दुनिया में जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग बढ़ रही है उसके साथ ही बैटरी के लिए लिथियम, निकल, कोबाल्ट और मैंगनीज जैसी महत्वपूर्ण धातुओं की मांग भी बढ़ रही है। अनुमान है कि यदि 2050 तक 40 फीसदी वाहन इलेक्ट्रिक होंगें तो लिथियम की मांग 2,909 फीसदी बढ़ जाएगी।
इसी तरह यदि 2050 तक 100 फीसदी वाहन इलेक्ट्रिक हों तो लिथियम की मांग 7,513 फीसदी तक बढ़ जाएगी। ऐसे में क्या हम इस बढ़ती मांग के लिए तैयार हैं यह अपने आप में बड़ा सवाल है। इसमें कोई शक नहीं की इलेक्ट्रिक वाहनों के आने से न केवल पर्यावरण को फायदा होगा साथ ही बढ़ते उत्सर्जन में भी कमी आएगी जो जलवायु में आते बदलावों के दृष्टिकोण से भी फायदेमंद होगा।
लेकिन इसके साथ ही हमें लिथियम, निकल, कोबाल्ट और मैंगनीज जैसे महत्वपूर्ण धातुओं की बढ़ती मांग का भी सामना करना होगा। यह जानकारी कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है, जिसके नतीजे जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने भारत, अमेरिका, चीन सहित 48 देशों से जुड़े आंकड़ों की जांच की है जो इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
देखा जाए तो दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख मुद्दा है। यही वजह है कि ग्लासगो में हुए जलवायु सम्मेलन (कॉप-26) में भी पेरिस समझौते के लक्ष्यों पर बल दिया था। इस सम्मलेन में दुनिया भर के शीर्ष नेताओं ने उत्सर्जन में गिरावट के लिए जीवाश्म ईंधन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से हटाने का आह्वान किया था।
देखा जाए तो ट्रांसपोर्ट ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले कुल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में एक चौथाई का योगदान करता है। वहीं इसका तीन-चौथाई उत्सर्जन केवल सड़क यातायात से हो रहा है। ऐसे में यह जरूरी है कि जल्द से जल्द पेट्रोल-डीजल के स्थान पर इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाया जाए।
रिसर्च के मुताबिक 2050 तक देश इस बढ़ते उत्सर्जन को कम करने के लिए तेजी से इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर रुख करेंगें, इसके चलते आने वाले वक्त में बैटरी-ग्रेड लिथियम, निकल, कोबाल्ट, मैंगनीज और प्लेटिनम की मांग तेजी से बढ़ेगी। लेकिन साथ ही इसकी रह में ने केवल आर्थिक रोड़े, आपूर्ति-श्रृंखला में भी बाधा उत्पन्न होने की आशंका है।
अनुमान है कि 2010 से 2050 के बीच इन 48 देशों में वाहनों की कुल संख्या में करीब 2.7 गुणा इजाफा हो जाएगा। जहां 2010 में वाहनों की कुल संख्या 88 करोड़ थी वो 2050 तक बढ़कर 239 करोड़ पर पहुंच जाएगी। आंकड़ों की मानें तो 2010 यूरोप और अमेरिका में सबसे ज्यादा वाहन थे। जहां यूरोप में वाहनों की संख्या 29 करोड़ और अमेरिका में 25 करोड़ दर्ज की गई थी।
रिसर्च के मुताबिक 2050 तक कुल वाहनों में इनकी हिस्सेदारी में काफी गिरावट आएगी। जहां यूरोप में 2010 में 32 फीसदी हिस्सेदारी घटकर 14 फीसदी रह जाएगी। इसी तरह अमेरिका में जहां 2010 में दुनिया के 28 फीसदी वाहन थे वो घटकर केवल 13 फीसदी रह जाएंगें। इसके वजह विकासशील देशों के वाहन बाजार में तेजी से होती वृद्धि है।
