पेशे से आर्किटेक्ट एक व्यक्ति ने इमारतों के खराब डिजाईन और वेंटिलेशन सिस्टम की कमी पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में आवेदन दायर किया है, जिसमें कहा गया है कि इसके वजह से प्राकृतिक वेंटिलेशन पर प्रतिकूल असर पड़ता है। नतीजन ऊर्जा का कहीं ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है जिसे रोका जा सकता है। साथ ही इसकी वजह से रहने वाले प्राकृतिक रौशनी और ऑक्सीजन से भी वंचित होना पड़ रहा है।
आवेदक राजा सिंह ने इस मामले में विंडो के उपयुक्त डिजाइन, कार्बन डाइऑक्साइड की निगरानी और स्प्लिट एयर कंडीशनर के जिम्मेदारी पूर्ण उपयोग के लिए भवन सम्बन्धी उपनियमों में आवश्यक बदलाव के लिए दिशा-निर्देश मांगे हैं।
इसके साथ ही उन्होंने वेंटिलेशन मॉनिटरिंग करने के लिए सीओ2 मीटर लगाने के लिए बिल्डरों को निर्देश देने की भी बात कही है जिससे आम लोगों को इस बारे में अवगत कराया जा सके। साथ ही स्प्लिट एयर कंडीशनर के निर्माताओं से भी डिज़ाइन में बदलाव करने की मांग की है जिससे एयर कंडीशनर कमरे की हवा को दोबारा प्रसारित करने की जगह बाहर की हवा का इस्तेमाल कर सके।
इस मामले में एनजीटी का कहना है कि आवेदन ने जो सवाल उठाए हैं वो पर्यावरण के लिए जरुरी हैं। साथ ही इसकी वजह से ऊर्जा की बचत होगी और स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को भी फायदा होने की सम्भावना है। ऐसे में एनजीटी ने शहरी विकास मंत्रालय, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी के साथ अक्षय ऊर्जा मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से इस विषय पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी है। साथ ही अदालत ने इस मामले में एक महीने के भीतर कोर्ट में रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।
सोनभद्र में होते अवैध खनन के मामले में यूपीपीसीबी की रिपोर्ट पर एनजीटी ने जताया असंतोष, बताया अधूरा
सोनभद्र जिले में होते अवैध खनन के मामले में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जो रिपोर्ट सबमिट की गई है उसपर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने असंतोष जाहिर किया है। इस बारे में अपने 13 जुलाई, 2022 को दिए आदेश में कोर्ट ने कहा है कि यह रिपोर्ट अधूरी है क्योंकि इसमें जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट, ईआईए/ईएमपी, पुनःपूर्ति अध्ययन और परियोजना प्रस्तावकों के पक्ष में पर्यावरण मंजूरी क्यों दी गई है, इसका जिक्र नहीं किया गया है।
इसके अलावा नियमों के उल्लंघन और उसके लिए जो कार्रवाई करनी थी उसकी भी कोई सूचना इस रिपोर्ट में नहीं दी गई है। ऐसे में अदालत ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अगले एक महीने के अंदर आगे की कार्रवाई पर रिपोर्ट सबमिट करने का निर्देश दिया है।
मामला उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिले का है, जहां ओबरा तहसील के भगवा, अगोरखास, खेवंधा एवं रेडिया गांव के साथ दुधी तहसील के कोरगी गांव में अवैध खनन की शिकयतों से जुड़ा है। आवेदक ने इस बारे में दी अपनी शिकायत में कहा है कि वहां खनन के लिए पोक्लेन मशीनों का उपयोग किया गया था और अपेक्षित जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (डीएसआर) भी तैयार नहीं की गई थी।
इसके साथ ही ईआईए अधिसूचना, 2006 के अंतर्गत रेत खनन दिशानिर्देश, 2020 के तहत जरुरी पर्यावरण मंजूरी भी नहीं ली गई थी। साथ ही आवेदक ने यह भी कहा है कि जिस क्षेत्र में खनन किया जा रहा है वो वन क्षेत्र के एक किलोमीटर के दायरे में आता है। इसके साथ ही यह क्षेत्र सोन नदी की परिधि में भी आता है।
नजफगढ़ नाले में डाले जा रहे गुरुग्राम के सीवेज और औद्योगिक कचरे पर एनजीटी ने तलब की रिपोर्ट
एनजीटी के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस सुधीर अग्रवाल की पीठ ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, आयुक्त नगर निगम, गुरुग्राम और गुरुग्राम के जिला मजिस्ट्रेट की एक संयुक्त समिति से तथ्यात्मक और कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने समिति को एक महीने का वक्त दिया है जिसके अंदर उसे दिल्ली में प्रवेश करने से पहले नजफगढ़ नाले में डाले जा रहे सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट पर स्थिति के बारे में कोर्ट को ताजा जानकारी देने के लिए कहा है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि इस रिपोर्ट में नाले में डाले जा रहे सीवेज के स्रोतों, उसकी मात्रा और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की स्थिति के बारे में जानकारी होना चाहिए।
गौरतलब है कि एनजीटी का यह आदेश राव सतवीर सिंह नामक व्यक्ति द्वारा नजफगढ़ नाले में डाले जा रहे सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट के खिलाफ दायर आवेदन के जवाब में था। जिसमें आवेदक ने कहा है कि गुरुग्राम का सीवेज और औद्योगिक कचरा नाले में डाला जा रहा है।