कोविड-19: बिना लक्षण वाले लोगों को क्वारंटीन सेंटरों में नजरबंद करना ठीक नहीं: हाई कोर्ट

पर्यावरण मुकदमों की डायरी: जानें, अलग-अलग अदालतों में क्या हुआ
फोटो: विकास चौधरी
फोटो: विकास चौधरी
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30 मई, 2020 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर कोरोनावायरस के कारण विस्थापित होने वाले प्रवासी श्रमिकों सहित बड़ी संख्या में लोगों को उनके क्वारंटीन अवधि समाप्त होने के बाद रिहा किया जाए।

न्यायालय ने कहा जिन व्यक्तियों ने अपनी क्वारंटीन अवधि पूरी कर ली है और जिनकी कोरोना परीक्षण रिपोर्ट नेगेटिव आई है, उनको उनकी इच्छाओं के खिलाफ क्वारंटीन सेंटरों में और हिरासत में नहीं लिया जा सकता है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 221 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा।

उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्य सचिव को हर जिले में तीन सदस्यीय समिति गठित करने के लिए कहा गया, ताकि क्वारंटीन सेंटरों का संचालन अधिक प्रभावी ढ़ंग से हो सके। न्यायालय ने समिति को यह भी सुनिश्चित करने को कहा है कि क्वारंटीन सेंटर केवल ठीक से काम करें, बल्कि उन्हें नियंत्रित और सही ढ़ंग से चलाया जाना चाहिए। 

उच्च न्यायालय ने समिति को क्वारंटीन में रहने वाले लोगों को सहायता करने के लिए भी निर्देशित किया है। यह भी सुनिश्चित करने को कहा गया है कि लोगों के क्वारंटीन अवधि पूरी करने के बाद जिन लोगों का परीक्षण रिपोर्ट नेगेटिव आती है उन्हें जाने दिया जाय, ऐसा करने में कोई कानूनी बाधा आड़े आए। यह आदेश जस्टिस शशि कांत गुप्ता और सौरभ श्याम शमशरी द्वारा पारित किया गया है।

यह आदेश उच्च न्यायालय ने तब्लीगी जमात के सदस्यों की रिहाई के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया है।

जल निकायों का संरक्षण और पुनर्स्थापन

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 1 जून, 2020 को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जल निकायों की पहचान, जल निकायों की संख्या, स्थान का विवरण, पानी की गुणवत्ता की स्थिति के बारे में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को जानकारी देने का निर्देश दिया है। पहचान किए गए जल निकायों को यदि मरम्मत करने की आवश्यकता है, प्रदूषित जल निकायों की पहचान कर विस्तृत कार्य योजना बनाने के लिए निर्देशत किया है।

राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को 31 जुलाई तक विवरण प्रस्तुत करना होगा। फिर इन रिपोर्टों को सीपीसीबी द्वारा संकलित कर 31 अक्टूबर तक एनजीटी के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।

एनजीटी ने अपने आदेश में मौजूदा तालाबों / जल निकायों की क्षमता बढ़ाने, वाटरशेडों के निर्माण की सीमा को बढ़ाने के अलावा कैचमेंट के क्षेत्रों से अत्यधिक बारिश के दौरान पानी जमा करने के महत्व पर जोर दिया। जहां भी जरुरत हो, अतिरिक्त जल निकायों और जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करने के लिए, मनरेगा के तहत उपलब्ध धन का उपयोग करके बड़े पैमाने पर समुदाय को शामिल करने का निर्देश दिया है।

ग्राम पंचायतें इस मामले में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं और एक बार जब पानी की पर्याप्त क्षमता में वृद्धि हो जाती है, तो उचित जल संचयन तकनीकों का उपयोग करके अतिरिक्त बाढ़ और वर्षा जल को चैनलाइज़ किया जा सकता है।

जिला मजिस्ट्रेट को एक महीने के भीतर जिला पर्यावरण योजना या वाटरशेड योजना के अनुसार सभी स्टेकहोल्डर्स की बैठक आयोजित करने के लिए कहा गया था। उन्हें यह भी सुनिश्चित करने को कहा गया है कि हर गांव में कम से कम एक जल निकाय बनाया जाना चाहिए।

इस संबंध में की गई कार्रवाई को राज्य स्तर पर संकलित किया जाना था और संबंधित जिला मजिस्ट्रेटों द्वारा राज्यों के मुख्य सचिवों को रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी। फिर राज्य की एक समेकित रिपोर्ट 31 अगस्त तक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भेजी जानी चाहिए।

आनंद विहार रेलवे स्टेशन के पास पेड़ों की कटाई और अपशिष्ट का निष्कासन

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 1 जून को दिल्ली के प्रधान मुख्य वन संरक्षक को आनंद विहार रेलवे स्टेशन के बाहर पेड़ों की कटाई के मामले की पड़ताल करने के निर्देश दिए है दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति और पूर्वी दिल्ली नगर निगम को अपशिष्ट के उपचार के लिए पर्याप्त कदम उठाने को कहा गया है। यह वही अपशिष्ट है जिसे आनंद विहार के नाले में बहाया जा रहा था।

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