12 फीसदी पर पहुंच जाएगी भारत की हिस्सेदारी
चीन में वाहनों की संख्या 2010 में आठ करोड़ (नौ फीसदी) से बढ़कर 2050 तक 86 करोड़ (36 फीसदी) पर पहुंच जाएगी। इसी तरह भारत में भी इसमें अच्छा-खासी वृद्धि का अनुमान है। पता चला है कि भारत की हिस्सेदारी भी 2010 में दो करोड़ (दो फीसदी) से बढ़कर 2050 में 29 करोड़ (12 फीसदी) पर पहुंच जाएगी।
ऐसे में यदि यह देश इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर रुख करते हैं तो इन देशों में भी लिथियम, निकल, कोबाल्ट और मैंगनीज जैसे मेटल्स की मांग बढ़ जाएगी। रिसर्च के मुताबिक लिथियम की मांग में 7,513 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है।
2010 से 2050 के बीच ऐसे परिदृश्य में जहां सभी वाहन इलेक्ट्रिक हैं, वैश्विक स्तर पर लिथियम की वार्षिक मांग 747 मीट्रिक टन से बढ़कर 22 लाख मीट्रिक टन पर पहुंच जाएगी। देखा जाए तो ऐसे नहीं है कि केवल लिथियम की मांग में ही वृद्धि होगी।
आंकड़े दर्शाते हैं कि इसके चलते निकल की मांग भी काफी बढ़ जाएगी। यदि 2050 तक वैश्विक स्तर पर 40 फीसदी वाहन इलेक्ट्रिक होते हैं तो इसकी मांग 20 लाख मीट्रिक टन पर पहुंच जाएगी। वहीं सौ फीसदी इलेक्ट्रिक वाहनों के होने पर यह मांग बढ़कर 52 लाख मीट्रिक टन पर पहुंच जाएगी।
इसी तरह कोबाल्ट की वार्षिक मांग भी तीन से आठ लाख मीट्रिक टन के बीच होगी, जबकि मैंगनीज की इसी तरह बढ़कर दो से पांच लाख मीट्रिक टन पर पहुंच जाएगी। विश्व बैंक की मानें तो यह धातुएं और खनिज चिली, कांगो, इंडोनेशिया, ब्राजील, अर्जेंटीना और दक्षिण अफ्रीका में केंद्रित हैं, जहां राजनैतिक अस्थिरता है। ऐसे में इनकी अस्थिर आपूर्ति बढ़ती मांग के साथ आपूर्ति के जोखिम को बढ़ा सकती है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि केंद्र सरकार ने 9 फरवरी, 2023 को जम्मू कश्मीर में 59 लाख टन लिथियम के भंडार मिलने की घोषणा की थी। रिसर्च में शोधकर्ताओं ने भारी वाहनों को इलेक्ट्रिक में बदलने पर भी ध्यान दिया है, जिन्हें अन्य वाहनों की तुलना में इन धातुओं की कहीं ज्यादा जरूरत होती है। हालांकि यह भारी वाहन कुल वाहनों का केवल चार से 11 फीसदी हिस्सा ही हैं। लेकिन भविष्य में इनके द्वारा इन मेटल्स की मांग में अच्छी खासी वृद्धि हो सकती है।
ऐसे में शोधकर्ताओं ने इस बढ़ती मांगे को प्रबंधित करने के लिए कई सुझाव दिए हैं, जिनमें सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देना और जो बैटरी अपनी समयावधि पूरी कर चुकी हैं उनसे जरूरी धातुओं को पुनःप्राप्त करना जरूरी है। साथ ही इनके पुनर्चक्रण की दक्षता को बढ़ाना भी काफी मायने रखता है।
इसके अलावा देशों को ऐसी नीतियों को अपनानें चाहिए जो प्राथमिक धातुओं पर बढ़ती निर्भरता को कम करने के लिए कैथोड/एनोड और फ्यूल-सेल (ग्रीन हाइड्रोजन) जैसे सिस्टम के लिए वैकल्पिक डिजाइन को प्राथमिकता दें। साथ ही उत्सर्जन से जुड़े लक्ष्यों को इलेक्ट्रिक वाहनों और सटीक उत्सर्जन बजट के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए।