चुटका परियोजना-2: ग्राम सभा की इजाजत तक नहीं ली गई

चुटका परमाणु परियोजना के लिए नियम-कायदों का भी ध्यान नहीं रखा गया, जिस कारण ग्रामीणों में भय व आक्रोश अधिक है
चुटका के इस इलाके से भूमि परीक्षण की कोशिश की गई, लेकिन ग्रामीणों ने उसका विरोध किया। फोटो: अनिल अश्वनी शर्मा
चुटका के इस इलाके से भूमि परीक्षण की कोशिश की गई, लेकिन ग्रामीणों ने उसका विरोध किया। फोटो: अनिल अश्वनी शर्मा
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चालीस साल पहले मध्य प्रदेश के चुटका सहित 54 गांव बरगी बांध के कारण विस्थापित हुए थे। अब इन गांवों पर चुटका परमाणु विद्युत परियोजना से विस्थापित होने की तलवार लटक रही है। आखिर कितनी बार कोई आदिवासी अपने घर-द्वार-जल-जंगल और जमीन छोड़ेगा? अनिल अश्विनी शर्मा ने चुटका सहित कुल 11 गांवों में जाकर आदिवासियोें के उजड़ने और फिर बसने की पीड़ा जानने की कोशिश की। उनके चेहरों पर उजड़ने का डर नहीं अब गुस्सा है। यह गुस्सा चिंगारी बनकर कभी भी भड़क सकता है। पढ़ें, इस रिपोर्ट की पहली कड़ी में आपने पढ़ा, 54 गांवों में क्यों पसरा है आतंक का साया? । पढ़ें, दूसरी कड़ी- 

सरकार ग्राम सभा की अहमियत को समझ नहीं रही है कि यह कितनी महत्वपूर्ण होती है। इस संबंध में बरगी गांव के शारदा यादव ने बताया कि राज्य सरकार को यह समझने की जरुरत है कि वह ग्रामसभा की इजाजत के बिना संयंत्र लगाने की कार्रवाई को आगे नहीं बढ़ा सकती। पंचायती राज अनुसूचित क्षेत्र विस्तार अधिनियम (पेसा) और आदिवासी व अन्य वनवासी भूमि अधिकार अधिनियम, वनाधिकार कानून को आधार बनाकर ही सर्वोच्च न्यायालय ने ओडिसा की नियमगिरी पहाड़ियों से बाक्साइट के खनन पर रोक लगाई थी। ओडिसा सरकार ने नियमों की अनदेखी करते हुए वेदांता समूह को बॉक्साइट उत्खनन की मंजूरी दे दी थी। इस परमाणु संयंत्र के परिपेक्ष्य में मध्य प्रदेश सरकार को इस फैसले के मद्देनजर ही भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई को आगे बढ़ाने की जरूरत है, अन्यथा उसे मुंह की खानी पड़ सकती है।

जनसुनवाइयों के खिलाफ ग्रामीणों को एकजुट करने वाले टाटीघाट गांव के नवरतन दुबे ने डाउन टू अर्थ को बताया कि पहली दो जनसुनवाई (क्रमश: 24 मई व 31 जुलाई, 2013) कराने में सरकार असफल रही। उन्होेंने बताया कि 17 फरवरी 2014 को जिस अलोकतांत्रिक ढंग से सरकार के नुमांइदों ने तीसरी जनसुनवाई को अंजाम दिया, उससे लगा कि सरकार हमारा दमन करके जन-सुनवाई की खानापूर्ति कर लेना चाहती है। दरअसल तब प्रशासन ने पुलिस के मार्फत लगभग 10 घंटे तक एनएच-12 का रास्ता रोके रखकर ज्यादातर आदिवासियों को सुनवाई स्थल तक पहुंचने ही नहीं दिया।

इसके पहले भी 31 जुलाई 2013 को जन सुनवाई के दिन आला-अधिकारियों ने चालाकी बरतते हुए जगह बदल दी थी, जिससे लाचार व गरीब आदिवासी सुनवाई स्थल तक पहुंचने ही न पाएं। तब हालांकि 165 ग्रामों के प्रमुख लोगों के विरोध के कारण सरकार को कार्रवाई स्थगित करनी पड़ी थी। नवरतन दुबे इस प्रकार की सरकारी कार्रवाई के खिलाफ चेताते हुए कहते हैं कि यदि प्रशासन इसी तरह चालाकी बरतकर कार्रवाई को आगे बढ़ाएगा तो इस क्षेत्र के कई गांवों के हालात विस्फोटक हो जाएंगे। इन गांवों को पश्चिम बंगाल के सिंगूर व नंदीग्राम बनते देर नहीं लगेगी।

