बीकानेर की बंजर जमीन पर प्रस्तावित 810 मेगावाट सौर प्लांट से बिजली खरीदेगी केंद्रीय पीएसयू

राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरवीयूएनएल) के साथ विद्युत खरीद समझौता किया गया। इससे दावा है कि 15 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कम होगा
पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले नए सौर पदार्थ "पेरोवस्काइट" से निर्मित पतली फिल्म सौर सेल में मौजूदा सिलिकॉन सौर सेल की तुलना में किफायती और अधिक सौर ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता है।
पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले नए सौर पदार्थ "पेरोवस्काइट" से निर्मित पतली फिल्म सौर सेल में मौजूदा सिलिकॉन सौर सेल की तुलना में किफायती और अधिक सौर ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता है।
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राजस्थान के बीकानेर जिले में पुगल क्षेत्र में एक बंजर भूमि में प्रस्तावित 810 मेगावाट सौर ऊर्जा परियोजना के लिए एनएलसी इंडिया लिमिटेड (एनएलसीआईएल) की 100 प्रतिशत स्वामित्व वाली अक्षय ऊर्जा शाखा एलएलसी इंडिया रीन्यूबल्स लिमिटेड (एनआईआरएल) ने राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरवीयूएनएल) के साथ विद्युत खरीद समझौता (पीपीए) किया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह समझौता राजस्थान के जयपुर में 06 मई, 2025 को एक औपचारिक समारोह में हुआ। एनएलसी इंडिया लिमिटेड एक सरकारी कंपनी (सीपीएसयू) है, जिसने 1 गीगावाट अक्षय ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित की हैं और आगामी लक्ष्य 2030 तक 10 गीगावाट का तय किया है।

कंपनी ने अपने एक बयान में कहा कि परियोजना के प्रस्तावित स्थल पर प्रचुर मात्रा में सौर विकिरण उपलब्ध है। यह परियोजना हर साल लगभग 2 अरब यूनिट हरित ऊर्जा का उत्पादन करेगी और करीब 15 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को हर वर्ष कम करेगी। अगर तुलना करें तो महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अध्ययन के मुताबिक एक परिपक्व पेड़ सालाना औसतन 22 किलो कॉर्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित करता है। इस हिसाब से यह परियोजना हर साल लगभग 6.8 करोड़ पेड़ों के बराबर कार्बन डाईऑक्साइड को संतुलित करने की क्षमता रखेगी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह परियोजना नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) की अल्ट्रा मेगा रिन्यूएबल एनर्जी पावर पार्क (यूएमआरईपीपी) योजना के 'मोड 8' के तहत विकसित की जा रही है। मोड 8 का अर्थ है कि राज्य की उत्पादन कंपनी (जैसे आरवीयूएनएल ) पार्क डेवलपर की भूमिका निभाएगी, जिसे जमीन, बुनियादी ढांचे और ग्रिड कनेक्टिविटी जैसी व्यवस्थाएं करनी होंगी। इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र की कोई कंपनी यहां परियोजना स्थापित करेगी और उत्पादित बिजली तय दर पर राज्य सरकार को उपलब्ध कराएगी।

यह मॉडल अक्षय ऊर्जा के बड़े पैमाने पर विस्तार की दिशा में प्रभावी माना जा रहा है। भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है।

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