आगामी बजट 2023-24 को ध्यान में रखकर भारत सहित दुनिया भर के विश्वविद्यालयों के 51 प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीमारमण से सामाजिक सुरक्षा पेंशन और मातृत्व लाभ योजना के तहत दी जाने वाली धनराशि को बढ़ाने का अनुरोध किया है।
उनका कहना है कि वर्तमान में दी जाने वाली धनराशि अनुचित है। सभी अर्थशास्त्रियों ने एक संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा कि हमने यह अनुरोध पूर्ववर्ती वित्तमंत्री स्वर्गीय अरुण जेटली को भी 2018 में किया था।
ध्यान रहे कि यह अनुरोध कोई पहली बार इन अर्थशास्त्रियों ने नहीं किया है, बल्कि यह तीसरी बार वित्त मंत्री को पत्र लिखा गया है। अर्थशास्त्रियों ने कहा कि चूंकि हमारे पूर्व के दोनों अनुरोध को नजरअंदाज कर दिया गया था, इसलिए हम उन्हीं सिफारिशों के साथ आगामी बजट पेश होने के काफी पहले ही एक बार फिर से आपको यह पत्र लिख रहे हैं।
पत्र में अर्थशास्त्रियों का कहना है कि हमने आगामी केंद्रीय बजट के लिए दो प्रमुख प्राथमिकताओं को चिन्हित करने की कोशिश की है। इसमें पहली है सामाजिक सुरक्षा पेंशन और दूसरी है मातृत्व लाभ के तहत मिलने वाली धनराशि में वृद्धि।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सामाजिक सुरक्षा पेंशन के तहत दी जानी वाली राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन (एनओएपीएस) के अंतर्गत 2006 से केंद्र सरकार का योगदान केवल 200 रुपए प्रतिमाह पर रुका हुआ है। मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह बहुत ही अनुचित है। लेकिन यह भी सौ फीसदी सच है कि यह बहुत ही अच्छी और असरकारक योजना है।
क्योंकि इसमें कम प्रशासनिक क्षमता की जरूरत होती है और दी जाने वाली राशि भी कोई बहुत बड़ी नहीं होती है।
इस योजना की सबसे अच्छी बात यह है कि यह समाज के सबसे आखिरी पायदान पर खड़े या कहें कि समाज के सबसे अधिक गरीब व्यक्ति तक पहुंचती है। आज के हालात देखते हुए कायदे से केंद्र सरकार को इस धनराशि को तुरंत बढ़ाकर 500 रुपए कर देना चाहिए।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इसके लिए मौजूदा एनओएपीएस में 7,560 करोड़ रुपए अतिरिक्त आवंटन की आवश्यकता होगी। देश में वर्तमान में कुल 2.1 करोड़ पेंशनधारी हैं।
अर्थशास्त्रियों का वित्त मंत्री से यह भी अनुरोध है कि विधवा पेंशन (300 रुपए) को भी बढ़ाकर 500 रुपए किया जाना चाहिए। इसके बढ़ाए जाने पर केवल 1,560 करोड़ रुपए का ही खर्च आएगा।
इस संबंध में जब डाउन टू अर्थ ने दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान ( आईआईटी ) में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर रितिका खेड़ा से पूछा तो उनका कहना था कि इसके लिए कायदे से यह देखना जरूरी होगा कि 2006 से अब तक के बीच सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर लागू डीए दरों में कितनी बढ़ोतरी हुई है। क्या सबसे गरीब और सबसे कमजोर लोगों की पेंशन पर समान महंगाई भत्ते की दरें लागू नहीं की जानी चाहिए?
उन्होंने बताया कि जब हम अपने शोध के लिए कई स्थानों पर गए तो एक पेंशनभोगी ने हमसे पूछा कि क्या केवल सरकारी कर्मचारी ही महंगाई का सामना कर रहे हैं? उस पेंशनभोगी ने आगे कहा कि फिर वे डीए के मानदंडों के अनुसार अपने पारिश्रमिक के समायोजन के हकदार क्यों हैं, लेकिन हम नहीं?
अर्थशास्त्रियों के समूह ने दूसरा मुद्दा मातृत्व लाभ का उठाया है। समूह का कहना है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत प्रति बच्चे 6,000 रुपए का मातृत्व लाभ सभी भारतीय महिलाओं (औपचारिक क्षेत्र में पहले से ही कवर किए गए लोगों को छोड़कर) मिलना उनका कानूनी अधिकार है। कई सालों तक केंद्र सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है।
2017 में इस उद्देश्य के लिए प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमवीवीवाई) शुरू की गई, हालांकि केंद्रीय बजट में इसके लिए किया गया प्रावधान कभी भी 2,500 करोड़ रुपए से अधिक नहीं था। यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के मानदंडों के आधार पर आवश्यक मानक से एक तिहाई से भी कम है।
इसके अलावा, अधिनियम का घोर उल्लंघन करते हुए पीएमएमवीवाई प्रति महिला केवल एक बच्चे के लिए लाभ देता है और वह लाभ 5,000 रुपए तक सीमित होता है।
समूहों का कहना है कि कायदे से आगामी 2023-24 बजट में एनएफएसए मानदंडो के अनुसार मातृत्व लाभ के पूर्ण कार्यान्वयन का प्रावधान किया जाना चाहिए। इसके लिए कम से कम 8,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता है।
साथ ही समूह का कहना है कि प्रति महिला एक बच्चे को मातृत्व लाभ देने की अवैध पाबंदी हटाई जानी चाहिए। इसके अलावा समूह का कहना था कि भुगतान प्रणालियों को भी दुरुस्त किए जाने की जरूरत है ताकि पेंशन हर माह और समय पर प्राप्तकर्ताओं मिल सके। इसका अर्थ माह की सात तारीख को हर हाल में पेंशनभोगी को पेंशन मिल जानी चाहिए। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में 28 नवंबर 2001 में कही है।
मातृत्व लाभ के संबंध में रितिका खेड़ा कहती हैं कि एनएफएसए के तहत मातृत्व अधिकारों के तहत दी जानी वाली धनराशि को घटाकर 5,000 रुपए करना अवैध है। सरकार का इस पर कहना है कि इसके अतिरिक्त के लिए हमने जननी सुरक्षा योजना बनाई है लेकिन यह वही बात नहीं है।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस योजना के लिए आवंटन बढ़ाने की आवश्यकता है। वित्त्त मंत्री को भारत सहित दुनियाभर के जिन 51 अर्थशास्त्रियों ने पत्र लिखा है, उनमें प्रमुख हैं, ज्यां द्रेज, अभिजित सिंह, अश्विनी देशपांडे, अतुल शर्मा, भारत रामास्वामी आदि शामिल है।