चुटका गांव के आदिवासियों के लिए पुनर्वास कॉलोनी तैयार लेकिन पड़ी है खाली

मध्य प्रदेश के मंडला जिले के आदिवासी 54 गांवों में से पहले चुटका गांव के 330 परिवारों के लिए न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने मंडला में पुनर्वास कॉलोनी तैयार की
फाइल फोटो: सीएसई
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आखिर आदिवासी परिवारों को कितनी बार विस्थापित किया जाएगा? यह यक्ष प्रश्न मध्य प्रदेश के मंडला जिले के चुटका परमाणु बिजली घर परियोजना के निर्माण होने से विस्थापित होने वाले आदिवासियों ने उठाया है।

परमाण ऊर्जा विभाग के नियंत्रण के तहत आने वाले न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का कहना है कि हमने पहले चुटका गांव के 330 परिवारों के लिए मंडला जिले में एक कॉलानी का निर्माण कर दिया है और इसमें सभी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं। 

जबकि परियोजना से विस्थापित होने वाले पहले गांव चुटका के आदिवासियों का कहना है कि यह कॉलोनी हमें मंजूर नहीं है। क्योंकि यहां के घर हमारे ग्रामीण घरों के मुकाबले बहुत ही छोटे हैं। ऐसे में हमारे परिवार का इन घरों में गुजारा नहीं हो पाएगा। ध्यान रहे कि इस परियोजना से चुटका के आसपास के 54 गांवों को विस्थापित किया जाना है।

यहां सबसे अहम बात यह है कि ये वही आदिवासी हैं, जिन्हें 90 के दशक में जबलपुर के पास बने बरगी बांध के कारण विस्थापित कर इन गांवों में बसाया गया था। अब 32 साल बार एक बार फिर से उनके ऊपर विस्थापन की तलवार लटक रही है। आदिवासियों को पहले पानी के लिए अब बिजली के लिए विस्थापित होना पड़ेगा और ये दोनों ही बार इन दोनों सुविधाओं से यह आदिवासी समुदाव अब तक महरूम है।

आदिवासियों की चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति के अध्यक्ष दादु लाल कुंडापे ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यह सही है कि विस्थापित होने वाले आदिवासियों के लिए न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेश द्वारा एक कॉलोनी का निर्माण किया गया है। लेकिन इनमें क्या एक आदिवासी परिवार रह सकता है। क्योंकि इन घरों की बनावट ऐसी है जैसे कोई बंद कमरा हो। आदिवासी खुले स्थानों में रहने के आदि हैं।

ऐसे में यहां कैसे अपना गुजर बसर कर पाएंगे। उनका यहां तक कहना है कि आदिवासी इस तरह के छोटे आवास में रहने के आदी नहीं होते। वह कहते हैं कि पुनर्वास कालोनी में हमारी दर्जनों गाय-बैल, मुर्गी, बकरी आदि को रखने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। हम किसी कीमत पर अपना गांव नहीं छोड़ेंगे। उनका कहना था कि दूसरा हमारे रिश्तेदार और मेहमान भी आते रहते हैं। उनके ठहरने का उचित व्यवस्था छोटे से दो कमरे में नहीं हो पाएगा।  

इस संबंध में पहली बार विस्थापित आदिवसियों के बरगी विस्थापित संघ के सदस्य राजकुमार सिन्हां ने इस परियोजना पर सवाल उठाते हुए बताया कि अब तक कारपोरेशन ने यह नहीं बताया कि इस परमाणु बिजली घर से बनने वाली बिजली की दर क्या होगी? कायदे से उनको यह बताना चाहिए। वह पूछते हैं कि नर्मदा घाटी के बरगी बांध जलग्रहण क्षेत्र में प्रस्तावित यह 1,400 मेगावाट की चुटका परमाणु बिजलीघर की आवश्यकता है क्या?

वह बताते हैं कि वर्ष 2020 के आंकड़ों के अनुसार भारत में स्थापित बिजली क्षमता 3,71,054 मेगावाट थी, जिसमें नवीकरणीय (पवन/सौर) उर्जा की हिस्सेदारी 87,699 मेगावाट अर्थात कुल विद्युत उत्पादन का 23.60 प्रतिशत। परन्तु 1964 से शुरू हुआ परमाणु उर्जा संयत्र से अब तक मात्र 6,780 मेगावाट ही स्थापित क्षमता विकसित हो पाया है अर्थात कुल बिजली उत्पादन का 1.80 प्रतिशत।

