आज भी देश में बिहार और मेघालय जैसे राज्यों में 60 फीसदी से ज्यादा घरों में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन का उपयोग नहीं होता।यह जानकारी हाल ही में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-20 (एनएफएचएस -5) में सामने आई है।देश में प्रदूषण का स्तर दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, ऐसे में यदि घरों में लकड़ी, कोयला या गोबर को ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है, तो वो घरों के अंदर और बाहर दोनों जगह प्रदूषण में इजाफा करता है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होता है।यदि आंकड़ों पर गौर करें तो मेघालय के केवल 33.7 फीसदी घरों में साफ़ ईंधन का उपयोग किया जा रहा है।यही स्थिति बिहार की भी है जहां सिर्फ 37.8 फीसदी घरों में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन का उपयोग किया जा रहा है|
हालांकि "स्वच्छ ईंधन, बेहतर जीवन" के नारे के साथ केंद्र सरकार नें 1 मई 2016 को उज्ज्वला योजना शुरू की थी।सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक इस योजना के तहत गरीब तबके को रियायती दर पर करीब 8 करोड़ एलपीजी कनेक्शन दिए जा चुके हैं।जिसके बाद स्थिति में थोड़ा सुधार जरूर आया है।देश में सिर्फ गोवा (96.5) और तेलंगाना (91.8) की 90 फीसदी से ज्यादा आबादी स्वच्छ ईंधन का उपयोग कर रही है|
यदि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना करें तो ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति अब भी बदतर है।जहां पश्चिम बंगाल की केवल 20.5 फीसदी आबादी स्वच्छ ईंधन का उपयोग कर रही है।वहीं मेघालय (21.7), बिहार (30.3), नागालैंड (24.9), त्रिपुरा (32.6), असम (33.7), लक्षद्वीप (24.7), हिमाचल प्रदेश (44.5) और गुजरात (46.1) की स्थिति भी कोई ख़ास अच्छी नहीं है|
सर्वेक्षण के अनुसार देश के जिन 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सर्वे किया गया है, उन सभी में स्वच्छ ईंधन की स्थिति में सुधार देखा गया है, हालांकि यह सुधार अभी भी उतना नहीं है जिसपर देश गर्व कर सके, इस दिशा में अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है|
गौरतलब है कि इस सर्वेक्षण में स्वास्थ्य से जुड़े करीब 131 मुद्दों को शामिल किया गया है और उनसे जुड़े आंकड़ों को साझा किया गया है।हालांकि इस सर्वेक्षण में उत्तरप्रदेश, पंजाब, झारखण्ड, अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली जैसे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से सम्बंधित आंकड़ें जारी नहीं किए गए हैं|