सीईसी को एड हॉक की जगह स्थाई बनाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाए पर्यावरण मंत्रालय: सुप्रीम कोर्ट

सीईसी पिछले दो दशकों से खनन और वनों के भीतर परियोजनाओं को दी जाने वाली अनुमति से जुड़े मामलों में न्यायालय की मदद कर रही है
सीईसी को एड हॉक की जगह स्थाई बनाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाए पर्यावरण मंत्रालय: सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) को स्थाई बनाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया है। सर्वोच्च अदालत ने 18 अगस्त, 2023 को दिए अपने आदेश में इस बात पर जोर दिया है कि सीईसी को तदर्थ (एड हॉक) के बजाय एक स्थाई इकाई के रूप में काम करने से सभी हितधारकों को फायदा होगा।

इसके साथ ही कोर्ट ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) को मंत्रालय की आगामी अधिसूचना के आधार पर सीईसी का गठन जारी रखने का भी निर्देश दिया है। बता दें कि सीईसी पिछले दो दशकों से खनन और वनों के भीतर परियोजनाओं को दी जाने वाली अनुमति से जुड़े मामलों में न्यायालय की मदद कर रही है।

गौरतलब है कि 18 मई, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने सिफारिश की कि केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) को एक तदर्थ इकाई नहीं होना चाहिए, बल्कि सभी के हितों को देखते उसे एक स्थाई वैधानिक निकाय बना देना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस सुझाव पर सहमति जताते हुए पुष्टि की थी कि केंद्र सीईसी के गठन की रूपरेखा तैयार करते हुए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 3 के तहत एक ड्राफ्ट अधिसूचना जारी करेगा।

उपरोक्त आदेश के मद्देनजर भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) की स्थापना के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को एक ड्राफ्ट अधिसूचना सौंपी थी। इस मसौदे को एमिकस क्यूरी के परमेश्वर के साथ साझा किया गया था।

एमिकस क्यूरी ने कहा कि ड्राफ्ट अधिसूचना के लिए उनके पास एक ही सुझाव था, और वो यह था कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा सीईसी के कामकाज का समय-समय पर ऑडिट का प्रावधान होना चाहिए।

सॉलिसिटर जनरल ने उक्त सुझाव पर कोई आपत्ति नहीं जताई है और उन्होंने कहा है कि एमिकस क्यूरी द्वारा दिए गए सुझाव को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी की जाने वाली अंतिम अधिसूचना में शामिल किया जाएगा।

ग्रेटर नोएडा में  जल निकायों को किया जाए बहाल: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने निर्देश दिया है कि ग्रेटर नोएडा में जल निकायों के साथ-साथ जलग्रहण क्षेत्रों को भी बहाल किया जाना चाहिए। मामले में ग्रेटर नोएडा के वकील और उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) ने चार सप्ताह के भीतर बहाली योजना प्रस्तुत करने का आश्वासन दिया है।

अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है कि खसरा नंबर 490, 522, 552 और 676 में जल निकायों के साथ-साथ अन्य जल निकायों वाली जमीन किसी को भी आबंटित नहीं की गई है। इनमें से कुछ खसरा नंबर पहले आबंटित किए गए थे, लेकिन आवंटियों ने उन्हें सरेंडर कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने रिकॉर्ड पर रखी तस्वीरों को देखने के बाद कहा कि वर्तमान में जल निकाय बंजर भूमि के रूप में पड़े हुए हैं और इन्हें बहाल करने की जरूरत है।

कचरे से भर गई है रंगारेड्डी में माजिद बांदा झील: रिपोर्ट

रंगारेड्डी के सेरिलिंगमपल्ली में स्थित माजिद बांदा झील मौजूदा समय में निर्माण और विध्वंस सम्बन्धी कचरे से पटी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार झील ऊंची इमारतों और घरों से घिरी हुई है और फिलहाल इसमें पानी नहीं है।

मजदूरों के लिए अस्थाई घर झील के पश्चिम हिस्से में बनाए गए हैं। इसके अतिरिक्त, एनजीटी को सौंपी गई तेलंगाना राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व में झील के पूर्ण टैंक स्तर (एफटीएल) से लगभग 90 मीटर दूर एक तूफानी जल की निकासी के लिए निर्माण किया गया है।

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