वैज्ञानिकों की मानें तो दुनिया को गरीबी मुक्त करने के लिए लिए प्रति व्यक्ति हर साल औसतन छह टन कच्चे माल की जरूरत है। इन संसाधनों में मुख्य रूप से खनिज, जीवाश्म ईंधन, बायोमास और धातु अयस्क शामिल हैं। यह जानकारी फ्रीबर्ग विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है, जिसके नतीजे जर्नल एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।
रिसर्च में यह भी सामने आया है कि पोषण और परिवहन जैसे क्षेत्र संसाधनों की मांग को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। बता दें कि यह पहला मौका है, जब वैज्ञानिकों ने इस बात की गणना की है कि वैश्विक स्तर पर गरीबी को दूर करने के लिए कितने कच्चे माल की आवश्यकता है।
यदि हाल ही में यूनिटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) द्वारा जारी आंकड़ों की मानें तो दुनिया भर में रहने वाले करीब 120 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी में रहने को मजबूर हैं। जो अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
देखा जाए तो किसी व्यक्ति को उसके जीवन के लिए कितने संसाधनों की आवश्यकता होगी यह उसकी जीवनशैली और रहन-सहन पर निर्भर करता है। अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर जोहान एन्ड्रेस वेलेज-हेनाओ के मुताबिक यदि अमीर देशों द्वारा की जा रही संसाधनों की खपत की तुलना में देखें तो एक बेहतर जीवन जीने के लिए प्रति व्यक्ति हर वर्ष केवल छह टन संसाधनों की मांग बेहद मामूली जान पड़ती है।
उदाहरण के लिए यदि जर्मनी में एक औसत व्यक्ति द्वारा हर वर्ष की जा रही संसाधनों की खपत को देखें तो वो करीब 72 टन है, वहीं अमेरिका में यह मांग करीब 85 टन है। ऐसे में यदि संसाधनों के वितरण में मामूली सा हेरफेर कर दिया जाए तो वो पर्याप्त प्रभाव डाल सकता है।
रिसर्च से पता चला है कि किसी व्यक्ति को गरीबी मुक्त जीवन बसर करने के लिए हर वर्ष करीब छह टन संसाधनों की जरूरत होगी। इस दौरान उसे सबसे ज्यादा संसाधनों की आवश्यकता भोजन संबंधी जरूरतों के लिए पड़ेगी। अनुमान है कि इसके लिए एक औसत व्यक्ति को हर साल करीब 2.3 टन संसाधनों की जरूरत होगी, जो संसाधनों की उसकी कुल जरूरत का करीब 38 फीसदी हिस्सा है।
इसके बाद उसे अपने आने-जाने या परिवहन के लिए करीब 1.6 टन संसाधन चाहिए। जो उनकी कुल जरूरत का करीब 26 फीसदी हिस्सा है। इसके विपरीत आवास, स्वच्छता, शिक्षा, संचार, सार्वजनिक सेवाएं और कपड़े, संसाधनों की इस मांग के छोटे से हिस्से के लिए जिम्मेवार हैं।
वहीं यदि गरीबी मुक्त जीवन के लिए संसाधनों की मांग को उसके प्रकार के लिहाज से देखें तो इसमें 34 फीसदी गैर-धात्विक खनिज (जैसे रेत, बजरी, चूना पत्थर और मिट्टी) की आवश्यकता शामिल है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इसमें 28 फीसदी जीवाश्म ईंधन, 20 फीसदी बायोमास (जैसे लकड़ी) और 18 फीसदी धात्विक अयस्क शामिल हैं।
संसाधनों पर बढ़ते दबाव को कम कर सकता है जीवनशैली में बदलाव
किसी व्यक्ति को अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए कितने संसाधनों की आवश्यकता है। शोधकर्ताओं ने इसकी गणना गरीबी रेखा से ऊपर जीवन बसर करने के लिए न्यूनतम आवश्यकताओं के आधार पर किया है। इस आधार पर देखें तो एक गरीबी रेखा से ठीक ऊपर जीवन बसर करने वाले व्यक्ति को पोषण के लिए हर दिन औसतन 2,100 किलो कैलोरी की जरूरत होती है।
इसी तरह चार लोगों के परिवार में उसे रहने के लिए 15 वर्ग मीटर की जगह चाहिए। यदि परिवहन की बात करें तो एक औसत व्यक्ति हर साल 8,000 किलोमीटर की यात्रा करता है। साथ ही उसे शिक्षा, स्वास्थ्य, और खेल-कूद के लिए स्थान और प्रशासनिक भवनों जैसी सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच की आवश्यकता पड़ती है। इसके साथ ही प्रत्येक व्यक्ति के पास अपना सेल फोन होना चाहिए और परिवार में वो अन्य सदस्यों के साथ लैपटॉप और राउटर साझा करता है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 6,000 से अधिक अलग-अलग परिदृश्यों का विश्लेषण किया है ताकि यह समझा जा सके कि आपूर्ति की विभिन्न परिस्थितियां और जीवनशैली गरीबी को कम करने के लिए कच्चे माल की आवश्यकताओं को कैसे प्रभावित कर सकती हैं।
रिसर्च के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनसे पता चला है कि यदि कोई व्यक्ति संयुक्त परिवार में लकड़ी के घर में रहता है। साथ ही शाकाहारी भोजन करता है, निजी कार की जगह पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करता है या पैदल चलता है तो उसका हर वर्ष का मैटेरियल फुटप्रिंट घटकर आधा यानी तीन टन तक कम हो सकता है।
वहीं इसके विपरीत, यदि कोई व्यक्ति ऊंची कंक्रीट की बनी इमारत में रहता है, मांस और चावल का सेवन करता है, और आने जाने के लिए ज्यादातर इलेक्ट्रिक कार का उपयोग करता है तो उसका पदचिन्ह बढ़कर दोगुने से भी ज्यादा हो सकता है, जो प्रति वर्ष 14 टन तक पहुंच सकता है।
अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता का कहना है कि स्टीफन पॉलियुक के मुताबिक, हमें दुनिया भर में कच्चे माल के बढ़ते उपयोग को तुरंत सीमित करने की जरुरत हैं, क्योंकि यह बढ़ते उत्सर्जन के साथ-साथ, पानी की कमी और दुनिया की करीब 90 फीसदी जैवविविधता को होने वाले नुकसान के लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार है। हालांकि शोध यह भी दर्शाता है कि यदि संसाधनों के वितरण में सुधार किया जाए तो गरीबों को नुकसान पहुंचाए बिना इसके उपयोग में कमी मुमकिन है।