वाटरलू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक नया और बेहतर तरीका ढूंढ निकला है जिसकी सहायता से सोलर पैनलों से अधिक ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है । 'आईईई ट्रांजेक्शन्स ऑन कंट्रोल सिस्टम टेक्नोलॉजी' जर्नल में प्रकाशित इस नए अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने एक नयी एल्गोरिथ्म विकसित करने का दावा किया है जो सोलर फोटोवोल्टिक (पीवी) प्रणाली की दक्षता को बढ़ाने में सक्षम है | इसके साथ ही यह एल्गोरिथ्म, सोलर पैनल पर प्रभावी नियंत्रण की कमी के कारण वर्तमान में बर्बाद हो रही ऊर्जा की मात्रा को कम कर देती है ।
कैसे काम करती है यह तकनीक
वाटरलू विश्वविद्यालय के व्यावहारिक गणित विभाग में पीएचडी के छात्र मिलाद फारसी ने बताया कि "हमने मौजूदा सोलर पैनल से अधिक मात्रा में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए एक एल्गोरिथ्म विकसित किया है । हर सोलर पैनल के हार्डवेयर में नाममात्र की दक्षता होती है, लेकिन उपयुक्त नियंत्रक की सहायता से सोलर पैनलों से अधिकतम ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। फारसी ने बताया कि "हम सोलर पैनल का हार्डवेयर नहीं बदलते हैं न ही इसके लिए सोलर पीवी सिस्टम में किसी अतिरिक्त सर्किट की आवश्यकता होती है । हमने सिर्फ पहले से मौजूद हार्डवेयर को नियंत्रित करने के लिए एक बेहतर दृष्टिकोण विकसित किया किया है ।"
यह एल्गोरिथ्म सोलर पीवी प्रणाली के अधिकतम पावर पॉइंट पर पहुंचने के कारण उसमे आने वाले उतार-चढ़ाव से बेहतर तरीके से निपटने में सक्षम बनाता है । जिससे इस तकनीक से पहले प्रयोग होने वाले पैनलों में एकत्र की जाने वाली संभावित ऊर्जा बर्बादी हो जाती थी।
फारसी के अनुसार "इसे हम इस तरह समझ सकते है, यदि एक सामान्य घर जो की 335 वाट के 12 मॉड्यूल वाले सोलर सिस्टम का प्रयोग करता है, तो वह इस तकनीक की सहायता से हर वर्ष 138.9 किलोवाट-घंटे प्रति वर्ष तक की बिजली बचा सकता है। हालांकि बिजली की यह बचत एक छोटे से घर में इस्तेमाल होने वाली सौर प्रणाली में बड़ी न लग रही हो, लेकिन बड़े पैमाने पर स्थापित सोलर सिस्टम और पावर ग्रिड से जुड़े हजारों सोलर पैनलों में यह एक भारी अंतर ला सकती है । उदाहरण के लिए, कनाडा के सबसे बड़े सरनिया फोटोवोल्टिक पावर प्लांट पर यदि इस तकनीक का उपयोग किया जाता है, तो यह बचत 960,000 किलोवाट-घंटे प्रति वर्ष तक हो सकती है, जो की सैकड़ों घरों को बिजली देने के लिए पर्याप्त है। यदि अगर इस बची हुई ऊर्जा को थर्मल पावर प्लांट द्वारा उत्पन्न किया जाता, तो इसके द्वारा वातावरण में 312 टन सीओ 2 का उत्सर्जन होता । ”
इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में होने वाली वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना हमारी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग दो-तिहाई, ऊर्जा संबंधित स्रोतों से होता है । गौरतलब है कि सौर ऊर्जा, ऊर्जा का एक साफ सुथरा विकल्प है । इसकी बढ़ती दक्षता ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए एक बड़ा वरदान साबित हो सकती है ।