ध्यान रहे कि मध्यप्रदेश में 22,500 मेगावाट बिजली की उपलब्धता है जबकि अधिकतम बिजली डिमांड 12,680 मेगावाट है। राज्य में इस समय नवीकरणीय उर्जा का उत्पादन 4,537 मेगावाट है। जबकि   5,000 मेगावाट की 6 सौर परियोजनाओ पर कार्य जारी है। 16,500 करोड़ रुपए की चुटका परियोजना से 1 मेगावाट बिजली उत्पादन की लागत लगभग 12 करोङ रुपए आएगी।

जबकि सौर उर्जा से 1 मेगावाट बिजली उत्पादन की लागत लगभग 4 करोङ रुपए आएगी। सौर उर्जा संयत्र 2 वर्ष के अंदर उत्पादन शुरू कर देगा, वहीं परमाणु बिजलीघर बनने में 10 वर्ष लगेंगे। दिल्ली स्थित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार परमाणु बिजली की लागत 9 से 12 रुपए प्रति यूनिट आएगी।

मध्य प्रदेश के मंडला जिले के चुटका सहित 54 गांवों को इस परमाणु बिजली घर के बारे में लगभग 25 साल बाद पता चला। चुटका गांव में अक्टूबर, 1984 में परमाणु ऊर्जा आयोग का विशेष दल स्थल निरीक्षण के लिए आया था। इस संबंध में चुटका गांव निवासी नवरतन दुबे बताते हैं कि इसके बाद फिर एक दल आया 1985-86 में उसने 4 से 500 फीट ड्रिलिंग की।

इसके बाद मिट्टी निकाल कर उसे लैब भेजा। उस समय हमसे कहा गया कि चूंकि हम बरगी बांध से विस्थापित हैं इसलिए सरकार यहां एक फैक्ट्री स्थापित करने जा रही है। लेकिन हमें इस परमाणु बिजली घर की जानकारी 14 अक्टूबर, 2009 को तब हुई जब जबलपुर के स्थानीय अखबारों में इस आशय की खबर छपी कि चुटका में परमाणु बिजली घर बनेगा और इससे 54 गांव विस्थापित होंगे। 

इस परियोजना से 1.25 लाख लोग विस्थापित होंगे। इस परियोजना को केन्द्र सरकार द्वारा अक्टूबर, 2009 में मंजूरी प्रदान की गई। 700 मेगावाट की दो यूनिट से 1,400 मेगावाट बिजली बनाने के बाद जल्द ही इनका विस्तार कर 2,800 मेगावाट बिजली बनाने का प्रस्ताव है। इस योजना की प्रारंभिक लागत 16,500 करोड़ रुपए आंकी गई है।

कारपोरेशन का कहना है कि अब तक जितनी भी जमीन अधिग्रहित करनी थी, वह अधिग्रहित की जा चुकी है। अब तक आवश्यक जमीन न्यूक्लियर पॉवर कारर्पोरेशन के नाम ट्रांसफर भी हो गई है। यह अधिकारिक आंकड़े हैं। इस परियोजना के शुरू करने के लिए बुनियादी क्लियरेंस है जैसे फॉरेस्ट, नर्मदा का पानी और पर्यावरण क्लियरेंस की मंजूरी मिल चुकी है। कारपोरेशन का कहना है कि 2015 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत जितनी राशि देनी थी कारपोरेशन को, उसे जिला कलेक्टर को दिया जा चुका है।

कारपोरेशन का कहना है कि इस परियोजना के लिए पहले चार गांवों को विस्थापित करना है, जिसमें चुटका  सबसे अहम है। यहां के 330 परिवार का विस्थापन होना है। विस्थापितों का कहना था कि हमें मंडला में घर चाहिए। ऐसे में उनके लिए 330 घरों की एक कॉलोनी बना दी गई है। यह पिछली जनवरी, 2021 से तैयार है। कारपोरेशन का कहना है कि हमने अपनी ओर से भी काम पूरा कर दिया है और अब राज्य सरकार को करना है।

कारपोरेशन के अधिकारी से जब पृछा गया कि क्या इस परियोजना के शुरू करने के लिए पीएमओ की तरह से एक पत्र राज्य सरकार को भेजा गया है? इस पर उनका कहना था कि देखिए यह परियोजना केंद्र और राज्य सरकार की है तो तो इस प्रकार की बातचीत के लिए तो पत्र व्यावहार होना एक सामान्य सी बात है। हालांकि आप इसके लिए राज्य सरकार के संबंधित विभाग से बातचीत कर सकते हैं। जहां तक राज्य सरकार के अधिकारी की बात है तो उन्हें फोन करने की कोशिश की गई लेकिन किसी प्रकार का उत्तर नहीं मिला

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