केवल 18 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टरों के भरोसे चल रहे हैं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र

केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्य सभा में जानकारी दी कि देश के कम्युनिटी हेल्थ सेंटर्स में 21,340 विशेषज्ञों की जरुरत है
संसद में दिए गए एक जवाब में केंद्र ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 82 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। फोटो: अनंत पालीवाल
संसद में दिए गए एक जवाब में केंद्र ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 82 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। फोटो: अनंत पालीवाल
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देश की ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (कम्युनिटी हेल्थ सेंटर) बहुत महत्व रखते हैं। लेकिन इन स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की 82 फीसदी कमी है। आईपीएचएस मानदंडों के आधार पर देखें तो वर्ष 2019 के दौरान इन केंद्रों में सर्जनों की कमी 85.6 फीसदी, प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ की 75 फीसदी, चिकित्सक 87.2 फीसदी और बाल रोग विशेषज्ञों की 79.9 फीसदी की कमी दर्ज की गयी है।

यह जानकारी केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्य सभा में दिए गए एक प्रश्न के जवाब दी। देश के कम्युनिटी हेल्थ सेंटर्स में कुल मिलकर 21,340 विशेषज्ञों की जरुरत है। जिनमें से केवल 3,881 ही उपलब्ध है। जबकि 17,459 की कमी है| प्राइमरी हेल्थ सेंटर्स (पीएचसी) में करीब 1,484 विशेषज्ञों की कमी है।

इन राज्यों में सबसे बुरा हाल

यदि आंकड़ों पर गौर करें तो देश में सबसे ज्यादा विशेषज्ञों की कमी उत्तर प्रदेश में है जहां 2,716 विशेषज्ञों की जरुरत है जबकि वहां केवल 484 उपलब्ध हैं। राजस्थान में 1,829 विशेषज्ञों की कमी है। जबकि तमिलनाडु में 1361, गुजरात में 1330, पश्चिम बंगाल में 1321, ओडिशा में 1272 और मध्य प्रदेश में 1,132 विशेषज्ञों की कमी है। जबकि देश के अन्य राज्यों की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं है। सिर्फ दिल्ली, चंडीगढ़ और दमन एवं दीव में विशेषज्ञों की कोई कमी नहीं है। आज देश भर में करीब 5335 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर हैं। जिनका रखरखाव राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।

इसकी उपयोगिता आप इस बात से ही लगा सकते हैं की आईपीएचएस मानकों के अनुसार हर कम्युनिटी हेल्थ सेंटर (सीएचसी) में कम से कम चार चिकित्सा विशेषज्ञों यानी सर्जन, चिकित्सक, स्त्री और बाल रोग विशेषज्ञ का होना अनिवार्य है। साथ ही इसमें ऑपरेशन थिएटर, एक्स-रे, लेबर रूम और प्रयोगशाला और 30-इन-डोर बेड जैसी सुविधाओं का होना भी अनिवार्य हैं। गौरतलब है कि एक कम्युनिटी हेल्थ सेंटर, 4 पब्लिक हेल्थ सेंटर्स के लिए रेफरल सेंटर के रूप में कार्य करता है। जो स्वास्थ्य सेवाओं के साथ-साथ प्रसूति देखभाल और विशेषज्ञ परामर्श सम्बन्धी सुविधाएं भी प्रदान करता है।

मानकों के आधार पर एक कम्युनिटी हेल्थ सेंटर आम तौर पर मैदानी क्षेत्रों में करीब 120,000 लोगों जबकि पहाड़ी/ आदिवासी और दुर्गम क्षेत्रों में 80,000 लोगों को अपनी सेवाएं प्रदान करता है। जबकि देश में एक कम्युनिटी हेल्थ सेंटर देश के ग्रामीण इलाकों में करीब 165,702 लोगों को अपनी सेवाएं प्रदान करता है। ऐसे में वहां विशेषज्ञों की कमी एक बड़ी भरी समस्या है। यह हमारी लचर व्यवस्था का ही परिणाम है। जिसके चलते स्वास्थ्य सेवाओं में इतनी बड़ी चूक है। आप स्वयं ही सोचिये बिना विशेषज्ञों के यह स्वास्थ्य केंद्र कैसे अपनी सेवाएं प्रदान कर सकते हैं।

यही वजह है की ग्रामीण इलाकों में मृत्युदर इतनी ज्यादा है। जब हर जिले से बाल स्वास्थ्य के प्रति उदासीन रवैये की खबरे सामने आ रही हैं। इसी के चलते ग्रामीण इलाकों के लोग आसानी से गंभीर बीमारियों का शिकार बन रहे हैं। या फिर उन्हें इलाज के लिए दिल्ली जैसे शहरों की और भागना पड़ रहा है। जिसका दबाव शहरी इलाकों की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी पड़ रहा है।

ऐसे में यदि कोरोनावायरस जैसी बीमारी फैलती है, तो आप उस स्थिति का खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं। जिसके परिणाम सच में कितने भयावह होंगें। हमें इस बात को गंभीरता से लेना होगा। हम स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों से समझौता नहीं कर सकते। राज्य सरकारों को भी इसके प्रति गंभीर होना होगा और अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभानी होगी। जिससे आने वाले वक्त में देश को एक स्वस्थ भविष्य दिया जा सके।

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