ग्रामीण भारत में स्वच्छ ईंधन अपनाने की गति क्यों है धीमी : अध्ययन

नए अध्ययन से पता चलता है कि ग्रामीण भारत में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन के उपयोग में कमी आ सकती है। इसका कारण उनका इस बात पर विश्वास करना है कि जलाऊ लकड़ी (फायरवुड) का उपयोग उनके परिवारों के सेहत के लिए एलपीजी से बेहतर है।
ग्रामीण भारत में स्वच्छ ईंधन अपनाने की गति क्यों है धीमी : अध्ययन
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आमतौर पर स्वच्छ ईधन को ठोस ईंधन (जलाऊ लकड़ी) की तुलना में स्वास्थ्य और अन्य लाभ पहुंचाने वाला माना जाता है, इसलिए स्वच्छ ईधन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हालांकि खाना पकाने वाले स्वच्छ ईंधन, जैसे एलपीजी की उपलब्धता के बावजूद भी ग्रामीण भारत में ठोस ईंधन का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। ग्रामीण भारत में स्वच्छ ईंधन अपनाने की गति कम क्यों है, इसको अपनाने में किस तरह की बाधाएं सामने आ रही हैं इसी को लेकर एक अध्ययन किया गया है।

नए अध्ययन से पता चलता है कि ग्रामीण भारत में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन के उपयोग में कमी आ सकती है। इसका कारण उनका इस बात पर विश्वास करना है कि जलाऊ लकड़ी (फायरवुड) का उपयोग उनके परिवारों के सेहत के लिए एलपीजी से बेहतर है।

ग्रामीण भारत में महिलाओं को मुख्यत: पारिवारिक रसोइया माना जाता है। अध्ययन में शामिल लोगों को लगता है कि दोनों ईंधन सेहत के लिए ठीक हैं। इन दृष्टिकोणों को समझने से यह समझाने में मदद मिलती है कि भारत का पारंपरिक ईंधन से स्वच्छ ईंधन अपनाने की संभावना धीमी क्यों है।

जलाऊ लकड़ी से खाना पकाने वाले रसोइया जानते हैं कि इससे स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं, लेकिन उनका मानना है कि एलपीजी के उपयोग से खाना पकाने की तुलना में यह सेहतमंद है। हालांकि एलपीजी उपयोगकर्ता जो पहले लकड़ी के उपयोग से खाना बनाते थे, उनका दावा है कि उनके लिए नया ईंधन अधिक अच्छा है।

भारत में दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में लोग खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन पर अधिक निर्भर हैं। स्वच्छ ईंधन से खाना पकाने के लिए सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करना संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से एक है, जिसके लिए भारत ने समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम (यूके) और क्वींसलैंड (ऑस्ट्रेलिया) के शोधकर्ताओं ने आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के चार गांवों में महिलाओं के साथ समूह चर्चा की। दो गांव ऐसे हैं जहां ज्यादातर जलाऊ लकड़ी का उपयोग किया जाता था जबकि अन्य दो में ज्यादातर एलपीजी उपयोगकर्ता शामिल थे, जिन्होंने जलाऊ लकड़ी के उपयोग को छोड़कर स्वच्छ ईंधन को अपनाया था। यह अध्ययन नेचर एनर्जी में प्रकाशित हुआ है।

जलाऊ लकड़ी उपयोगकर्ताओं का मानना था कि इस ईंधन से खाना पकाने से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है क्योंकि जलाऊ लकड़ी की बिक्री से आय होती है, जबकि ईंधन इकट्ठा करने से उन्हें आपस मे मेल-जोल बढ़ाने का अवसर मिलता है और यह एक परंपरा है जिसे वे जारी रखना चाहते हैं। उन्होंने एलपीजी को एक आर्थिक बोझ के रूप में देखा जो भोजन को अच्छा स्वाद नहीं देता है और एलपीजी सिलेंडर के फटने की आशंका बनी रहती है।

