कोयला खनन के लिए अधिग्रहित भूमि पर होंगे विकास कार्य, सरकार ने नई नीति को दी मंजूरी

इस नीति की मदद से अब गैर-खनन योग्य भूमि पर कोयला और ऊर्जा सम्बंधित इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जा सकेगा।
कोयला खनन के लिए अधिग्रहित भूमि पर होंगे विकास कार्य, सरकार ने नई नीति को दी मंजूरी
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कोयला युक्त क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) अधिनियम, 1957 के तहत अधिग्रहित भूमि के उपयोग के लिए नई नीति को मंजूरी दी। इस नीति का उद्देश्य खनन की जा चुकी या खनन के लिए अनुपयुक्त भूमि के उपयोग को बढ़ावा देना और कोयला क्षेत्र में निवेश तथा नए रोजगार पैदा करना है।

इस नीति के तहत ऐसी भूमि का उपयोग जिसपर खनन नहीं हो रहा, कोयला और ऊर्जा सम्बन्धी इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थापना और विकास के लिए किया जा सकता है। 

इस नीति के तहत सरकारी कोयला कंपनियां जैसे इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और इसकी सहायक कंपनियां सीबीए एक्ट के तहत अधिग्रहित भूमि की मालिक बनी रहेंगी। यह नीति केवल विशिष्ट उद्देश्य के लिए ही उस जमीन को पट्टे पर देने की अनुमति देती है। हालांकि कोयला और ऊर्जा सम्बन्धी संरचनाओं के निर्माण और विकास के लिए यह सरकारी कोयला कंपनियां संयुक्त परियोजनाओं में निजी पूंजी लगा सकती हैं।

नीति के तहत जिस सरकारी कंपनी के पास भूमि अधिग्रहित है वो नीति में दी गई निश्चित अवधि के लिए ही इस जमीन को पट्टे पर देगी, जिसके लिए भूमि को पट्टे पर देने का कार्य पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके बोली लगाकर किया जाएगा। इस नीति के तहत निम्न कार्यों के लिए भूमि पर विचार किया जाएगा। 

  • कोल वाशरी स्थापित करना।
  • कन्वेयर सिस्टम स्थापित करना।
  • कोल हैंडलिंग प्लांट स्थापित करना।
  • रेलवे साइडिंग का निर्माण।
  • सीबीए अधिनियम या अन्य भूमि अधिग्रहण कानून के तहत अधिग्रहित भूमि के कारण प्रभावित परिवारों का पुनर्वास।
  • थर्मल और रिन्यूएबल विद्युत परियोजनाओं की स्थापना करना।
  • कोयला विकास संबंधी संरचनाओं की स्थापना जिसमें उसकी एवज में वनरोपण किया गया हो।
  • मार्ग देने के लिए।
  • कोल गैसीकरण और कोयले से केमिकल बनाने वाले संयंत्र का निर्माण।
  • ऊर्जा संबंधित संरचना की स्थापना या उसका प्रावधान करना।

सरकार का दावा है कि इस नई नीति के चलते सीआईएल जैसी सरकारी कंपनियां निजी क्षेत्र के साथ मिलकर कोयला या फिर सौर ऊर्जा संयंत्र जैसी परियोजनाएं शुरू कर सकती हैं। इतना ही नहीं, कोल गैसीकरण परियोजनाओं की मदद से कोयले को दूर ले जाने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। 

यह नीति न केवल घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करेगी साथ ही आयात निर्भरता में भी कमी लाएगी, और रोजगार के सृजन में मददगार होगी। इस तरह इस जमीन का उपयोग फिर से कोयला और अन्य ऊर्जा संरचनाओं के लिए किया जा सकेगा। इससे पिछड़े क्षेत्रों में भी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। पहले से अधिग्रहित भूमि के कारण भूमि को फिर से अधिग्रहित करने की जरुरत नहीं रह जाएगी, जिसके कारण होने वाले विस्थापन को भी रोका जा सकेगा।

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