लैंगिक समानता: 146 देशों की सूची में 135वें पायदान पर भारत, नेपाल बांग्लादेश से भी है पीछे

वैश्विक स्तर पर लैंगिक समानता की स्थिति इतनी खराब है की इस अंतर को भरने में अभी 132 साल और लगेंगें जबकि दक्षिण एशिया में इस खाई को पाटने में 2219 तक का समय लगेगा
लैंगिक समानता: 146 देशों की सूची में 135वें पायदान पर भारत, नेपाल बांग्लादेश से भी है पीछे
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भले ही भारत में नारी को देवी माना जाता है लेकिन सच यह है कि समाज में उनकी स्थिति आज भी अन्य देशों के मुकाबले काफी पीछे है। जो स्पष्ट तौर पर ‘ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2022’ में भी दिखता है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्लूईएफ) द्वारा जारी इस इंडेक्स के मुताबिक भारत 146 देशों की सूची में 135वें पायदान पर है।

हालांकि यदि पिछले साल की तुलना में देखें तो भारत की स्थिति में थोड़ा सुधार आया है। गौरतलब है कि पिछले साल जारी इस इंडेक्स में भारत को 140वें स्थान पर रखा गया था। वहीं यदि स्वास्थ्य और उत्तरजीविता की बात करें तो भारत की स्थिति दुनिया में सबसे ज्यादा खराब है इस मामले में भारत को सबसे नीचे 146वें स्थान पर जगह दी गई है।

वहीं आर्थिक भागीदारी और अवसर के मामले में भारत को 0.35 अंकों के साथ 143वें स्थान पर रखा गया है। शिक्षा हासिल करने के मामले में भारत 0.96 अंकों के साथ 107वें स्थान पर है। इस सन्दर्भ में मालदीव, श्रीलंका, घाना आदि देशों के स्थिति भी भारत से बेहतर है। वहीं राजनीति में महिलाओं की पैठ से जुड़े इंडेक्स में देखें तो भारत को 146 देशों में 0.267 अंकों के साथ 48वें स्थान पर रखा है। यह दिखाता है कि भारतीय राजनीति में महिलाओं का स्थान पहले से बेहतर हो रहा है।

यदि लैंगिक समानता के मामले में भारत की तुलना उसके पड़ोसियों से करें तो उनकी स्थिति कहीं ज्यादा बेहतर है। इस इंडेक्स में जहां बांग्लादेश को 0.714 अंकों के साथ 71वें पायदान पर रखा है वहीं नेपाल (96), श्रीलंका (110), मालदीव्स (117), भूटान (126) की स्थिति भी हमसे बेहतर है। हालांकि पाकिस्तान 145 और अफगानिस्तान 146 वें पायदान पर हैं जिनकी स्थिति दुनिया में सबसे ज्यादा खराब है।       

वहीं दूसरी तरफ आइसलैंड को 0.908 अंकों के साथ इस इंडेक्स में सबसे ऊपर रखा गया है। वहीं फिनलैंड दूसरे और नॉर्वे तीसरे स्थान पर था, जबकि न्यूजीलैंड चौथे और स्वीडन को पांचवें पायदान पर जगह दी गई है। अफ्रीकी देश रवांडा और नामीबिया की स्थिति भी दूसरे देशों से कहीं ज्यादा बेहतर है, जिन्हें क्रमशः छठें और आठवें स्थान पर रखा गया है।

इस इंडेक्स के साथ ही जारी ग्लोबल जेंडर रिपोर्ट 2022 की मानें तो लैंगिक समानता की स्थिति में अभी भी काफी बदतर है और वैश्विक स्तर पर इस खाई को पाटने में अभी 132 साल और लगेंगें। देखा जाए तो जैसे-जैसे कोविड-19 के साथ-साथ वैश्विक संकट बढ़ रहा है, उसका परिणाम महिला शक्ति को भुगतना पड़ रहा है। इसकी वजह से लैंगिक समानता की स्थिति के बदतर होने का जोखिम कहीं ज्यादा बढ़ गया है।

लैंगिक समानता को हासिल करने में दक्षिण एशिया को लगेंगें अभी और 197 साल

इस इंडेक्स के साथ ही जारी ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 की मानें तो लैंगिक समानता की स्थिति में अभी भी काफी बदतर है और वैश्विक स्तर पर इस खाई को पाटने में अभी 132 साल और लगेंगें। देखा जाए तो जैसे-जैसे कोविड-19 के साथ-साथ वैश्विक संकट बढ़ रहा है, उसका परिणाम महिला शक्ति को भुगतना पड़ रहा है।

इसकी वजह से लैंगिक समानता की स्थिति के बदतर होने का जोखिम कहीं ज्यादा बढ़ गया है। यदि दक्षिण एशिया की बात करें तो वहां लैंगिक समानता को हासिल करने में 197 वर्ष और लगेंगें। वहीं पूर्वी एशियाई देशों और पैसिफिक में इस अंतर को पाटने में 168 साल और सेंट्रल एशिया को 152 साल लगेंगें।  

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा जारी इस ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में चार प्रमुख आयामों या उप-सूचकांकों के आधार पर देशों में लैंगिक समानता का मूल्यांकन किया गया है, जिनमें आर्थिक भागीदारी और अवसर, शिक्षा प्राप्ति, स्वास्थ्य और उत्तरजीविता के साथ राजनीतिक सशक्तिकरण को शामिल किया गया है। इस इंडेक्स में देशों को यह 0.0 से 1.0 के पैमाने पर उनके स्कोर को मापा गया है। जो दर्शाता है कि लैंगिक समानता की खाई कितनी भर पाई है। इन अंकों के आधार पर देशों को क्रमबद्ध किया गया है। 

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