भारत में जनसंख्या की रफ्तार स्थिर, क्या फिर भी है कड़े कानून की जरूरत

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में सरकार को जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने की सलाह दी है। क्या देश को वाकई जनसंख्या नियंत्रण के लिए कड़े कानून की जरूरत है?
Photo: GettyImages
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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार फिर जनसंख्या नियंत्रण को लेकर सरकार को नीति निर्धारण करने की सलाह दी है। एक विशेष सामाजिक और राजनीतिक पक्षों के द्वारा इस तरह की मांग लगातार हो रही है और इस कड़ी में मोहन भागवत का बयान सबसे नया है। 10 जनवरी को दिल्ली में बीजेपी के नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में जवाब मांगा है। अश्विनी कुमार उपाध्याय ने कोर्ट से जनसंख्या नियंत्रण को लेकर सख्त कानून की मांग की थी।

इस बहस में यह बात संभव होती नहीं दिखती कि भारत की की आबादी चीन की आबादी से वर्ष 2027 तक आगे निकल जाएगी। भारत और चीन दोनों देशों के लिए एक अनुमान में संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग ने कहा है कि वर्ष 2027 तक दोनों देशों की आबादी 160 करोड़ तक पहुंच जाएगी। भारत की आबादी 2030 तक 166 करोड़ तक पहुंच सकती है। इस वक्त भारत में विश्व के 16 प्रतिशत लोग रहते हैं और यहां का भूभाग का हिस्सा विश्व का 2.45 प्रतिशत ही है जिसमें पानी की हिस्सेदारी 4 प्रतिशत की है। हालांकि, क्या यह स्थिति घबराने योग्य है?

इस सवाल का जवाब इस पूरे बहस को तहसनहस कर देता है। हाल के आंकड़ों को देखें तो व्यवस्थित कृषि शुरू होने के 12000 वर्ष बाद संभवतः पहली बार ऐसा हुआ होगा कि होमो सेपियन्स की आबादी कम हो रही हो। और भारत की बात करें तो जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार शायद अब थम रही है।

इंसानों के लिए 2.1 टीएफआर (टोटल फर्टिलिटी रेट) यानि महिला द्वारा जीवनकाल में पैदा हो सकने वाले बच्चों का औसत, पर निर्भर करता है और इससे जनसंख्या नियंत्रित रहती है। 2.1 टीएफआर का मतलब एक बच्चा मां के लिए और एक पिता के लिए और बचा हुआ 0.1 बच्चे की शिशुकाल में मृत्यु हो जाने की स्थिति को दिखाता है। संयुक्त राष्ट्र का जनसंख्या विभाग इसे रिप्लेसमेंट लेवल फर्टिलिटी कहता है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अगर रिप्लेसमेंट लेवल फर्टिलिटी अगर लंबे समय तक वहीं टिका रहे तो हर पीढ़ी अपने बराबर ही जनसंख्या आने वाले समय के लिए छोड़ती जाएगी और जनसंख्या नियंत्रण के लिए किसी अतिरिक्त कोशिशों की जरूरत नहीं होगी।

राज्यों के आंकड़ों को देखें तो भारत इस स्थिति को पाने के बेहद करीब है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत की आबाजी रिप्लेसमेंट लेवल को पाने ही वाली है। आंकड़े बताते हैं कि देश में आने वाले समय में जनसंख्या में कोई बड़ी बढ़तरी नहीं होने वाली है।

तीन वर्ष पहले राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 कहती है कि टीएफआर 2.2 तक पहुंच गया है। ज्यादातर भारतीय राज्य या तो 2.1 टीएफआर को पा चुके हैं या उससे कम भी पहुंच चुके हैं। हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश का टीएफआर तो इस रिपोर्ट में रिप्लेसमेंट लेवल से कम पाया गया था। अपवाद देखें तो बिहार (3.4), उत्तरप्रदेश (2.7), झारखंड (2.6), राजस्थान (2.4), मध्यप्रदेश (2.3), छत्तीसगढ़ (2.2) और असम (2.2) के साथ इस दर से कुछ अधिक हैं।

एम्पटी प्लेनेट किताब के लेखक डैरेल ब्रिकर ने अपनी गणना में पाया है कि वैश्विक स्तर पर प्रजनन क्षमता में गिरावट आ रही है और भारत रिप्लेसमेंट रेट तक पहुंच गया है। पिछले वर्ष आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट ने सुझाया था कि बड़े आधारभूत संरचनाओं की जरूरत जैसे कि स्कूल में बड़े बदलावों की जरूरत है और अब इसे कम जनसंख्या के लिए बनाना उचित होगा। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के जनसंख्या अध्ययन क्षेत्रीय विकास के अध्ययन के लिए केंद्र के असिस्टेंट प्रोफेसर श्रीनिवास गोली कहते हैं कि राष्ट्रीय टीएफआर आने वाले समय में 2021 तक 2.1 यानि रिप्लेसमेंट स्तर तक पहुंचने की उम्मीद है।

इसलिए, जनसंख्या नियंत्रण को सुनिश्चित करने के लिए दंडात्मक उपाय अब स्थान खो चुके हैं। दरअसल, जिन राज्यों ने दो-बच्चे के मानदंड को लागू करने के लिए विभिन्न रूपों में प्रतिबंध लगाए हैं, अब वे अपना कदम पीछे खींच रहे हैं। कुल 12 में से चार राज्यों ने दो-बच्चे के मॉडल को ला चुके थे उन्होंने इसे वापस ले लिया है।

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