
दिल्ली में बढ़ती गर्मी और नमी के कारण बिजली की खपत में तेजी से वृद्धि हो रही है।
सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार, हीट इंडेक्स के बढ़ने से लोग एसी और कूलर का अधिक उपयोग कर रहे हैं, जिससे बिजली की मांग बढ़ रही है।
मानसून के दौरान भी नमी के कारण बिजली की खपत में कमी नहीं आ रही है।
दिल्ली की गर्मियां पहले की तरह तयशुदा नहीं रहीं, बल्कि लू, अनियमित बारिश, उमस और एसी-कूलर पर बढ़ती निर्भरता से और ज्यादा अस्थिर हो गई हैं।
अब रातों में भी पर्याप्त ठंडक नहीं मिल रही। पहले दिन और रात के तापमान में 15 डिग्री सेल्सियस तक का अंतर रहता था।
दिल्ली अब सिर्फ गर्मियों में बढ़ते तापमान से ही नहीं जूझ रही, बल्कि बढ़ती नमी और लगातार बदलते मौसम से भी परेशान है। नतीजा यह है कि राजधानी में बिजली की मांग साल दर साल नए रिकॉर्ड बना रही है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी नई रिपोर्ट में जानकारी दी है कि दिल्ली में जैसे ही हीट इंडेक्स यानी गर्मी और नमी का मेल बढ़ता है और असर आरामदायक सीमा से ऊपर जाता है, शहर में लोग बड़ी संख्या में एसी-कूलर की शरण में पहुंच जाते हैं। नतीजा यह होता है कि बिजली की मांग भी तेजी से बढ़ने लगती है।
अब दिल्ली में बिजली की खपत शहर पर पड़ रहे गर्मी और उमस के दबाव का सीधा संकेतक बन चुकी है।
गर्मी + नमी = बिजली की बढ़ी खपत
रिपोर्ट का कहना है कि दिल्ली आज जलवायु और ऊर्जा संकट के मोर्चे पर खड़ी है। लगातार बढ़ती गर्मी और उमस ने शहर में ठंडक पाने की जरूरत और बिजली की खपत को तेजी से बढ़ा दिया है।
अब दिल्ली की गर्मियां पहले की तरह तयशुदा नहीं रहीं, बल्कि लू, अनियमित बारिश, उमस और एसी-कूलर पर बढ़ती निर्भरता से और ज्यादा अस्थिर हो गई हैं।
इस साल भी टूटा रिकॉर्ड
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि दिल्ली में बिजली की पीक डिमांड लगातार बढ़ रही है। आंकड़ों के मुताबिक 12 जून 2025 की रात 11:09 बजे दिल्ली में बिजली की मांग बढ़कर 8,442 मेगावॉट तक पहुंच गई। यह अब तक का दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है, जो 19 जून 2024 को दर्ज 8,656 मेगावॉट की सर्वाधिक मांग से सिर्फ 2.5 फीसदी कम है।
पिछले एक दशक में देखें तो दिल्ली की पीक बिजली मांग 2015 में 5,846 मेगावॉट से बढ़कर 2025 में 8,442 मेगावॉट तक पहुंच गई है, यानी इस दौरान इसमें 44 प्रतिशत की भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
सीएसई की यह नई रिपोर्ट दर्शाती है कि कैसे तापमान, नमी और गर्मी का सीधा असर बिजली की मांग पर पड़ रहा है। रिपोर्ट से पता चला है कि अब बिजली की पीक मांग पहले से ज्यादा तेजी से बढ़ रही है और लंबे समय तक बनी रहती है। दिल्ली की मुश्किल केवल गर्मियों तक सीमित नहीं है, बल्कि मानसून के महीनों में बढ़ी हुई उमस भी हीट इंडेक्स को बहुत ऊपर ले जाती है। इसका असर यह होता है कि बिजली की मांग और तेजी से बढ़ती है, जिससे ग्रिड पर दबाव बढ़ रहा है।
बरसातों में भी नहीं मिल रही राहत
पहले माना जाता था कि बारिश से दिल्ली ठंडी हो जाती है और बिजली की खपत घट जाती है। लेकिन अब ऐसा नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक बरसात के मौसम में जून से अगस्त के बीच नमी इतनी बढ़ जाती है कि हीट इंडेक्स बढ़कर 46 से 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इससे लोग दिन-रात एसी-कूलर चलाते रहते हैं। ऐसे में बारिशों के दौरान भी बिजली की खपत ऊंची बनी रहती है।
अपने इस अध्ययन सीएसई ने 2021 से 2025 के बीच दिल्ली में दर्ज हवा के तापमान, बिजली की मांग, जमीनी सतह के तापमान, हीट इंडेक्स और उमस की स्थिति का तुलनात्मक विश्लेषण किया है। इसमें गर्मी के मौसम को मार्च से अगस्त तक माना गया है, जिसे भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) की परिभाषा के अनुसार प्री-मानसून (मार्च से मई) और मानसून (जून से अगस्त) में बांटा है। साथ ही इस विश्लेषण में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध आंकड़ों की भी मदद ली गई है।
रातें भी हो रही गर्म
रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाला बदलाव देखा गया वो यह है कि अब रातों में भी पर्याप्त ठंडक नहीं मिल रही। पहले दिन और रात के तापमान में 15 डिग्री सेल्सियस तक का अंतर रहता था।
