लॉकडाउन ग्रामीण अर्थव्यवस्था: निर्यात बंद होने से गुजरात के किसानों की रीढ़ टूटी

निर्यात बंद होने के कारण गुजरात के कई गांवों के किसानों की चिंता बढ़ा दी है
फोटो: कलीम सिद्दिकी
फोटो: कलीम सिद्दिकी
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अहमदाबाद से कलीम सिद्दकी

गुजरात में किसान मुख्यत: व्यापारिक फसलें ही उगाता है और उसका निर्यात करता है। गुजरात में मुख्यत: कपास, मूंगफली, तंबाकू, रेंड़ी, जीरा आदि की खेती होती है। रेंड़ी के उत्पादन में भारत विश्व में न. 1 है। विश्व के कुल रेंड़ी उत्पाद का 36 प्रतिशत भारत में होता है। लेकिन वैश्विक लॉकडाउन के कारण गुजरात तथा अन्य एक्सपोटर्रों के पास आर्डर नहीं है। चीन से थोड़ा बहुत आर्डर है, लेकिन उसे पूरा करने के लिए न तो शिपमेंट है न ही भारत की मंडियां खुली हैं। डाउन टू अर्थ ने उत्तर गुजरात और सौराष्ट के कुछ गांवों में जाने की कोशिश की है।    

2,17,287 रुपए करोड़ रुपए बजट वाले गुजरात में मुख्यत: कपास, मूंगफली, तंबाकू, रेंड़ी या कैस्टर ऑल, जीरा, गेहूं इत्यादि की खेती होती है। राज्य की अर्थ व्यवस्था में खेती की 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। जबकि उद्योग का 44 प्रतिशत और सर्विस सेक्टर का 36 प्रतिशत हिस्सा है। लॉकडाउन के चलते ग्रामीण अर्थ व्यवस्था बिगड़ने लगी है। इसका असर उद्योग और सर्विस सेक्टर पर शुरू हो गया है। क्योंकि गुजरात के किसान चीन, यूरोप और अमेरिका जैसे देशों को रेंडी का तेल की आपूर्ति करते हैं। भारत रेड़ी उत्पाद का चीन को 45 प्रतिशत और यूरोप को 35 प्रतिशत कैस्टर आॅयल निर्यात करता है। ये देश भारत से कैस्टर ऑयल लेते हैं जो दवाओं, उद्योग में उपयोग किए जाते हैं।
         
गुजरात की राजधानी गांधीनगर से 98 किलोमीटर दसाड़ा तहसील में वानोद गाव है जो सुरेंद्र नगर जिले में आता है। वानोद गांव की जनसंख्या लगभग साढ़े पांच हज़ार और बारह सौ मकान हैं। लॉकडाउन के पूर्व यह गांव एक संपन्न गांव माना जाता था लेकिन अब यहां हालात विपरीत हो चले हैं। वानोद गांव के  अब्दुल्लाह खोखर जैसे संपन्न किसान भी अब सिर पर हाथ रखकर यह सोचने पर मजबूर हैं कि तैयार फसल का क्या करें और उसे केसे सुरक्षित रखें। उनके पास लगभग 100 बीघा खेती की ज़मीन हैं। खोखर एक नहीं कई फसल की बोआई करते हैं। उनका मानना है अलग-अलग फसलें बोने से खेती में हानि की संभावना कम रहती है।

उन्होंने 10 बीघे में रेडी, 20 बीघे में कपास, 30 बीघे में अजमा (अजवाइन) के अलावा ज्वार, बाजरी, अरहर, सौंफ इत्यादि की खेती की है। खोखर ने डाउन टू अर्थ को बताया, " पिछले वर्ष उन्होंने केवल 5 बीघे में अजवाइन की खेती की थी। लेकिन नफा का अनुपात अजवाइन का ही अच्छा था। जिस कारण इस वर्ष 30 बीघे में अजमा की बोवाई की। पिछले वर्ष 5 बीघे में 60 मन की उपज हुई थी। अजवाइन की खेती में पांच बार पानी और तीन बार जोताई की जाती है। बोआई का खर्च 1000 प्रति मन आता है। कटाई के बाद सफाई मशीन से की जाती है। मशीन 1000 रुपये प्रति घंटा किराये से मिलती है। कुल खर्च 1800-2000 रुपये प्रति मन आता है।

