नए साल की शुरुआती सप्ताह में नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्य की प्रगति रिपोर्ट जारी की है। इससे पता चलता है कि भारत अभी गरीबी को दूर करने का लक्ष्य हासिल करने में काफी दूर है। भारत आखिर गरीब क्यों है, डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है। इसकी पहली कड़ी में आपने पढ़ा, गरीबी दूर करने के अपने लक्ष्य से पिछड़ रहे हैं 22 राज्य । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, नई पीढ़ी को धर्म-जाति के साथ उत्तराधिकार में मिल रही है गरीबी । पढ़ें, तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों के बीच रहने वाले ही गरीब । चौथी कड़ी में आपने पढ़ा घोर गरीबी से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं लोग । पांचवी कड़ी में पढ़ें वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की वार्षिक बैठक शुरू होने से पहले ऑक्सफैम द्वारा भारत के संदर्भ में जारी रिपोर्ट में भारत की गरीबी पर क्या कहा गया है? पढ़ें, छठी कड़ी में आपने पढ़ा, राष्ट्रीय औसत आमदनी तक पहुंचने में गरीबों की 7 पुश्तें खप जाएंगी । इन रिपोर्ट्स के बाद कुछ गरीब जिलों की जमीनी पड़ताल-
राजधानी दिल्ली से लगभग 70 किलोमीटर पर बसा मेवात यह बताता है कि देश की आजादी के बाद गरीबी को दूर करने के लिए जितनी भी योजनाएं बनी, वो कितनी जमीन पर उतरी। मेवात की गरीबी की दास्तां की पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी की मिसाल है यह जिला । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, मेवात के 47 फीसदी क्षेत्र में नहीं है सिंचाई की व्यवस्था । पढ़ें, तीसरी कड़ी-
गरीबों को रोजगार देने के लिए शुरू की गई केंद्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी योजना (मनरेगा) भी मेवात क्षेत्र में दम तोड़ रही है। साल 2017-18 में 779, 2018-19 में 516 और 2019-20 में 447 परिवारों से एक-एक लोगों को 100 दिन का रोजगार मिला है। सामाजिक कार्यकर्ता आसिफ अली बताते है मनरेगा में यहां दिहाड़ी मजदूरी से भी कम पैसे मिलते है। वर्ष 2018 में-19 में 281 रुपये मिलती थी। 2019-20 में महज तीन रुपये बढ़ाया गया, अब 284 रुपये प्रति दिन मजदूरी मिलती है। जबकि श्रम विभाग द्वारा हरियाणा में अकुशल लोगों की दिहाड़ी 347 रुपये है। ऐसे में कोई मनरेगा के तहत क्यों काम करें। इतनी कम मजदूरी मिलने के बाद भी केवल 100 दिनों का रोजगार, बाकी 265 दिनों तक भूखे तो नहीं रह सकता। इस वर्ष नूंह (मेवात) जिले के 324 पंचायतों में से 64 पंचायतें ऐसी है, जहां मनरेगा के तहत कोई काम ही नहीं हुआ है। जिसकी वजह से लोगों को काम ही नहीं मिला।
वहीं, दूसरी ओर मेवात दिल्ली और गुरुग्राम के नजदीक है। वहां किसी भी कंस्ट्रक्शन साइट या बाजार में दिहाड़ी मजदूरी करने पर 500-700 रुपये मिल जाते है। इस वजह से मनरेगा यहां मजदूरों का विकल्प नहीं बन सका। मानेसर, धारूहेड़ा, बावल औद्योगिक क्षेत्र में भी कई बार रोजगार मिल जाता है।
नहीं है कोई उद्योग धंधे
मेवात के विकास के लिए सोहना से आगे रोजकामेव में गांव में 1983 में औद्योगिक मॉडल टाउन बनाया गया था, लेकिन उद्योगों को कोई सुविधा नहीं मिलने के कारण वह अब धीरे-धीरे पलायन कर चुके है। 1501 एकड़ में फैले रोजका मेव में करीब 200 एकड़ में औद्योगिक क्षेत्र विकसित की गई थी, यहां मौजूदा समय में यहां 50 के करीब इकाइयां हैं। यहां उद्योगों के लिए सड़क जैसी मूल सुविधाएं भी नहीं है। आज तक न सीवर डाले और न पानी निकासी व्यवस्था हुई। मेवात चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के एक पदाधिकारी का कहना है कि इंडस्ट्री के लिए सबसे जरूरी कनेक्टिविटी होती है, लेकिन आजादी के 70 साल बाद भी मेवात में रेलवे लाइन नहीं है। रोड कनेक्टिविटी भी बेहतर नहीं है।
सरकार के सभी प्रयास फेल
2005 में मेवात जिला बनने से पहले ही इस क्षेत्र के विकास के लिए 1980 में मेवात डेवलपमेंट एजेंसी का गठन किया गया था। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली इस बॉडी प्रदेश के मंत्री, आला अधिकारी से लेकर इलाके के नामचीन नुमाइंदे भी है। विकास के नाम पर 2018 तक इस बोर्ड ने 450 करोड़ रुपये खर्च किए। वर्ष 2018-19 में 40 करोड़ रुपये और 2019-20 में 30 करोड़ रुपये हरियाणा सरकार ने दिए है। वहीं, हरियाणा सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-19 में मेवात क्षेत्र में आधारभूत ढांचा के विकास के लिए 16.5 करोड़ रुपये आवंटित किए है। इसके अलावा केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा भी मल्टी सेक्टरल डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत स्कूल, कॉलेज और सड़के बनवाने के लिए अलग से बजट दिया जाता है। इन सबके बावजूद अब मेवात जिला अब भी पिछड़े जिले में शुमार है।
बुजुर्ग शेर मोहम्मद बताते है कि मेवात के विकास के लिए जिले की मांग की गई थी। अलग जिला बनने से विशेष तवज्जो मिलेगी। छोटा जिला होने की वजह से तेजी से विकास होगा। मगर 14 साल बीतने के बाद भी मेवात पिछड़ा हुआ है। यहां के पिछड़ेपन का एक कारण प्रशासनिक उदासीनता और राजनीतिक घराने की लड़ाई रही है, जबकि मेवात के रहने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर सुभान खान मेवात के पिछड़े होने की कई वजह मानते हैं। वो कहते हैं, मेवात के पिछड़ेपन के ऐतिहासिक कारण हैं। इस इलाके के लोग अनपढ़ होने के कारण अच्छा नेतृत्व पैदा नहीं कर पाए और वो आज भी इसी वजह से पीछे है। यहां के लोग किसी हुनर में भी अपना नाम पैदा नहीं कर पाए, लोगों में जागरुकता नहीं है। वहां कई एजेंसियों ने करोड़ों रुपए खर्च किए, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. इसकी एक वजह ये भी थी कि इन कार्यक्रमों में लोगों की भागेदारी नहीं थी।