झूठे ‘ग्रीन’ वादे बेनकाब: अक्षय ऊर्जा में न के बराबर योगदान दे रही हैं जीवाश्म ईंधन कंपनियां

तेल, गैस और कोयला उद्योग अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल; विशेषज्ञों का कहना फॉसिल फ्यूल कंपनियां समाधान नहीं, समस्या का हिस्सा हैं
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सारांश
  • तेल और गैस कंपनियों के 'ग्रीन' दावे खोखले साबित हो रहे हैं।

  • एक अध्ययन के अनुसार, इन कंपनियों का अक्षय ऊर्जा में योगदान मात्र 1.42 फीसदी है।

  • ये कंपनियां खुद को ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव के अगुवा के रूप में पेश करती हैं, लेकिन वास्तव में उनका योगदान बेहद कम है।

  • इन कंपनियों के पास महज 3,166 ऐसे प्रोजेक्ट हैं जिनमें उनका किसी भी रूप में यानी प्रत्यक्ष, सहायक कंपनियों या अधिग्रहणों के जरिए अक्षय ऊर्जा में हिस्सा है।

  • जीरो कार्बन एनालिटिक्स के अनुसार, सबसे बड़ी 100 तेल और गैस कंपनियों में से महज एक चौथाई ने 2030 तक अपने उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य रखा है

जलवायु संकट से निपटने की बड़ी-बड़ी बातें करने वाली तेल और गैस कंपनियों के दावे झूठे साबित हो रहे हैं। स्पेन स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ एनवायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी, ऑटोनॉमस यूनिवर्सिटी ऑफ बार्सिलोना के एक ताजा अध्ययन से पता चला है कि दुनिया भर में अक्षय ऊर्जा (रिन्यूएबल एनर्जी) के जितने प्रोजेक्ट चल रहे हैं, उनमें जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) कंपनियों की हिस्सेदारी महज 1.42 फीसदी है।

इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुए हैं। इसमें कहा गया है कि तेल और गैस कंपनियों जो खुद को “ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव के अगुवा” के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही हैं, उनकी कहानी पूरी तरह भ्रामक है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर के आंकड़ों के आधार पर दुनिया की 250 सबसे बड़ी तेल और गैस कंपनियों का विश्लेषण किया है। यह कंपनियां वैश्विक हाइड्रोकार्बन उत्पादन का 88 फीसदी हिस्सा नियंत्रित करती हैं।

अध्ययन में पाया गया कि इन कंपनियों के पास महज 3,166 ऐसे प्रोजेक्ट हैं जिनमें उनका किसी भी रूप में यानी प्रत्यक्ष, सहायक कंपनियों या अधिग्रहणों के जरिए अक्षय ऊर्जा में हिस्सा है।

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अक्षय ऊर्जा में बेहद कम निवेश

हैरानी की बात यह है कि इन 250 कंपनियों में से महज 20 फीसदी कंपनियों के पास ही कोई सक्रिय अक्षय ऊर्जा परियोजना है। इतना ही नहीं इनके कुल ऊर्जा उत्पादन में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी मात्र 0.1 फीसदी है।

देखा जाए तो तेल और गैस बनाने वाली यह बड़ी कंपनियां अक्सर कहती हैं कि वे हवा को साफ रखने और प्रदूषण कम करने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन को रोकने में योगदान दे रही हैं। लेकिन सच ये है कि इनमें से बहुत कम ही कंपनियों ने अक्षय ऊर्जा जैसे पवन, सौर या पानी से बनने वाली ऊर्जा में निवेश किया है।

जीरो कार्बन एनालिटिक्स के अनुसार, सबसे बड़ी 100 तेल और गैस कंपनियों में से महज एक चौथाई ने 2030 तक अपने उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य रखा है और उन्होंने अपने काम में औसतन 43 फीसदी उत्सर्जन कम करने का वादा किया है।

इंस्टिट्यूट ऑफ एनवायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता मार्सेल लावेरो-पास्क्वीना का इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “तेल और गैस कंपनियों की अक्षय ऊर्जा में हिस्सेदारी बस दिखावे भर की है। जलवायु संकट के खिलाफ जंग में उनका असली योगदान इस बात से आंका जाना चाहिए कि वे कितना जीवाश्म ईंधन जमीन के अंदर बिना निकाले छोड़ते हैं।”

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यह अध्ययन उन संस्थाओं और संगठनों के लिए भी गंभीर सवाल खड़े करता है जो अभी भी मानते हैं कि तेल और गैस कंपनियां ऊर्जा बदलाव में मुख्य भूमिका निभा रही हैं।

मार्सेल लावेरो-पास्क्वीना का आगे कहना है, “कई दशकों तक केवल शब्दों में आश्वासन देने के बाद अब समय आ गया है कि सरकारें, विश्वविद्यालय और सार्वजनिक संस्थान यह समझें कि तेल और गैस उद्योग समाधान नहीं, बल्कि समस्या का हिस्सा है। ऐसे में जलवायु और ऊर्जा नीतियों के भविष्य तय करने वाली बैठकों में इन कंपनियों को जगह नहीं दी जानी चाहिए।”

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स्विट्जरलैंड की लॉजेन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर जूलिया स्टीनबर्गर ने भी कहा कि यह अध्ययन उसी सच्चाई को दोहराता है जिसे हम लंबे समय से जानते हैं कि “तेल, गैस और कोयला कंपनियां अपने ‘हरित नारों’ के बावजूद स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में पूरी तरह से कदम नहीं बढ़ा रही हैं।”

वहीं ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर में ग्लोबल सोलर पावर ट्रैकर की प्रोजेक्ट मैनेजर कैसांद्रा ओ’मेलिया का कहना है, “तेल और गैस कंपनियां अक्षय ऊर्जा में वैसा निवेश नहीं कर रहीं जैसा उन्होंने वादा किया था। उनके दावे सिर्फ 'ग्रीनवॉशिंग' हैं।”

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