लेकिन चिंता की बात है कि 2025 में यह अंतर घटकर महज 8.6 डिग्री सेल्सियस रह गया। यानी गर्मी दिन के साथ-साथ अब रातों में भी लोगों को चैन नहीं लेने दे रही। यही वजह है कि इस बार बिजली की मांग का पीक समय रात 11 बजे दर्ज हुआ।
रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में रातें भी कहीं ज्यादा गर्म हो रही हैं क्योंकि दिन की जमा गर्मी सही तरह से नहीं निकल पा रही। इससे लंबे समय तक गर्मी का असर बना रहता है और स्वास्थ्य से जुड़े जोखिम बढ़ जाते हैं।
इसका बड़ा कारण शहरों में बढ़ता कंक्रीट, हरियाली में आती गिरावट, जलस्रोतों की कमी, इमारतों में थर्मल कम्फर्ट की कमी, ठंडक के लिए पर्याप्त शेल्टर का अभाव और एसी व गाड़ियों से निकलने वाली अतिरिक्त गर्मी है, जो शहरों को और ज्यादा गर्म बना रही है। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन भी इस समस्या को और अस्थिर कर रहा है।
अध्ययन में पाया गया कि मार्च से मई के दौरान हीट इंडेक्स सामान्यतः 31 से 32 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है, लेकिन जून से अगस्त में यह 46 से 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। यही वजह है कि बारिश होने के बावजूद मानसून के महीनों में बिजली की मांग में तेजी बनी रहती है।
2025 के मानसून के महीनों में दिन और रात के जमीनी तापमान 2024 की तुलना में क्रमशः 2.1 डिग्री सेल्सियसऔर 3 डिग्री सेल्सियस अधिक रहे। साथ ही दिन–रात के तापमान का फर्क घटने से ठंडक का समय भी कम हो गया, जिससे गर्मी का दबाव और बढ़ गया।
दिलचस्प यह है कि अप्रैल 2025 में बिजली की खपत अप्रैल 2024 से भी अधिक रही, जो इस साल गर्मियों की ज्यादा गर्म शुरुआत को दर्शाता है।
स्वास्थ्य पर मंडराता खतरा
गर्मी और नमी का यह असर सिर्फ बिजली पर ही नहीं पड़ रहा। लंबे समय तक गर्मी झेलने से लोगों के स्वास्थ्य पर भी सीधा असर पड़ रहा है। इसकी वजह से लोगों में हीट स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन और थकान जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।
ऐसे में रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली को अब ठंडक पाने के लिए सिर्फ एसी-कूलर पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। शहर में ज्यादा-ज्यादा हरियाली करने के साथ, जल स्रोत भी बढ़ाने होंगे, कंक्रीट के फैलते जंगल को कम करना होगा, इमारतों को ऊर्जा दक्ष और आरामदेह बनाना होगा। साथ ही, आर्थिक रूप से कमजोर इलाकों में लोगों को ठंडक देने के लिए सुरक्षित कूलिंग शेल्टर की व्यवस्था करनी होगी।
देखा जाए तो दिल्ली का यह हाल देशव्यापी संकट को भी दर्शाता है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईए) द्वारा 2023 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे गर्मियां कम से कम एक महीने पहले शुरू हो रही हैं और लू की घटनाएं पहले से कहीं ज्यादा तीव्र हो गई हैं। इतना ही नहीं यह बार-बार दस्तक दे रही हैं।
देश में एसी की बढ़ती संख्या के साथ, पिछले दस वर्षों में बिजली की पीक मांग हर साल औसतन चार फीसदी की दर से बढ़ी है।
रिपोर्ट के मुताबिक जब औसत तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है तो ठंडक की जरूरत अचानक से बढ़ जाती है। अनुमान है कि 2030 तक बिजली की पीक मांग 2022 की तुलना में करीब 60 फीसदी बढ़ जाएगी। आपको जानकारी हैरानी होगी कि इसमें से करीब आधी बढ़ोतरी केवल एसी-कूलर और ठंडा रखने के लिए अन्य उपकरणों की बढ़ती जरूरतों के कारण होगी।
फिलहाल देश की कुल बिजली खपत का करीब 10 फीसदी हिस्सा सिर्फ स्पेस कूलिंग (एसी-कूलर चलाने) में जा रहा है। 2019 से 2022 के बीच इसकी मांग 21 फीसदी बढ़ी है। आईए के मुताबिक, औसत तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी (24°C से ऊपर) के साथ भारत में बिजली की खपत करीब 2 फीसदी बढ़ जाती है।
आंकड़ों के मुताबिक 2019 से पहले केवल हर 10 में से एक घर में एसी था, लेकिन 2021 तक लगभग 24 फीसदी घरों में या तो कूलर या एसी आ चुका है। इसी वजह से 2019 से 2022 के बीच बिजली की खपत 21 फीसदी बढ़ी है।
देखा जाए तो भले ही आज देश की कुल बिजली खपत का करीब 10 फीसदी हिस्सा केवल स्पेस कूलिंग यानी एसी-कूलर पर खर्च हो रहा है। लेकिन विडम्बना यह है कि बड़ी आबादी, खासकर गरीब और संवेदनशील वर्ग, आज भी पर्याप्त ठंडक पाने से वंचित है।
ऐसे हालात में जरूरी है कि घरों में थर्मल कम्फर्ट को बढ़ाने के लिए टिकाऊ और किफायती समाधान तलाशे जाएं।