वैश्विक मंदी के बावजूद भारत में आर्थिक वृद्धि का अनुमान, चीन में गिरेगी अर्थव्यवस्था

रिपोर्ट में दक्षिण एशिया में आर्थिक वृद्धि 2024 में 5.2 प्रतिशत की दर से मजबूत रहने का अनुमान लगाया गया
संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड इकोनॉमी रिपोर्ट में 2024 में भारत की आर्थिक वृद्धि की संभावना जताई गई है। फोटो: विकास चौधरी
संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड इकोनॉमी रिपोर्ट में 2024 में भारत की आर्थिक वृद्धि की संभावना जताई गई है। फोटो: विकास चौधरी
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संयुक्त राष्ट्र की विश्व आर्थिक रिपोर्ट 2024 में वैश्विक मंदी के बावजूद दक्षिण एशिया में आर्थिक वृद्धि् की संभावना जताई गई है। खासकर भारत में 2023 के मुकाबले 2024 में और सुधार का अनुमान लगाया गया है। वहीं पूर्व एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में कुछ मंदी की आशंका जताई गई है। 

दक्षिण एशिया में वृद्धि की सम्भावना

रिपोर्ट में दक्षिण एशिया में आर्थिक वृद्धि 2024 में 5.2 प्रतिशत की दर से मजबूत रहने का अनुमान लगाया गया है, हालांकि यह 2023 की 5.3 की अनुमानित दर से कुछ कम है। इसका श्रेय भारत में जबर्दस्त विस्तार को दिया गया है, जो विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। भारत की वृद्धि दर 2024 में 6.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो 2023 में 6.3 प्रतिशत रही। इसका कारण जबरदस्त घरेलू मांग और मैन्यूफेक्चरिंग एवं सेवा क्षेत्रों में उछाल है।  

रिपोर्ट में कहा गया है कि निकट भविष्य में दक्षिण एशिया में आर्थिक वृद्धि पर वित्तीय शर्तों में कसावट और राजकोषीय एवं बाहरी असन्तुलन का बोझ तो रहेगा। इसके अलावा यूक्रेन युद्ध एवं पश्चिम एशिया में लड़ाई सहित भूराजनीतिक तनाव, क्षेत्र के कुल तेल आयातक देशों के सामने तेल के दामों में अचानक उछाल की चुनौती पेश कर सकते हैं।

पूर्वी एशियाई देशों मेंं मंदी  

रिपोर्ट में पूर्वी एशियाई देशों का सकल घरेलू उत्पाद 2023 के 4.9 प्रतिशत की तुलना में घटकर 2024 में 4.6 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। 

रिपोर्ट में पूर्व एशिया के अधिकांश देशों में मुद्रास्फीति के दबाव में कमी और श्रम बाजार की स्थिति में लगातार सुधार के दम पर निजी खपत में बढ़ोतरी मज़बूत रहने का अनुमान लगाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक सेवाओं, विशेषकर पर्यटन निर्यात में जबर्दस्त रिकवरी हो रही है, लेकिन वैश्विक मांग मंद होने के कारण वस्तुओं का निर्यात कम होगा, जबकि क्षेत्र की अनेक अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि मुख्य रूप से उससे संचालित होती है।

चीन की आर्थिक रिकवरी मुश्किल में है। उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 2023 में लगभग 5.3 प्रतिशत हो गयी,  किन्तु सम्पत्ति क्षेत्र में कमजोरी, विदेशी मांग में कमी और व्यापार सम्बन्धों में तनाव के कारण 2024 में यह दर 4.7 प्रतिशत रह जाने की आशंका है। चीनी सरकार ने वृद्धि में स्थिरता और बढ़ोतरी के लिए नीतिगत समर्थन बढ़ाया है। नीतिगत दरों और गिरवी दरों में कमी की है और नये बंधपत्रों के माध्यम से निजी क्षेत्र निवेश में बढ़ोतरी की है।

पूर्व एवं दक्षिण एशिया में मुद्रास्फीति में कमी की सम्भावना

2024 में पूर्व एशिया में मुद्रास्फीति 2023 की 1.2 प्रतिशत की तुलना में 2024 में 1.9 प्रतिशत होने की आशंका है। दक्षिण एशिया में 2023 की 13.4 प्रतिशत की अनुमानित दर की तुलना में 2024 में मुद्रास्फीति घटकर 9.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इसका कारण घरेलू मांग में कमी, अंतरराष्ट्रीय जिन्स मूल्यों में स्थिरता एवं स्थानीय मुद्रा अवमूल्यन में कमी हो सकता है। किन्तु जिन्सों के मूल्यों में वृद्धि और मौसम की विकट घटनाओं के दुष्प्रभाव, मुद्रास्फीति में गिरावट की गति मन्द कर क्षेत्र में खाद्य असुरक्षा का जोखिम बढ़ा सकते हैं। 

बढ़ती चुनौतियां

रिपोर्ट कहती है कि  इन अनुमानों में गिरावट के रुख की आशंका बहुत अधिक है। बड़े विकसित देशों में लम्बे समय तक ऊंची ब्याज दरों की आशंका से विश्व में वित्तीय शर्तों में कसावट, उधारी लागत बढ़ा सकती है जिससे विशेषकर, दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में कर्ज तनाव एवं भुगतान सन्तुलन संकटों में वृद्धि की आशंका है। बार-बार भीषण जलवायु आपदाओं के आने से आर्थिक क्षति बहुत बढ़ सकती है जिसकी बेहिसाब मार सबसे लाचार जनसंख्या पर पड़ेगी।

दीर्घकालिक स्थायित्व बढ़ाने वाली मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियां

मुद्रास्फीति के दबाव में कमी के दौरान पूर्व एवं दक्षिण एशिया में अधिकतर केन्द्रीय बैंकों ने 2023 में ब्याज दरों बढ़ाने की गति मंद कर दी या उनमें विराम दिया, जबकि कुछ ने वृद्धि को सहारा देने की कोशिश में दरें घटा दीं। किन्तु मौद्रिक अधिकारी सतर्क रहने वाले हैं क्योंकि खाद्य पदार्थों एवं ईंधन के दाम बढ़ने की आशंका में मुद्रास्फीति को लेकर अनिश्चितता रहेगी। 2024 में केन्द्रीय बैंक मुद्रास्फीति क़ाबू में रखने, वृद्धि को फिर पटरी पर लाने और वित्तीय स्थिरता की कोशिश में  नाज़ुक सन्तुलन करते रहेंगे।

पूर्व एवं दक्षिण एशिया की अनेक अर्थव्यवस्थाओं में राजकोषीय गुंजाइश सीमित होने के कारण सरकारों को राजस्व बढ़ाने वाले सुधार अपनाने होंगे जिनमें कर आधार में विस्तार एवं कर नियमों का बेहतर पालन शामिल है। देशों को व्यय कुशलता सुधारनी होगी। इसके लिए आर्थिक बुनियादी ढाँचे में बढ़ोतरी, डिजीटलीकरण के विस्तार और सामाजिक संरक्षण तंत्रों की मजबूती पर ध्यान देते हुए व्यय का रुख लाचार समूहों के हित में मोड़ना होगा और भौतिक एवं मानव पूँजी को बढ़ाना होगा ताकि उसे लम्बे समय तक जारी रखा जा सके। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्ज अदायगी में चूक की आशंका वाले देशों, विशेषकर कुछ दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं,  में कर्ज का बोझ वहन करने के लिए विश्वसनीय मध्यकालिक राष्ट्रीय राजकोषीय तंत्रों की आवश्यकता है।

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