नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 18 दिसंबर 2023 को तीन सदस्यीय समिति से पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों के साथ उच्च हिमालय क्षेत्र की सुरक्षा की आवश्यकता का आकलन करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने समिति को साइट का दौरा करने के साथ प्रासंगिक जानकारी इकट्ठा करने, मुद्दे की जांच करने और तीन महीने के भीतर सभी प्रासंगिक जानकारियों के साथ एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का काम सौंपा है। इस मामले में अगली सुनवाई दो अप्रैल 2024 को होनी है।
गौरतलब है कि मूल आवेदन जर्नल करंट साइंस में 25 अक्टूबर, 2023 को प्रकाशित एक लेख के आधार पर दायर किया गया था, जिसमें उच्च हिमालय क्षेत्र को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र के रूप में घोषित करने की वकालत की गई थी।
बता दें कि भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने भी संसद में उच्च हिमालय क्षेत्र को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों के रूप में सुरक्षित रखने की इच्छा व्यक्त की थी।
पावर हाउस बंद होने के बाद भी अरावली रेंज में पड़ी है फ्लाई ऐश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने फरीदाबाद थर्मल पावर स्टेशन को अरावली रेंज के भीतर मौजूद पावर हाउस के दो ऐश डाइक में जमा शेष फ्लाई ऐश की कुल मात्रा का विवरण देते हुए अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने की अनुमति दी है। बता दें कि यह पावर स्टेशन, हरियाणा पावर जेनरेशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड की एक यूनिट है जो फरीदाबाद में बाटा चौक पर है।
इस मामले में कोर्ट ने 18 दिसंबर 2023 को परियोजना प्रस्तावक को तीन दिन का समय दिया है और मामले को 22 दिसंबर, 2023 को ट्रिब्यूनल के समक्ष रखने का निर्देश दिया है।
इससे पहले फरीदाबाद थर्मल पावर स्टेशन ने 15 दिसंबर 2023 को दिए अपने जवाब में कहा था कि करीब 18 लाख मीट्रिक टन राख को पुरानी ऐश डाइक जबकि 45 लाख मीट्रिक टन राख नई ऐश डाइक में जमा किया गया था।
इस प्रतिक्रिया के साथ एक चार्ट भी दर्शाया गया है, जिससे पता चला है कि अप्रैल 2023 और नवंबर 2023 के बीच, दोनों पक्षों द्वारा केवल साढ़े चार लाख मीट्रिक टन फ्लाई ऐश हटाई गई थी, जिनके साथ परियोजना प्रस्तावक द्वारा समझौता किया गया था।
अदालत का कहना है कि इन तथ्यों से पता चलता है कि 58 लाख मीट्रिक टन से अधिक फ्लाई ऐश अभी भी इन दोनों ऐश डाइक में जमा हैं।
वहीं परियोजना प्रस्तावक के वकील ने जोर देकर कहा है कि फ्लाई ऐश की एक महत्वपूर्ण मात्रा पहले ही हटा दी गई थी और उसकी कुल मात्रा 58 लाख मीट्रिक टन नहीं है, बल्कि उससे काफी कम है। हालांकि, अदालत का कहना है कि उक्त बयान का समर्थन करने के लिए कोई कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है।
बता दें कि मूल आवेदन एक पत्र याचिका के आधार पर दायर किया गया था, जिसमें अरावली रेंज पर मौजूद फ्लाई ऐश के अनुचित निपटान के बारे में चिंताओं पर प्रकाश डाला गया था। इस कार्रवाई को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा सात मई 1992 को जारी अरावली अधिसूचना का उल्लंघन माना गया, जो बिजली घर बंद होने के बाद भी अरावली रेंज के निर्दिष्ट क्षेत्रों में कुछ गतिविधियों को प्रतिबंधित करती है।