बेशक केंद्र सरकार यह बता नहीं पा रही है कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में कितने प्रवासियों की मौत हुई, लेकिन 22 सितंबर 2020 को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने जानकारी दी कि मार्च से जून 2020 के दौरान 81,385 दुर्घटनाएं हुई, जिनमें 29,415 लोगों की जान गई। हालांकि साथ ही यह स्पष्ट भी किया गया है कि मंत्रालय ने लॉकडाउन के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए प्रवासी श्रमिकों के संबंध में अलग से डेटा नहीं रखा है।
गौरतलब है कि इससे पहले भी संसद में पूछा गया था कि लॉकडाउन के दौरान कितने लोग पैदल चलते हुए या सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए, तब सरकार की ओर से स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि उनके पास इससे संबंधित आंकड़े नहीं हैं।
22 सितंबर को फिर से संसद सदस्य जसबीर सिंह गिल, मोहम्मद जावेद, डीके सुरेश और डीन कुरियाकोस ने सरकार से पूछा कि देश में लॉकडाउन के दौरान मार्च और अप्रैल 2020 के दौरान कितने प्रवासी कामगार पैदल चल कर अपने घर गए? देश में इस अवधि के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में कितने प्रवासी कामगार मारे गए और इस अवधि के दौरान प्रवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मंत्रालय द्वारा क्या कदम उठाए गए?
सड़क परिवहन और राजमार्ग राज्यमंत्री वीके सिंह ने बताया कि श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान पैदल यात्रा करने वालों सहित 1.06 करोड़ से अधिक प्रवासी श्रमिक अपने गृह राज्य लौटे थे।
दूसरे सवाल के जवाब में बताया गया कि अब तक उपलब्ध जानकारी के अनुसार मार्च-जून 2020 की अवधि के दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग सहित सड़कों पर 81,385 दुर्घटनाएं हुई, जिनमें 29,415 जानें गई। हालांकि सरकार ने जिस तरह से जवाब दिया है, उससे यह स्पष्ट नहीं होता कि मरने वाले अपने घर-गांव लौट रहे प्रवासी श्रमिक ही थे।
यहां यह उल्लेखनीय है कि कोरोनावायरस संक्रमण फैलते देख भारत में सबसे पहले 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगाया गया, जिसे जनता ने पूरा सहयोग दिया। इसके बाद 25 मार्च से पूरी तरह देशव्यापी लॉकडाउन कर दिया गया। लोगों को घरों से निकलने की इजाजत नहीं थी, गाड़ियां चलने का तो सवाल ही नहीं उठता।
गृह मंत्रालय ने 29 अप्रैल और 1 मई 2020 को जारी आदेश में प्रवासी मजदूरों को बसों और श्रमिक विशेष ट्रेनों से अपने मूल स्थानों पर जाने की इजाजत दी थी, लेकिन प्रवासी इससे पहले ही पैदल अपने मूल स्थानों के लिए निकल पड़े थे। इस दौरान किसी तरह के निजी वाहनों के चलने की इजाजत नहीं थी। यहां यह उल्लेखनीय है कि केंद्र ने बसों और ट्रेनों को चलने की इजाजत तो दे दी थी, लेकिन राज्य सरकारों की ओर से बसों का पर्याप्त इंतजाम नहीं था। चूंकि माल वाहक ट्रक-टेम्पो चल रहे थे, इसलिए जहां श्रमिक पैदल जा रहे थे, वहीं कई ट्रक टेम्पो वाले भी मनमानी कीमत वसूल कर श्रमिकों को लादकर ले जा रहे थे। इसी दौरान कई दुर्घटनाएं भी हुई। जिसमें 13 मई को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक बस की चपेट में आने से 6 मजूदरों की मौत और 14 मई को मध्यप्रदेश में बस की टक्कर से ट्रक में सवाल आठ प्रवासियों की मौत जैसी घटनाएं शामिल हैं।
देश में सड़क हादसों को रोकने के लिए काम कर रहे स्वयंसेवी संगठन सेव लाइफ फाउंडेशन ने लॉकडाउन के दौरान एक सर्वेक्षण किया और बताया कि 25 मार्च से 18 मई सुबह 11 बजे तक देश भर में 1236 सड़क दुर्घटनाएं हुई, जिसमें 423 लोगों की मौत हुई और 833 लोग घायल हुए।
लेकिन अब संसद में जो आंकड़े पेश किए गए, क्या वे सही तस्वीर पेश कर रहे हैं? यह सवाल अभी भी खड़ा है, क्योंकि सांसदों ने सरकार ने अप्रैल और मई का आंकड़ा मांगा था, लेकिन सरकार ने मार्च से जून तक का आंकड़ा दिया है। यहां यह उल्लेखनीय है कि सबसे पहले लॉकडाउन 8 जून को खुला था। हालांकि यह बहुत सीमित था और तब भी बिना वजह निजी वाहनों के सड़क पर निकलने की छूट नहीं थी। ऐसे में, सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए 29,415 लोगों को प्रवासी श्रमिक बेशक नहीं माना जा सकता, लेकिन ये लोग कौन थे, फिलहाल सरकार इस बारे में बताने के मूड में नहीं लगती।
यहां यह उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि 2019 में हुई सड़क दुर्घटनाओं में 1,54,732 लोगों की जान गई। यानी कि औसतन हर महीने 12,894 लोगों की मौत सड़क दुर्घटनाओं में हुई। इस हिसाब से चार माह (मार्च से जून) का औसत निकाला जाए तो सड़क दुर्घटना में 51,580 लोगों की मौत हो सकती थी। ऐसे में, अगर 29,415 लोगों की मौत होना कोई छोटा आंकड़ा नहीं है। हालांकि सरकार को इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि आखिर जब सड़कों पर गाड़ियां नहीं चल रही थी तो ये मरने वाले लोग कौन थे?