मध्य प्रदेश राज्य की आदर्श पुनर्वास नीति 2002 में यह प्रावधान है कि कोई भी ग्रामवासी दूसरी बार विस्थापित नहीं होगा। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जब नर्मदा परिक्रमा कर रहे थे तब उन्होंने 22 फरवरी, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर यह मांग की थी कि चुटका परमाणु परियोजना रद्द की जाए अन्यथा इससे नर्मदा नदी की जैव विविधता नष्ट हो जाएगी।

देश में स्थापित कई अन्य परमाणु बिजली घरों का दौरा करने वाले कुंडापे सरकार की मंशा पर ही सवाल उठाते हैं कि सरकार देश के अन्य परमाणु बिजली घरों के आसपास बसे गांवों का अब तक तो सही पुनर्वास कर नहीं पाई है। और हमें कह रही है कि वह सर्वश्रेष्ठ पुनर्वास पैकेज देगी।

ध्यान रहे कि 2012 में चुटका सहित सभी विस्थािपत होने वाले ग्रामीणों के लिए एनपीसीआईएल ने गौंझी गांव (मंडला) में कॉलोनी का एक नक्शा टांग दिया। इसका विरोध सभी ग्रामीणों ने किया। इस विरोध में ग्रामीणों को साथ देने के लिए नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर भी आईं। उस समय की कलेक्टर सूफिया फारुकी ने ग्रामीणों की बातें सुनी। ग्रामीणों ने बताया कि नक्शे में एक परिवार को एक छोटा कमरा दिया जाएगा। बताइए इस कमरे में मां-बाप, बच्चे और मवेशी कहां रहेंगे। इसके बाद आए एक अन्य कलेक्टर लोकेश जाटव। उनके आते ही भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई में तेजी आई।

प्रशासन द्वारा 7 मार्च, 2015 में एक संशोधित अवाॅर्ड पारित किया गया, जिसमें बताया गया कि भूमि-अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो रही है। इसमें लिखा हुआ था कि लोगों की आपत्तियों पर गौर करते हुए कमिश्नर के आदेशानुसार भूअर्जन की प्रक्रिया शुरू होती है। भू-अर्जन में प्रति हेक्टेयर 3 लाख 83 हजार 752 रुपए देना तय हुआ। ग्रामीणों ने विरोध किया कि वे अपनी जमीन नहीं देना चाहते हैं। साथ ही चार बैंकों में जाकर ग्रामीणोें बैंक प्रबंधन से कहा कि बैंक नियमावली के तहत हमारे बैंक अकाउंट को गोपनीय रखा जाए और भू-अर्जन की राशि जमा न की जाए, अन्यथा वे विरोध और कार्रवाई करेंगे। इसी बीच उज्ज्वला योजना के तहत कुछ सरकारी लोग सर्वे करने गांव आए और कुछ महिलाओं से अकाउंट नंबर ले लिया। फिर कलेक्टर ने इस योजना के माध्यम से लोगों के अकाउंट नंबर मिलते ही चार गांव मानेगांव, कुंडा, चुटका और टाटीघाट के एक मोहल्ले के 450 परिवारों के खातों में 41 करोड़ 60 लाख रुपए की भू-अर्जन राशि डाल दी गई। इसमें मकान, खेत और पेड़ का मुआवजा भी शामिल था।

ग्रामीणों काे इसका पता तब चला जब रोजगार गारंटी के रुपए निकालने बैंक गए। ग्रामीणों ने देखा कि कइयों के अकाउंट में 30 लाख रुपए हैं, लोग अकबका गए। कुछ लोग कह रहे थे कि यह 15 लाख रुपए सरकार ने चुनाव के समय देने का जो वायदा किया था, वही है। फिर 18 साल के युवकों के अकाउंट में करीब 6 लाख रुपए डाले गए। बुजुर्गों ने विरोध जारी रखते हुए रुपए नहीं निकाले, लेकिन युवाओं ने तुरंत पैसा निकाल कर मोटरसाइकिल आदि खरीद लिया। दादू लाल के अकाउंट में करीब एक करोड़ रुपए आए थे, लेकिन उन्होंने एक रुपया नहीं निकाला है अब तक। इस संबंध में डाउन टू अर्थ ने एनपीसीआईएल के अधिकारी केसी शर्मा, एडीसी एके नेमा को ई-मेल किया गया था लेकिन अब तक उत्तर नहीं आया है। हालांकि स्थानीय मंडला जिले के परियोजना अधिकारी बी.जयसवाल ने बताया कि अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है। लेकिन उन्होंने बताया कि अब तक संयंत्र साइट पर निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है।

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