नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 21 मई, 2024 को एक संयुक्त समिति से इस बात की जांच करने को कहा है कि क्या नोएडा में यमुना के बाढ़ क्षेत्र पर किया निर्माण स्थाई है या नहीं। मामला उत्तर प्रदेश में गौतमबुद्ध नगर के नोएडा का है।
इस संयुक्त समिति में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी), नोएडा के सीईओ और गौतमबुद्ध नगर के जिला मजिस्ट्रेट के प्रतिनिधि शामिल होंगे। यह समिति 50 आवेदकों में से हर एक के निर्माण की प्रकृति और सीमा की जांच के लिए साइट का दौरा करेगी।
वो यह देखेगी की क्या किया गया निर्माण स्थाई है या अस्थाई। साथ ही वो पते के साथ निर्माण से जुड़ी सभी जानकारियां एकत्र करेगी। साथ ही समिति को इस बात की भी जांच करनी है कि क्या इस निर्माण के लिए सक्षम अधिकारी से उचित अनुमति ली गई थी। यह समिति अगले दो महीनों के भीतर कोर्ट के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
इस मामले में आवेदकों की दलील है कि उनकी संपत्तियां नोएडा के अलग-अलग गांवों में स्थित हैं। उनके मुताबिक 12 से 15 जुलाई, 2023 के बीच यमुना में आई बाढ़ के चलते, सीवेज, खतरनाक रासायनिक अपशिष्ट, बदबूदार कीचड़ के साथ यमुना का दूषित पानी उनके घरों में घुस गया था, जिससे उनके घरों को नुकसान पहुंचा है। आवेदकों का कहना है कि यह कोई प्राकृतिक नहीं बल्कि मानव निर्मित आपदा है। ऐसे में उन्होंने अपनी संपत्ति, कृषि और बागवानी को हुए नुकसान के लिए मुआवजे का दावा किया है।
गौरतलब है कि इस मामले में 11 मार्च, 2024 को ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश की ओर से पेश वकील के दावे पर गौर किया कि आवेदक ग्रामीण नहीं हैं, बल्कि फार्महाउस के मालिक हैं, जिन्होंने अवैध रूप से यमुना बाढ़ क्षेत्र पर निर्माण किया है।
ऐसे में ट्रिब्यूनल ने राज्य सरकार की ओर से पेश वकील को सभी 50 आवेदकों की संपत्तियों का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। ट्रिब्यूनल ने बाढ़ क्षेत्र में किए गए निर्माण का विवरण, उसकी प्रकृति और ऐसे निर्माण के लिए क्या सक्षम अधिकारी से मंजूरी ली गई थी, इसका भी खुलासा करने को कहा गया था।
इस मामले में 18 मई, 2024 को, गौतमबुद्ध नगर के जिला मजिस्ट्रेट ने आवेदकों की संपत्तियों का विवरण देने वाले एक चार्ट के साथ अपना जवाब दाखिल किया था। इससे पता चला है कि ये संपत्तियां मुख्य रूप से फार्महाउस हैं। साथ ही रिपोर्ट में तस्वीरें भी शामिल की गई गई हैं जो दर्शाती हैं कि निर्माण स्थाई हैं।
आवेदकों ने भी अपना जवाब दाखिल किया है, जिसके मुताबिक यह विवादित नहीं है कि आवेदक कृषि भूमि के मालिक हैं। लेकिन दावा है कि उनके द्वारा किए निर्माण स्थाई नहीं हैं। हालांकि, उन्होंने अपने इस दावे के समर्थन में कोई सबूत नहीं दिया है।
हरिद्वार में पर्यावरण नियमों को ताक पर रख चल रहा ईंट भट्ठा, दावों की जांच के लिए समिति गठित
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने रूड़की में अवैध रूप से चल रहे एक ईंट भट्ठे से जुड़े आरोपों की जांच के लिए संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया है। 21 मई 2024 को दिया यह निर्देश उत्तराखंड के हरिद्वार की रूड़की तहसील के टकोला कलां गांव में अवैध रूप से चल रहे ईंट भट्टे के आरोपों से जुड़ा है। इस समिति में हरिद्वार के जिला मजिस्ट्रेट और उत्तराखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य शामिल होंगें।
ट्रिब्यूनल ने समिति से इस साइट का दौरा कर जरूरी जानकारी एकत्र करने को कहा है। साथ ही यदि वहां पर्यावरण नियमों का उल्लंघन पाया जाता है तो समिति से इसकी रोकथाम और बहाली के साथ-साथ ईंट भट्टे के मालिक पर नियमों को ध्यान में रखते हुए जरूरी दंडात्मक कार्रवाई करने के लिए भी कहा है। कोर्ट के निर्देशानुसार इस काम को पूरा करने के लिए समिति के पास दो महीनों का समय है।
इस मामले में शिकायतकर्ता सुशील त्यागी का दावा है कि मैसर्स शिव ब्रिक्स सप्लाई नामक यह ईंट भट्ठा नियमों को ताक पर रख आवासीय क्षेत्र के पास चल रहा है। इतना ही नहीं यह ईंट भट्ठा अब भी पुरानी तकनीक पर चल रहा है, इसने आवश्यक जिग-जैग तकनीक को अब तक नहीं अपनाया है, जो पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 22 फरवरी, 2022 को जारी अधिसूचना का उल्लंघन है। उनके मुताबिक इस मामले में कई बार अधिकारियों से शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
रूपनगर में चल रहा अवैध खनन का कारोबार, एनजीटी ने अधिकारियों को भेजा नोटिस
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने रूपनगर में चल रहे अवैध रेत खनन के मुद्दे पर पहल करते हुए स्वत: संज्ञान लेते हुए संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। मामला पंजाब के रूपनगर में चल रहे अवैध रेत खनन से जुड़ा है। इस मामले में 21 मई 2024 को दिए अपने निर्देश में ट्रिब्यूनल ने खनन और भूविज्ञान विभाग, खनन अधिकारी, पंजाब, जिला मजिस्ट्रेट, राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण, पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और भारत सरकार को नोटिस जारी करने को कहा है।
इस मामले में अगली सुनवाई नौ सितंबर, 2024 को होगी।
यह मामला रूपनगर की जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (डीएसआर) से जुड़ा है। इस रिपोर्ट को 2023 में सतत रेत खनन प्रबंधन दिशानिर्देश-2016 और रेत खनन के लिए जारी प्रवर्तन और निगरानी दिशानिर्देश (ईएमजीएसएम-2020) के तहत प्रकाशित किया गया था। यह रिपोर्ट अवैध खनन को रोकने के लिए किए जाने वाले बुनियादी उपायों को शामिल करने में विफल रही है।