उन्हें स्टेशनों को अपग्रेड करने और बिजली कैसे भेजी जाए, इसका प्रबंधन करने के लिए अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं। तमिलनाडु सेंट्रल ट्रांसमिशन यूटिलिटी (सीटीयू) से जुड़ी पवन परियोजनाओं पर 50 लाख रुपए का अतिरिक्त शुल्क भी लेता है।

ऐसे में डेवलपर्स के लिए उस प्रणाली से जुड़ना कम आकर्षक हो जाता है। नतीजन वे इसके बजाय, वे स्टेट ग्रिड का उपयोग करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

यह नीति केवल नई परियोजनाओं के लिए मासिक बैंकिंग की अनुमति देती है और उपयोग को गैर-पीक घंटों तक सीमित करती है। इससे यह स्पष्ट नहीं होता कि डेवलपर्स रीपावरिंग के बाद पीक समय के दौरान पैदा होने वाली अतिरिक्त बिजली का क्या करेंगे।

कई अलग-अलग लोगों के पास पवन टर्बाइनों के छोटे-छोटे समूह हैं, जिससे उन्हें अपग्रेड करना मुश्किल हो जाता है। इसकी वजह से भूमि का कुशलतापूर्वक उपयोग भी मुश्किल हो जाता है। मौजूदा नीति वास्तव में इस समस्या को हल करने में मदद नहीं करती। इस विखंडित स्वामित्व के चलते, टर्बाइनों को बेहतर बनाने और भूमि से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए एक साथ काम करना मुश्किल है, जो कि रीपावरिंग परियोजनाओं को सफल बनाने की राह में एक बड़ी चुनौती है।

कैसे चुनौती को किया जा सकता है हल सीएसई ने सुझाया रास्ता

सीएसई द्वारा किए आर्थिक विश्लेषण से पता चला है कि तमिलनाडु में पवन ऊर्जा फार्मों को फिर से चालू करने के लिए 6,336 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि की आवश्यकता है, ताकि रीपावरिंग और नई परियोजनाएं शुरू करने की लागत के बीच मौजूद अंतर को पाटा जा सके। यादव इस बात पर जोर देते हैं कि रीपावरिंग को वित्तीय रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए यह निवेश आवश्यक है।

सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में राज्य की रीपावरिंग नीति में सुधार के लिए जो उपाय सुझाए हैं उनमें पावर लाइनों को अपग्रेड करना शामिल है। इसके तहत 11 केवी लाइनों को तत्काल कम से कम 33 केवी तक अपग्रेड करने की बात कही गई है।

इसके साथ ही विभिन्न ऊर्जा परियोजनाओं को पवन या सौर ऊर्जा जैसी अपनी स्वच्छ ऊर्जा को साझा करने और बेचने के लिए बिजली लाइनों का उपयोग करने देना। इसके साथ ही यदि इनके उपयोग के लिए समय पर भुगतान किया जाता है तो वित्तीय प्रोत्साहन सुनिश्चित करने से परियोजना की व्यवहार्यता बढ़ सकती है।

भूमि की अदला-बदली और साझा स्वामित्व लागू करना महत्वपूर्ण: कई छोटे मालिकों की समस्या को हल करने के लिए, छोटे टर्बाइनों को बड़े, अधिक कुशल टर्बाइनों से बदलने की अनुमति देना फायदेमंद हो सकता है।

डेवलपर्स के लिए वित्तीय प्रोत्साहन भी महत्वपूर्ण है। इसके तहत उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन, सरकार समर्थित ऋण गारंटी और फीड-इन टैरिफ की शुरूआत से   रीपावरिंग को वित्तीय रूप से संभव बनाया जा सकता है। इसके साथ ही रिपोर्ट के मुताबिक जहां तक संभव हो हाइब्रिड प्रणालियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके तहत पवन परियोजनाओं को सौर ऊर्जा के साथ जोड़ा जाना महत्वपूर्ण है।

दास बताते हैं कि तमिलनाडु के अधिकांश पुराने टर्बाइन बड़े क्षेत्रों में ऐसे स्थानों पर मौजूद हैं, जहां तेज हवाएं चलती हैं। मतलब की वो क्षेत्र हैं जो पवन ऊर्जा के लिहाज से बेहतर हैं। ऐसे में राज्य सरकार के लिए यह जरूरी है कि वो व्यवसाय मालिकों के साथ मिलकर ऐसी नीति बनाए जो विंड रीपावरिंग का विकल्प चुनने के लिए प्रोत्साहित करे। सीएसई ने तमिलनाडु सरकार से इन चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने और रिपोर्ट में दी गई सिफारिशों को अपनाने का आग्रह किया है।"

उनके मुताबिक राज्य में पवन ऊर्जा क्षमता के पर्याप्त दोहन के साथ-साथ आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और तमिलनाडु को भारत के स्वच्छ ऊर्जा आंदोलन में अग्रणी बनाने के लिए एक ठोस रीपावरिंग नीति जरूरी है।

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