एलपीजी उपयोगकर्ताओं ने शोधकर्ताओं को बताया कि उनके ईंधन ने उन्हें सामाजिक स्थिति को सुधारने में मदद की, साथ ही बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों की देखभाल करना आसान बना दिया। रसोई गैस से खाना पकाने से समय की बचत होती है जिसका उपयोग वे घर के बाहर काम करने और पैसा कमाने के लिए कर सकते हैं। उन्होंने अपने परिवार के साथ अतिरिक्त ख़ाली समय बिताकर आनंद लिया।

बर्मिंघम विश्वविद्यालय में पर्यावरण और समाज में वरिष्ठ व्याख्याता और सह-अध्ययनकर्ता डॉ. रोजी डे, ने कहा कि भारत के स्वच्छ ईंधन को अपनाने के उद्देश्य के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस ईंधन का उपयोग इस बात का संकेत देता है कि स्वच्छ ईंधन का व्यापक और निरंतर उपयोग  अभी एक दूर की वास्तविकता है।

डे, ने कहा जबकि खाना बनाना केवल एक महिला का काम नहीं है, वास्तविकता यह है कि, ग्रामीण भारत में, महिलाओं को प्राथमिक रसोइया माना जाता है। इसलिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि अगर भारत को प्रगति करना है तो महिलाओं की भलाई और खाना पकाने के ईंधन में बदलाव कर स्वच्छ ईंधन को अपनाना ही होगा।

शोधकर्ताओं का सुझाव है कि स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देने के लिए भविष्य में हस्तक्षेप कर इसमें महिलाओं को सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिए जिन्होंने ठोस ईंधन और स्वच्छ ईंधन का उपयोग किया है। प्रत्येक के लाभों के बारे में चर्चा करना और अलग-अलग तरीकों से खाना पकाने में मदद करना आदि शामिल है। साथ मिलकर किए जाने वाले कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, एलपीजी के सकारात्मक अच्छे पहलुओं के बारे में जानकारी देना, इससे जुड़ी चिंताओं को दूर करना और एक-दूसरे से सीखने को बढ़ावा देकर जलाऊ लकड़ी के उपयोगकर्ताओं को समझाया जा सकता है।

अध्ययन में तीन प्रमुख चीजों की पहचान की गई है, जिन पर नीति निर्माताओं द्वारा विचार किया जा सकता हैं:

  • उपयोगकर्ताओं को लगता है कि दोनों ईंधन में कम से कम कुछ महत्वपूर्ण अच्छाइयां हैं
  • इसे समझने से यह समझाने में मदद मिलती है कि लोगों को केवल स्पष्ट स्वास्थ्य लाभ के आधार पर स्वच्छ ईंधन अपनाने के लिए राजी क्यों नहीं किया जा सकता है।
  • खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन को अपनाने के बाद हुए अच्छे बदलावों पर महिलाओं के विचारों को जानना।

एलपीजी और जलाऊ लकड़ी उपयोगकर्ताओं ने बताया जैसे कि जलाऊ लकड़ी पर खाना बनाने से स्वाद बेहतर होता है, लेकिन एलपीजी उपयोगकर्ताओं को जो इसका उपयोग नही़ करते उनकी तुलना में स्वच्छ ईंधन में अधिक फायदे मिलते हैं।

अध्ययन से पता चला कि गांवों में महिलाएं अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने, अच्छी शिक्षा का समर्थन करती हैं। वे एलपीजी से खाना बना कर बचे समय में कमाई के संसाधन चुन सकती हैं, अपने दोस्तों और पड़ोसियों के साथ समय बिता सकती हैं।

डॉ डे ने कहा हमने महिलाओं के विचारों से महत्वपूर्ण समझ हासिल की है, लेकिन महिलाओं के ईंधन के उपयोग और अन्य व्यवस्थाओं में लाभ के बीच संबंध का विश्लेषण करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। यह हमारी समझ को बढ़ाने में मदद करेगा कि सामाजिक और सांस्कृतिक कारक किस तरह स्वच्छ ईंधन को अपनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

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