अजवाइन की खेती को न तो रोग लगता है न ही कीटाणुओं द्वारा फसल नष्ट होने की संभावना होती है। बाज़ार में 2900-3000 रुपये प्रति मन बिकता है।" लेकिन अब लॉकडाउन के कारण यह भाव नहीं मिल रहा है। खोखर ने कपास की खेती पर कोई उत्साह न दिखाते हुए कहते हैं " इस वर्ष बारिश देरी से हुई जिस वजह से कपास की बोआई एक महिना देरी से हुई। कटाई में अभी 15 दिन हैं। कपास की खेती में मौसम की बड़ी भूमिका होती है। बोआई बारिश में होती है। ठंडक में फल आते हैं। फल के समय बादल वाला मौसम हो तो फल गिर जाते हैं। इस वर्ष ऐसा ही हुआ। लॉकडाउन के चलते कपास का भाव भी गिर गया है। जिस कारण कपास में नुक्सान होना तय है। हालांकि अन्य फसलें जिस पर सरकार द्वारा न्यूनतम मूल्य तय है। उस फसल में नुक्सान नही होगा। रेड़ी की खेती ठीक हुई है, परंतु जनवरी से लगातार भाव गिर रहा है। अब तो मंडी भी बंद है। रेड़ी घर पर ही पड़ी है।"

ध्यान रहे कि रेड़ी के उत्पादन में भारत विश्व में नंबर वन है। विश्व के कुल रेड़ी उत्पाद का 36 प्रतिशत भारत में होता है। भारत में रेड़ी की सबसे अधिक खेती और उत्पादन गुजरात में ही होता है। वर्ष 2019-20 में सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में 7,41,000 हेक्टेयर में रेड़ी की खेती हुई है। भारत रेड़ी और उसके तेल का सबसे अधिक निर्यात चीन को करता है। परंतु कोरोना की वैश्विक महामारी के चलते जनवरी में ही 10 प्रतिशत डिमांड में कमी आ गई थी।

कुछ हद तक चीन अपने देश में इस महामारी से निपटने में सक्षम रहा है। भारत और विश्व के सभी बड़े देश इस महामारी के चलते लॉक डाउन हैं। इसी कारण से रेड़ी की डिमांड लगातार गिर रही है। भारत रेड़ी को चीन और यूरोप में निर्यात करता है। कारोबार, आयात, निर्यात सब कुछ बंद है। पिछले वर्ष गुजरात के किसानों ने रेड़ी के अच्छे भाव में हुई बिक्री के कारण आशा से बोआई की थी खेती ठीकठाक हुई। परंतु कोरोना और लॉकडाउन के चलते इनकी फसलें कट कर घरों में पड़ी हैं। खोखर जैसे कई किसानों की हालात दिन प्रतिदिन अब डगमगाती जा रही है। इसी गांव के ही चंदू भाई पटेल 80 बीघे खेत के मालिक हैं।

यह अपने को चतुर किसान कहते हैं। क्योंकि ये फसलों का पोटर्फोलियो तैयार कर खेती करते हैं। ताकि एक फसल में नुक्सान हो जाए तो दूसरे से उसकी पूर्ति हो जाए। लेकिन इस बार उनकी यह तरकीब काम न आई। इन्होंने रेड़ी, अजवाइन और कपास को बीस-बीस बीघे में बोया था।   जुलाई-अगस्त में बोआई की थी, देरी से बारिश के कारण लगभग सभी किसानों ने एक महिना देरी से बोआई की और कटाई भी देरी से हो रही है। अधिक बारिश के कारण 20 बीघा रेड़ी की खेती खराब हुई तो उसे छोड़कर अन्य 20 बीघे में रेड़ी की दोबारा बोआई करनी पड़ी।

पिछले वर्ष रेड़ी का भाव 1100 रुपये प्रति मन था। इस वर्ष भाव 750 पर आ गया। रेंड़ी की खेती में 700 रुपये प्रति मन का खर्च आ जाता है। रेड़ी जिसकी पहली बोआई खराब हो गई थी फिर भी मैंने दोबारा 20 बीघे में और बोआई की क्योंकि पिछले वर्ष मांग भी थी और भाव भी मिला था। परंतु लॉकडाउन ने खेल ही खराब कर दिया। कटाई कर के फसल घर पर है। लॉकडाउन खुलने का इंतजार है। चंदू भाई आगे बताते हैं कि अजवाइन की खेती अच्छी रही जबकि कपास की खेती उम्मीद के अनुसार नहीं हुई।

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